विद्या, बुद्धि, ज्ञान व वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में श्रद्धापूर्वक की गई

सुधीर गोराई

चांडिल : सरस्वतीं शुक्लवर्णा सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिमात्।
सुपूजितां सुरणैब्र्रह्मविष्णुशिवादिभः।।
वन्दे भक्त्या वन्दितां च मुनीन्द्रमनुमानवैः।।

बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर उपरोक्त जयघोष से वातावरण भक्तिमय हो गया। इस पावन घड़ी में विद्या, बुद्धि, ज्ञान व वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न स्कूल, कॉलेज, मंदिर व पंडालों में श्रद्धापूर्वक की गई। प्लस टू उच्च विद्यालय रघुनाथपुर में वैदिक रीति से तालाब से घट लाकर स्थापना की गई। पुजारी बंकिम चंद्र पांडे द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ माता सरस्वती की पूजा की गई। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने मां सरस्वती के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित की गई।मौके पर प्लस टू उच्च विद्यालय रघुनाथपुर में प्रभारी प्रधानाध्यापक जयनंदन ठाकुर, गुरुपद महतो, सुबोध कुमार सेठ, बलराम सिंह सरदार, बिनोद टुडु, ललिता गोराई, पम्पा प्रधान, चंदन कुमार आदि उपस्थित थे।

बसंत पंचमी महत्व

ग्रंथों के मुताबिक भगवान श्रीमन्नारायाण ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था, जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। महर्षि वाल्मीकि, व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र तथा शौनक जैसे ऋषि इनकी ही साधना से कृतार्थ हुए। भगवती सरस्वती को प्रसन्न करके उनसे अभिलषित वर प्राप्त करने के लिए विश्वविजय नामक सरस्वती कवच का वर्णन भी प्राप्त होता है। भगवती सरस्वती के इस अद्भुद विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यंश्रृंग, भरद्वाज, देवल और जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। मां सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कविकुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामीजी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्र हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं। विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है।

सरस्वती पूजा का महत्व

श्रीकृष्ण के कंठ से हुईं उत्पन्न
मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है और सर्वदा शास्त्र-ज्ञान को देने वाली है। सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से अद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पार्वती, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। इनके और भी नाम हैं, जिनमें से वाक्, वाणी, गी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध है। मां सरस्वती की महिमा और प्रभाव असीम है। ऋगवेद 10/125 सूक्त के आठवें मंत्र के अनुसार वाग्देवी सौम्य गुणों की दात्री और सभी देवों की रक्षिका है। सृष्टि-निर्माण भी वाग्देवी का कार्य है। वे ही सारे संसार की निर्मात्री एवं अधीश्वरी है। वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है। इनके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है।

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