गांधीजी से एक भेंट

गाँधी जयंती के दिन मुम्बई एयरपोर्ट पर स्थित एक खादी की दुकान में गाँधी जी से भेंट हो गई। वहाँ गांधी जी की संगमरमर से बनी एक बहुत खूबसूरत सफेद मूर्ति का दर्शन हो गया ।
मुर्ति वाकई बहुत सुंदर और आकर्षक थी और उसकी मुद्रा अत्यंत सजीव थी । चौक चौराहे की मूर्ति से बिल्कुल अलग, बहुत साफ सुथरी और चेहरे पर आकर्षक मुस्कान। बापू की इतनी सुंदर मूर्ति पहले कभी नही देखा था। इस मूर्ति की सुंदरता देखकर मुझे बहुत प्रशन्नता हुई। मुझे ऐसा लगा की मूर्ति से बात करूँ शायद मूर्ति बात करने को इच्छुक हो। श्रद्धा से मेरा सिर झुक गया, मैने उन्हें सादर प्रणाम् किया और मन ही मन सोचा कि बापूजी तो यहाँ वातानुकूलित वातावरण में बहुत अच्छे और साफ सुथरे दिख रहे हैं, इनको यहाँ कोई तकलीफ नहीं है। धूल बारिश और कबूतरों की गंदगी से परेशानी नहीं है। ऐसा सोच ही रहा था कि अचानक मुझे लगा की बापू की मूर्ति कुछ बोली “हाँ जी मैं यहाँ बिल्कुल ठीक हूँ”। यहां रोज मेरी देख भाल होती है, साफ सफाई का भी अच्छा इंतेजाम है, वातानुकूलित वातावरण भी अच्छा है क्योंकि यहाँ एयरपोर्ट पर बिदेशी सैलानी आते जाते रहते है। वे बड़ी खुशी से हमे देखते है, मेरे बारे में बातें करते है और खादी के वस्त्र भी काफी ऊंचे दाम पर खरीदते है। देशवाशियों से अधिक उत्सुकता से बिदेशी ही मुझे देखने आते है और मेरे बारे में बात करते हैं। पर मुझे दुःख तब होता है जब वे बात करते करते मेरा नाम महात्मा गांधी बोलने के बाद इंदिरा गांधी संजय गांधी आदि आदि बोलने लगते हैं। मुझे अपने देशवाशियों में बड़ो से ज्यादा बच्चे मुझे बड़ी उत्सुकता से देखते है। पर अफसोस कि उनके माता पिता इन बच्चों को तुरंत खींच कर हमसे दूर ले जाते है। देशवासी न तो हमारी ओर देखते है, न ही बच्चों को देखने देते हैं। उनकी खादी में भी कोइ रुचि नहीं और न ही खरीदते है। खरीदे भी तो कैसे! आज खादी वस्त्र इतना महंगा है कि आम आदमी की पहुँच से बहुत दूर है । खादी तो नेताओं तक सीमित हो गया । नेता भी केवल स्वार्थवश दिखावे के लिए खादी पहनते है। उनके परिवार में कोई खादी नहीँ पहनता न किसी को खादी से लगाव है। मैं सब देखता हूं पर चुप रहता हूँ, मूर्ति जो हूँ । खादी की शुरूआत हमने गरीब जनता को आत्मनिर्भर बनाने के लिए किया था पर वो हो न सका।
दुकान का वातावरण और अंदर का तापमान बेहद खुशनुमा, सुखद और आरामदायक था। बापू को बातचीत करता देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई और मैं अपने को गौरवान्वित महसूस करने लगा। मैं खुश था कि बापू की मूर्ति यहाँ इज्जत और आराम से है तथा बहुत खुश् है। पर अचानक कुछ हुआ और ऐसा महसुस हुआ कि मूर्ति कुछ दुःखी है। मैने उत्सुकतापूर्वक उनसे बोला कि आप तो यहाँ बड़े आराम से है। मेरे ऐसा कहते ही उनकी मुद्रा तुरन्त बदल गयीं और शिकायती लहजे में बोले कि वो देश की वर्तमान दुर्दशा से काफी दुःखी हैं। उन्होंने कहा कि मेरा सिद्धान्त मुख्यतः सत्य, अहिंसा और सर्वधर्म समभाव था। मैं इन्ही सिधान्तो पर देश को आगे ले जाना चाहता था और सोचा था कि आगे चलकर मेरे इन्ही सिद्धान्तों से पूरे देश मे शांति, भाईचारा और विकाश का माहौल होगा। पर अत्यंत दुखी होते हुए वे बोले आज देश मे क्या हो रहा है? चारो तरफ अराजकता, अशांति, मारकाट , हत्या, बलात्कार और सत्ता में भरस्टाचार की पराकाष्ठा है। सन्तरी से मंत्री तक घूसखोर हो गए। लगभब सभी कार्यालयों में मेरी तस्वीर टँगी है और मेरी ही तसवीर के नीचे चपरासी से लेकर ऑफीसर तक जनता से बड़ी बेशर्मी से रिश्वत मांगते हैं। मुखिया , नेता अफसर सब सर से पॉँव तक तक भ्रष्टाचार में लिप्त है। आम जनता तो अभी भी गुलाम ही है। ये सब प्रभु श्री राम के आजाद भारत जैसे सभ्य और सुसंस्कृत देश मे कलंक हैं।
