लखीमपुर खीरी : संविधान और अभियोजन की परिभाषा ही बदली जा रही है

गृह राज्य मंत्री को बेटे को बचाने का पूरा हक लेकिन इस्तीफे के बाद

अभियोजन सरकार का जिम्मा होता है,खासकर गृह मंत्रालय के अधीन सारी प्रक्रियायें चलती हैं। लखीमपुर खीरी कांड में अभियोजन गृह राज्य मंत्री के पुत्र के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किये हुए है। इस नाते गृह राज्य मंत्री का जिम्मा है कि वे अभियुक्त के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया पूरी कराये लेकिन यह इतिहास बन रहा है कि देश का गृह राज्य मंत्री खुलेआम अभियुक्त के बचाव में तर्क गढ रहा है। संविधान में एक संप्रभु राज्य का जिम्मा होता है कि वह पीडि़त पक्ष के लिये अभियोजन की कार्रवाई पूरी करता है और हर अभियुक्त को अपने कानूनी बचाव के लिये मौका देता है। देश के वर्तमान गृह राज्य मंत्री संविधान की एक नई परिभाषा गढ रहे है ंजब वे पीडि़त पक्ष के बजाय अभियुक्त के बचाव में दिल्ली से लखनऊ तक सरेआम वयानबाजी कर रहे हैं। सरकार भी उनको ढोकर चल रही है।
आज सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी कांड में यूपी सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पर असंतोष जताया और अभियुक्त को तुरंत पकडऩे की कार्रवाई करने को कहा। यूपी पुलिस ने भी हदकर दी जब उसने दफा 302 के अभियुक्त को अपना पक्ष रखने के लिये द.प्र.स 160 के तहत नोटिस भेजा। क्या 302 के आरोपी को नोटिस देकर पुलिस देश में कहीं बुलाती है? सुप्रीम कोर्ट ने आज कुछ ऐसा ही सवाल किया। सुप्रीम कोर्ट के आजके निदेश के बावजूद यूपी पुलिस ने अभियुक्त को दूसरी नोटिस दी। पहले नोटिस पर अभियुक्त हाजिर नहीं हुआ तो दूसरी नोटिस दी गई। यही यूपी है जहां के मुख्य मंत्री बंगाल चुनाव में भी आकर गरज चुके हैं कि यूपी मे ंकानून का शासन चलता है। सच भी है वहां अनेक मामलों में अनेक अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई की गई और उनके घर तक ढाह दिये गये। वहां तो गाड़ी पलटने की चर्चा पूरे देश में होती है। लेकिन ऐसी क्या वजह है कि लखीमपुर जैसे कांड में नामित अभियुक्त के साथ कानूनी कार्रवाई की आड़ में खेल खेला जा रहा है। गृह राज्य मंत्री अपने अभियुक्त पुत्र के पक्ष में खुलेआम बचाव करते जैसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं वह सरकार से उम्मीद नहीं की जाती। सरकार या मंत्री का कोई भी वयान संवैधानिक दायरे और परिप्रेक्ष में दिया जाता है। जब गृह राज्य मंत्री ही कहते हों कि अभियुक्त बेकसूर है तब पुलिस बेचारी की क्या हिम्मत की वह उसे पकडऩे के लिये सख्ती करे। जांच के बाद रिपोर्ट आने तक कार्रवाई की बात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी कह रहे हैं लेकिन सरकार का मंत्री बिना जांच के ही अभियुक्त के पक्ष में सर्टिफिकेट बांट रहा है। संविधान और कानून के राज की परिकल्पना का संरक्षण जिस ‘राज्य’ से किया जाता हो जब वह राज्य ही पीडि़त के बजाय अभियुक्त के साथ खुलेआम दिखाई दे तब कानून का शासन और संविधान के पालन की बात बिलकुल बेमानी लगती है। अजय मिश्र को अपने पुत्र का बचाव करने का पूरी हक है लेकिन एक गृह राज्य मंत्री की हैसियत से नहीं । इस हैसियत में अभियोजन और पीडि़त उनसे संरक्षण मांगता है। अजय मिश्र को अपने पुत्र का बचाव करने के लिये मंत्रिपद से इस्तीफा देकर अदालत का रुख करना चाहिए। पीडि़त या किसी अपराध का शिकार किसी भी व्यक्ति के हाथ का हथियार उसकी प्राथमिकी होती है और अभियोजन उसका सहारा, लेकिन यहां प्राथमिकी दर्ज करने वाले अभियोजन के आका ही उस प्राथमिकी को झुठलाने में लगे हैँ। कैसे होगा न्याय और कैसे बहाल होगा कानून का शासन?

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