प्रेम व रंगों के त्योहार ”होली” के आगमन का संदेश दे रही फिजाओं में फूलों की बहार

”देखकर अपने प्रेमी वसंत को प्रकृति में बहार आयी, उसके मुरझाये अधरों पर मधुर-मधुर सी मुस्कान छायी। लगी वह डाली-डाली डोलने कुछ शरमायी सी कुछ इतराई सी, अपनी अनुपम सुंदरता खोलने, करने लगी अठखेलियां। मिलकर अपने प्रियतम से रंग-रंग में रंग दिया वसंत ने, उसको रंगों की होली में रंग-रंगीले रंग में, मगन है दोनों हमजोली में”। कवियत्री निधि अग्रवाल ने शायद ऋतुराज वसंत एवं ”होली” के प्रेममिलन पर यह कविता की रचना की। वैदिक युग से होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसका सामाजिक महत्व है, यह एक ऐसा त्योहार होता है जब लोग आपसी मतभेद को भूलकर मित्रता करते हैं। माना जाता है कि होली के दिन अगर किसी को भी लाल रंग का गुलाल लगाया जाता है तो सभी तरह के मन में बसा बैर भावना व मतभेद दूर हो जाते हैं। क्योंकि लाल रंग प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है। इसलिए यह आपसी प्रेम और स्नेह बढ़ाता है। वहीं धार्मिक महत्व है कि इस दिन होलिका दहन में सभी तरह के नकारात्मक शक्तियों का विनाश हो जाता है व सकारात्मक शक्ति उत्पन्न होने लगता है।

प्रेममिलन, भाईचारे व रंगों का त्योहार भी है होली। भारत में होली का आयोजन आदि काल से होता है। लेकिन द्वापर युग में प्रभु कृष्ण और राधिका ने इस त्योहार को ”अमरप्रेम” के रूप में एक नया आयाम रच दिया है। धर्म ग्रंथों में होली के आयोजन का अनेक कथाएं प्रचलित है। परंतु सही मायनों में देखा जाय तो होली प्रेममिलन का प्रतीक है। जब महुआ की फूल, आम्रमंजरी व विभिन्न वनफूलों की मादक सुगंध से वातावरण में मादकता छाती है, धरा को पलाश के फूल लाल रंग से पाट देती है, सरसों के फूल प्रकृति को स्वर्णमयी बना देती है, कोयल की कुक, भ्रमर का गुंजन, वृक्ष में नवपल्लव का जन्म, फिजाओं में खुशबू, पक्षियों का चहचहाहट वातावरण को संगीतमय व आकर्षक बना देती है तो समझ लीजिए ”प्रेम व रंगों” के प्रतीक त्योहार ”होली” के आने का संदेश दे रही है।

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