किस मुंह से हम कहे कि हम आजाद है। इसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम का देश कैसे कहा जाए। किसी सभ्य लोकतांत्रिक देश में ऐसी घटनाये अति निंदनीय है। सोचो इस साल नव वर्ष पर भीमा कोरे गांव की घटना, मुम्बई और पुणे के शर्मनाक हालात, शहरी नक्सलियों, गो हत्या, मोब लॉन्चिंग, हिंदू मुस्लिम के बीच नफरत ,भरस्टाचार , बलात्कार ,बैंक लुट, योजनाबद्ध घोटालेबाज आदि घटनाओं से भला कोई कैसे सुखी रह सकता है। देश कैसे प्रगति करेगा। ऐसा कहते हुए उनकी आंखों से आँशु निकलने लगे । मैं स्तब्ध रह गया सोचने लगा, मूर्ति और आँशु, मै उनके आँशु पोछने लगा। फिर अचानक उनकी नजर मेरे हाथ की वाटर बोतल पर पड़ी। पूछा – ये क्या है। मैंने कहा पानी की बोतल।
वे बोले लोटा है तो उसीसे थोड़ा पानी पिला दे, बहुत प्यास लगी है। मैने कहा बापू लोटा अब लुप्त हो गया अब इसी प्लास्टिक की बोतल में पानी 25 रु लीटर बिकता है और यहाँ एयरपोर्ट पर 100 से 150 रु. लीटर बिकता है। वे पानी की बिक्री सुनकर चौक गए! बोले क्या ईश्वर का दिया ये वरदान पानी भी बिकता है। हाय राम ये क्या हो गया। मानवता रुपयो के लिए बिक गई। पहले पानी पिलाना पुण्य का कार्य था और सब जगह स्वेक्षा से निस्वार्थ भाव से लोग प्यासे को प्रेम से पानी पिलाते थे। मैं बोला बापू अब पानी तो क्या सबका पानी बिक गया। आज के इस भौतिक उपभोक्ता वाद बाजार में MP, MLA, जज, कलेक्टर, पुलिस,चौकीदार सब बिकाऊ हैं। मैन कहा बापू यहां तो अब पूरा का पूरा सदन ही रातों रात बिक जाता है और पलक झपकते सरकार बदल जाती है । बस खरीददार चाहिए।
बापू अत्यधिक निराश हो गए और उनका गला सूखने लगा। बोले पहले पानी पिला। मैंने उन्हें पानी पिलाया और वो पूरी बोतल गटागट पी गए।
पानी पीते ही उनकी मूर्ति में सजीव हो गई और जान आ गयी। अब गांधीजी और अधिक बोलने की मुद्रा में आ गए। वे बोले तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो। हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां बनाते है , उनकी पूजा करते है, उन पर जल चढ़ाते है । मैने कहा जी हाँ, पूजा करते हैं। देखो , मुझे भी मूर्ति में तब्दील कर दिया पर आज तक किसी ने भी न एक बूंद न जल अर्पित किया और न प्रसाद। मैं 70 वर्षों से चौराहे पर धूप बरसात में भूखा प्यासा यूँ ही खड़ा हूँ। तुम पहले ब्यक्ति हो जिसने मुझे जल पिलाया। वे आगे बोले अगर लोग हमें एक बूंद जल भी अर्पित नहीँ कर सकते तो देवता की तरह मेरी मूर्ति बनाने की क्या जरूरत थी। मैं मरने के बाद सीधा स्वर्ग जाता या नरक जो भी मिलता वहाँ आराम से रहता। सुनो, देव और प्रेत का भोजन केवल जल होता है इसी से वो प्रसन्न होते हैं. इस नाते हमें जल तो मिलना ही चाहिए था । पर अफसोस किसी ने भी आजतक जल भी अर्पित नही किया।
हमारे नेताओं ने हर जगह चौक, चौराहे पर मेरी मूर्ति खड़ी कर दी, मैदान का नामकरण कर दिया पर अफ़सोस मेरे विचारों को किसी ने न अपनाया और न आगे बढ़ाया। गोडसे ने तो मेरे शरीर की हत्या सिर्फ एक बार की, पर कांग्रेसियों ने और अन्य दलों के नेताओँ ने रोज रोज तिल तिल कर मेरी आत्मा को ही मार डाला। मेरी मूर्ति बनाकर अपने कर्तब्य की इतिश्री कर ली। मूर्ति बनाने से मेरी आत्मा इन मूर्तियों से जुड़ गई और मैं इधर उधर देश के अन्य हिस्सों में विचरण करता रहता हूँ। पर मेरी सुध कोई नही लेता, न सरकार, न नगरपालिका और न जनता। मुझे और मेरी मूर्ति को सिर्फ 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को कुछ मुठ्ठी भर लोग याद करते है। उस दिन थोड़ी साफ सफाई कर माला पहनाकर और थोड़ी भाषण बाजी कर नेता सार्वजनिक फण्ड का सुख उठाते हैं और नेता जनता दोनो गायब हो जाते है। बाकी दिनों में मैं फिर धूप, बारिश , ठंढ और भयानक प्रदूषण में जलऔर भोजन के बिना खड़े खडे सड़क पर चलने वाली गाड़ियों का धुआं खाते हुए रोज मरता रहता हूँ। मैं उनकी बात सुन कर बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा कि मूर्तियों को भी हमसे आशाएं होती है। हम मंदिरों में जाकर भगवान की मूर्तियों पर पूजन हेतु जल चढ़ाते है, प्रसाद चढ़ाते है फिर स्वयं उन्हें श्रद्धा से ग्रहण करते है। पर गांधी जी की मूर्ती के साथ हम ऐसा कभी नही करते। या तो हमे ऐसे महान मानव की मूर्तियां नही बनानी चाहिए, या अगर बनाते है तो उसकी प्रतिदिन अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए । उसकी पूजा और प्रसाद की ब्यवस्था करनी चाहिए। और अगर हम इन मूर्तियों की देखभाल नहीँ कर सकते तो मूर्तियां बनाते ही क्यों है?
