चाकू किसने-किसको मारा , चोट लोगों को लगी

जमशेदपुर 14 सितंबर : हैदराबाद में एक डॉक्टर युवती की बलात्कार के बाद हत्या की घटना से न सिर्फ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश बल्कि पूरा देश स्तब्ध था।
कानपुर में विकास दुबे की करतूत ने भी इसी तरह सबको आवाक किया था जब पुलिस दल पर ही हमला कर एक अधिकारी को मौत के घाट उतार दिया था।
हाल ही जमशेदपुर में गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान कुछ लोगों ने न सिर्फ एक युवक को चाकू से गोद दिया ,बल्कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो बनाकर बहुत ही गंदे तरीके से पोस्ट करते हुए कहा कि पुलिस उनका क्या बिगाड़ लेगी? जमशेदपुर मे ऐसा दुस्सााहस और अराजकता फैलाने वाली यह घटना अजीबोगरीब है। पुलिस प्रशासन और कानून को इस तरह खुलेआम चुनौती देने का साहस यहां के कथित डॉन को भी नहीं हुआ फिर ऐसी कौन सी शक्ति है जो इन युवकों को इतनी ताकत दे गयी ? आश्चर्य होता है इन युवकों को संरक्षण देने के लिए कुछ लोग दल बांधकर सक्रिय हो गए और प्रशासन द्वारा उन लोगों के बढेे मन को तोडऩे की की गई कार्रवाई का मीन मेख निकालने में लग गए। जिस युवक को चाकू घोंपा गया उसके परिवार के दर्द और इस करतूत से हुए नुकसान का अंदाजा नहीं लगाया वैसे लोगों ने ,न ही पुलिस को खुलेआम आपराधिक अंदाज में चुनौती देने के परिणाम का इल्म हुआ उन्हें . य़ह तो वही
बात हुई न कि पहलवान को कुश्ती के लिए उकसा दो और जब पटका जाओ तब रोने लगो .शहर में अराजकता फैलाने वाली इस चाकूबाजी की भी उतनी ही निंदा होनी चाहिए थी।
बड़ी स्पष्ट स्थिति होती है जब कोई पत्थर मारता है तब जवाब में पत्थरबाजी भी होती है। ऐसी ही एक पत्थरबाजी और उसके बाद फैली हिसा की जांच करने धनबाद आए भारतीय प्रशासनिक सेवा के तत्कालीन पदाधिकारी और बिहार के पूर्व मुख्य सचिव जी एस कंग का एक वाक्य ऐसे मामलों में आंखें खोलने वाला था- पहले किसने पत्थर मारा या बाद में किन लोगों ने जवाबी पथराव किया, यह मायने नहीं रखता, जबकि मुख्य बात होती है पत्थर चलाने पर चोट लगी। इस प्रकार मनबढ़े लोगों ने चाकूबाजी की और सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर पोस्ट
किया और विधि व्यवस्था के सिर पर चढक़र मूत्र त्यागा तब उसके बाद प्रशासन ने कोई कार्रवाई की। इस घटना में सब को चोट लगी। लोग आहत ही नहीं भयभीत भी हुए। देखने और समझने की बात यह होती है कि यह नौबत क्यों आई ? किसी को उकसाने- भडक़ाने और कानून को खुलेआम हाथ में लेने की करतूत को किसी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता।जिसे चाकू घोंपा गया अगर उसकी जान चली जाती तब क्या होता? तब भी क्या चाकूबाजी के आरोपियों पर किसी कार्रवाई का मीन मेख निकाला जाता। समाज में ऐसी हरकतों को संरक्षण देने की कोई भी चेष्टा समाज में अराजकता फैलाने को बढ़ावा देने वाला ही साबित होगा और संरक्षण देने वाले समाज में उन लोगों की प्रतिष्ठा ही कलंकित होगी। हैदराबाद में डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या में लिप्त अभियुक्त जब कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे गये तब पूरे देश ने इसका स्वागत किया। भले ही उसकी कानूनी जांच के आदेश दिए गए । विकास दुबे की गाड़ी पलटने से मृत्यु हुई तब भी कहा गया कि पुलिस ने पूर्व नियोजित तरीके मार गिराया। ताली एक हाथ से नहीं बजती। अतएव ताली बजाने से अच्छा है अपराध की भावना जन्म लेते ही समाज के प्रबुद्ध लोग उसे कुचलने के लिए आगे आयें ना कि मीन मेख्र निकालकर समाज में और विद्वेष,भय या कॉलर ऊंचा करने की कोशिश करें।

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