क्या मानवीय चेहरा उभरा था पुलिस का लेकिन सीटू तालाब कांड ने…

जमशेदपुर, 7 अप्रैल (रिपोर्टर) : बिरसानगर जोन नंबर पांच निवासी विक्की महतो के तालाब में डूबकर मरने की घटना बहुत ही हृदयविदारक है. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सख्ती हो लेकिन तरीका बिरसानगर सीटू तालाब वाला न हो. इसमें एक गरीब का परिवार उजड़ गया और उसकी मां को जीवनभर कुहकने के लिए छोड़ दिया गया. मुआवजा भले 25 लाख या 30 लाख रुपये मिल जाएं या उसकी मां को स्थाई या अस्थाई नौकरी मिल जाए लेकिन इससे एक युवा के जीवन की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती.
यह सच है कि जब लॉकडाउन घोषित है तो विक्की को घर से नहीं निकलना चाहिए लेकिन पुलिस को भी वैसी जगह पर नहीं खदेडऩा चाहिए था जब कोई छत पर चढ़ा हो या नदी अथवा तालाब के किनारे पहुंच गया हो. भले वह तैरना नहीं जानता था लेकिन उसे यह जरूर मालूम था कि गरीब का बेटा जब पुलिस के हत्थे चढ़ता है तो उसके साथ कौन सी डिग्री इस्तेमाल होती है. वह नाबालिग भी नहीं था कि बचकानी हरकत मानी जाती. कहा जाता है कि वह किसी टेंट हाउस में काम करता था. जब उसने तालाब में छलांग लगाई तो पुलिस टीम को बचाव में आगे आना चाहिए था लेकिन वह पुलिस टीम की मौजूदगी में डूब गया. किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की, अलबत्ता थानेदार ने यह धमकी दे डाली कि निकलो….तो बताते हैं. एक तो वर्दी का खौफ और दूसरे धमकी के बाद की स्थितियों की कल्पना कर शायद उस युवक ने हाथ-पांव मारने की कोशिश भी नहीं की.
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब जिला पुलिस की बड़ी तारीफ हो रही है उसके द्वारा वर्तमान में किए जा रहे मानवीय कार्यों की वजह से. हमें-आपको घर से नहीं निकलना है कि हम कोरोनावायरस के संक्रमण ेस बचे रहें लेकिन हमारी पुलिस दिन-रात गली-मोहल्लों और चौक-चौराहों पर डटी रहती है. बाहर निकलने वालों को टोकती रहती है. सब्जियां खरीदते वक्त चेतावनी देती रहती है कि झुककर सब्जी नहीं खरीदें. उस सब्जी वाले से नहीं खरीदें जिसने मास्क नहीं लगा रखा है. इसमें पुलिस का कोई लाभ नहीं है. पूरी की पूरी पब्लिक के हित की बात है. ऊपर से सरकार ने थाने में किचन चलाने का भी एक अतिरिक्त दायित्व सौंप दिया है. इस दायित्व को भी वह बखूबी निभा रही है लेकिन सीटू तालाब की घटना और एक थानेदार की भूमिका उसके दामन को दागदार कर गई. जो अमानवीय चेहरा इस घटना से उभरकर पुलिस का नुमाया हुआ है, उसे सामान्य करने में उसे वर्षों लग जाएंगे. खबर आई है कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच करने का आश्वासन मिला है. अच्छी बात है. लेकिन पुलिस के हाथों या उसकी वजह से जब कोई अपराध हुआ है तो आज तक यहां कोई ऐसा जांच निष्कर्ष सामने नहीं आया जिससे लगे कि पुलिस अपने बारे में भी दूध का दूध और पानी का पानी कर सकती है.
स्थानीय लोगों के अनुसार इस कांड में भी थाना प्रभारी की भूमिका संदेह के घेरे में है जिनके रवैये से पहले से ही क्षेत्र में काफी असंतोष व्याप्त बताया जाता है. पूर्व में भी इनके बारे में उच्चाधिकारियों से शिकायत की गई है. खासकर विक्की के तालाब में कूदने के बाद पुलिस का वहां से खिसक जाना क्षेभ का विषय बना हुआ है. अधिक संभव है कि जांच पुलिस के अधिकारी(छोटा या बड़ा) ही करें. जांच की रिपोर्ट पेश करने का तो कोई टाइमलाइन दिया ही नहीं गया है. यह हफ्तों में आ सकती है, महीनों में आ सकती है या वर्षों भी लग सकते हैं. लेकिन विक्की का घर तो उजड़ गया. उसकी मां तो बेटे के लिए हूकती ही रहेगी.

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