मैने फिर गांधीजी को प्रणाम् किया और उसके बाद सीधा सवाल किया, बापु आपकी कांग्रेस पार्टी आज तक है और युवा राहुल गांधी उसके अध्यक्ष है। फिर मोदीजी भी गुजरात से है , आप कहे तो मैं उनतक आपकी शिकायत पहुंच दूं। वो आपकी शिकायत अवश्य दूर करेंगे।
उन्होंने पहले तो पूछा कौन कांग्रेस, और कौन राहुल गांधी, फिर कठोर मुद्रा बनाकर बोले मैं किसी को नही जानता।
हमने कहा , वही 1885 वाली कांग्रेस जिसके सहारे आपने और नेहरू जी ने आजादी की जंग लड़ी। वही नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी जी का पोता राहुल गांधी अभी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं।
इस बार वो थोड़ा गहरे मुस्कुराये और फिर अचानक गम्भीर मुद्रा बनाकर बोले।आज तक सब मेरे नाम को भुनाते आये है। सभी पार्टियां मेरे नाम को बेचती है और जनता को मूर्ख बनाती है, आपस मे लड़वाती है सिर्फ वोट बटोरने के लिए । सब मेरे नाम को भुनाति हैं, इंदिरा गांधी ,राजीव गांधी,संजय गांधी,सोनिया गांधी ,राहुल गांधी। इन्होंने कभी इस गांधी को समझा क्या, गांधी दर्शन को जाना क्या। किसी को भी मेरी चिंता नही है और न ही जनता की चिंता है। मैने जैसी कल्पना की थी वैसा मेरे सपनों का भारत नही बना। आजादी के ठीक बाद मैंने कांग्रेस को भंग करने की सलाह दी थी। पर नेहरू ने ऐसा नही किया । भारत और पाकिस्तान के बटवारे के खिलाफ और हिन्दू मुस्लिम दंगों के खिलाफ मैं धरने पर बैठा। पर अफसोस कि जिन्ना और नेहरू ने मेरी सुझाओ को नहीँ माना और जनता की लाशों पर देश का बटवारा हो गया। सत्ता की लालच में मुझे दरकिनार कर दिया गया। आजाद भारत मे भी मेरी आवाज नहीँ सुनी गई।
तुम्ही बताओ-
देश मे गोहत्या बंद नही हुई।
शराब बंद होने के बजाए सरकारे शराब बेचने लगी। और इसे आय का महत्वपूर्ण श्रोत बना लिया।
संसद में गुंडे अपराधी खुलेआम चुन कर आते है।
गांव आदर्श नही बन सके, मुखिया सरपंच सब ग्रामिणों को लुटते है।
शिक्षा का स्वरूप देशी से विदेशी हो गया। बच्चे को अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने के बजाए अंग्रेजी में दी जाती है । शिक्षा आम आदमी की पहुँच से दूर होती जा रही है।
गांव और किसान की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है।
क्या क्या गिनाऊँ हर क्षेत्र बेहाल है।
राजनेताओं के बोल इतने गिरे हुए है कि घिन आती है। माताएं बहने हर दिन कहीं न कहीं बलात्कार की शिकार होती हैं।
देखा कि बापू घोर आंतरिक वेदना से टूटने लगे और बोले तुम जाओ मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और फिर मेरी किसी मूर्ति को पानी मत पिलाना वरना मूर्ति में जान आ जाती है और फिर वो ज्यादा दुःखी हो जाएगी। मेरे विमान का समय हो चला था मैंने भारी मन से बापू को प्रणाम किया और अपने विमान की ओर बढ़ चला।

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