सम्पादकीय : एलोपैथ बनाम आयुर्वेद विवाद

एलोपैथ और आयुर्वेद को लेकर विवाद कुछ इस तरह गहराता जा रहा है जो बेहद खतरनाक है। खासकर सोशल मीडिया में साफ तौर पर दो फाड़ दिख रहा है और इसके समर्थक या विरोधी एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लग गये है। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि वे जो कुछ कर रहे है वह भारतीय स्वास्थ व्यवस्था के लिये कितना खतरनाक है?भारत की स्वास्थ व्यवस्था की पोल पहले ही खुल चुकी है ,रही सही कसर एलोपैथ और आयुर्वेद विवाद ने पूरी कर दी है। योगगुरु बाबा रामदेव की एक टिप्पणी के बाद शुरु हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। दुर्भाग्य यह है कि इस विवाद को सुलझाने के बजाय भडक़ाने वाले अधिक सक्रिय हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में कौन कितना पास कितना फेल ऑकने का यह समय नहीं है।

आयुर्वेद को हमारे जीवन और वैद्य का संगम माना जाता है। इसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति भी माना जाता है। लेकिन आज आई एम ए और बाबा रामदेव के बीच खिंची तलवार को छीनकर लोग इसे भांजने में महारथ दिखाने में लगे है और इसी कड़ी में एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है।

इस विवाद में कौन किस ओर है बताने की जरूरत नहीं। यह वह देश है जहां योग को भी धर्म से जोड़ दिया जाता है ऐसे में इस विवाद में आग में घी डालने वाले कितने सक्रिय होंगे बताने की जरूरत नहीं। एक दौर था जब न्यायपालिका एवं विधायिका के बीच तलवारें खिंची हुई थीं। उस दौर में भी एक दूसरे पर श्रेष्ठता दिखाने की होड़ मची थी। लोकतंत्र की मजबूती इन दोनों की मजबूती में है। ऐसा ही आयुर्वेद एवं एलोपैथ के साथ है। एलोपैथ के महत्व को चुनौती देना ही बेमानी है, इसी तरह आयुर्वेद की उपयोगिता पर सवाल उठाने का भी कोई औचित्य नहीं।

मामले की शुरुआत बाबा रामदेव की उस टिप्पणी से हुई जिसमें वे कहते सुने गये कि गजब का तमाशा है। एलोपैथ एक ऐसी स्टूपिड और दिवालिया साइंस है कि पहले क्लोरोक्वीन फेल हुई फिर रेमडेसिविर फेल हो गई। फिर एंटीबायोटिक स्टेरॉडय फेल हुए। प्लाज्मा थेरेपी पर भी बैन लग गया। बुखार के लिये जो फेवीफ्लू दे रहे वह भी फेल हो गया। ये तमाशा हो रहा है क्या, इसके बाद आई एम ने विरोध किया तो केन्द्रीय स्वास्थमंत्री के हस्तक्षेप के बाद बाबा रामदेव ने अपना बयान वापस ले लिया लेकिन उसके बाद फिर से मामला गरमा गया है। वैसे भी आयुर्वेद को अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक चिकित्सा बनाने वालों की कमी नहीं है। दोनों चिकित्सा पद्धति की अपनी खूबियां हैं। उनका सम्मान हर किसी को करना चाहिए। अब बाबा रामदेव का कहना है कि वे एलोपैथी या डाक्टरों के खिलाफ नहीं है। उनकी लड़ाई ड्रग माफियाओं से है।

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