सप्तम कालरात्रि

उपासना मंत्र : एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता. लम्बोष्ठी कणिर्काकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा. वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
सातवां स्वरूप देखने में भयानक है, लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है. इन्हें ‘शुभंकरी’ भी कहा जाता है. ‘कालरात्रि’ केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं. यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं. यह वर्ण और वेश में अद्र्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं. इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है. एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकडक़र दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं. इनकी सवारी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है.

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