तो क्या समान नागरिक संहिता पर होने जा रही है बहस

संपत्ति उत्तराधिकार के नियम सभी के लिए समान करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस

नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान उत्तराधिकार और विरासत कानून की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। साथ ही अदालत ने इस याचिका को तलाक और भरण पोषण के समान नियम बनाने की मांग वाली याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न कर दिया। भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल की गई इस याचिका में उत्तराधिकार और विरासत के नियम कानूनों में व्याप्त विसंगतियों को दूर कर सभी के लिए समान नियम बनाने की मांग की गई है।
नियमों को लिंग या धर्म से तटस्थ बनाने का अनुरोध किया गया है। ध्यान से देखा जाए तो यह मामला धीरे-धीरे समान नागरिक संहिता की बहस को तेज करता दिख रहा है। सभी नागरिकों के लिए समान नियम कानून लागू करने की मांग वाली यह पांचवी याचिका है जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इससे पहले पिछले साल 16 दिसंबर को सभी नागरिकों के लिए तलाक और भरण पोषण के नियम एक समान करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी हुआ था।
इसी साल 29 जनवरी को कोर्ट ने गोद लेने और संरक्षक के एक समान नियम, दो फरवरी को महिला और पुरुष की विवाह की न्यूनतम आयु समान करने की मांग वाली याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट इन पांचो याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए संलग्न कर चुका है। ये सभी याचिकाएं अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की हैं। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन की पीठ ने उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील किरन सूरी को सुनने के बाद गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को याचिका का जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में दाखिल की गई एक हस्तक्षेप अर्जी को भी इजाजत दे दी है।
याचिका में मांग की गई है कि सभी भारतीय नागरिकों के लिए उत्तराधिकार और विरासत के नियम कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 14(कानून के समक्ष समानता), 15(किसी के भी साथ धर्म, जाति, वर्ण, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) और 44 (समान नागरिक संहिता) की भावना के अनुरूप समान बनाया जाए। याचिका में विभिन्न धर्मों में प्रचलित उत्तराधिकार और विरासत के नियमों- कानूनों मे विसंगतियों को उजागर करते हुए कहा गया है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून में तो लिंग आधारित भेदभाव कम है। 2005 में कानून संशोधन के बाद बेटियों को भी बेटे के समान पैत्रिक संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिया गया है। हालांकि अभी भी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में कुछ भेदभाव हैं लेकिन ईसाई, पारसी और मुस्लिम पर्सनल ला में संपत्ति के उत्तराधिकार और विरासत में लिंग आधारित भेदभाव काफी ज्यादा हैं।

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