भारतीय वैैज्ञानिकों को सलाम

भारत ने वह कर दिखाया जो आज तक दुनिया के किसी देश को नसीब नहीं हुआ था। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश हो गया है। चांद पर अब तक रूस, अमेरिका और चीन ने कदम जरूर रखे थे मगर सभी ने उतरी ध्रुव पर ही अपना अभियान सफल बनाया था। दक्षिण ध्रुव को बेहद जटिल और कठिन माना जाता है। यही कारण है कि आज तक दुनिया का कोई भी देश यहां नहीं पहुंच पाया था लेकिन भारत ने वह सब कर दिखाया। भारतीय वैज्ञानिकों को इस उपलब्धि के लिए सलाम। उन्होंने सतत प्रयास से देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। करीब 4 साल पहले जब चंद्रयान दो की लैंडिंग सफल नहीं हो पाई थी तभी भारतीय वैज्ञानिकों ने यह संकल्प ले लिया था कि वे अगली बार उन तमाम तकनीकी खामियों को दूर करते हुए भारत के कदम चंद्रमा पर रखेंगे और वहां तिरंगा लहराएगा। 23 अगस्त 2023 का दिवस भारत के लिए इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने वाला हो गया। शाम 6.04 बजे जैसे ही चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लाइनिंग हुई पूरा देश झूम उठा। भारत ही नहीं,पूरी दुनिया की नजर इस बड़े अभियान पर लगी हुई थी और हर कोई इस पल को देखने के लिए आतुर था। कहा जाता है कि 8.4 मिलियन लोगों ने इस सॉफ्ट लैंडिंग के बड़े अभियान को देखा। आज तक दुनिया में किसी एक इवेंट को इतने लोगों ने एक साथ नहीं देखा था। यह दर्शाता है कि यह कामयाबी कितनी बड़ी है। अगले दिन यह भी अच्छी खबर आई की रोवर प्रज्ञान सफलतापूर्वक अलग होकर काम करने लगा है। चंद्रमा की सतह पर वह 14 दिनों तक काम करेगा और वहां से महत्वपूर्ण जानकारियां भारत को भेजेगा। माना जा रहा है कि करीब 2 लाख साल के चंद्रमा के इतिहास की पूरी जानकारी इन 14 दिनों में भारत के पास पहुंच जाएगी। रोवर में लगे लेजर चांद की सतह का अध्ययन करेगा और वहां मौजूद खनिज और गहरी गड्ढों में छिपे बर्फ को भी तलाशी करेगा। रोवर से कई यंत्र भी निकलेंगे जिसमे रंभा भी शामिल है। रंभा चंद्रमा के वातावरण की गहराई से अध्ययन करेगा ।
पूरे देश की धडक़न इन कल शाम करीब 19 मिनट तक रुक सी गई थी क्योंकि इसी क्षण को इस अभियान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा था। पिछली बार भी यहीं पर तकनीकी गड़बड़ी होने के कारण सफल लैंडिंग नहीं हो पाई थी। मगर इस बार वैसा कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स के देशों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए हुए थे। वहीं से वे इस अभियान को देख रहे थे और देश के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि विकसित भारत के शंखनाद का यह क्षण है। अभी तक चांद को लेकर कई तरह के रहस्य बने हुए हैं। भारत अब चंद्रयान के जरिए इन रहस्यों से धीरे-धीरे पर्दा उठाएगा। विक्रम लैंडर पर जो चार पेलोड्स हैं वह अलग-अलग तरह से काम करेंगे। रंभा चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा के घनत्व और मात्रा बदलाव की जांच करेगी। जबकि चश्ते चंद की सतह की गर्मी की जांच करेगा। हिल्स लैंडिंग साइट के आसपास भौगोलीय गतिविधियों की जांच करेगा जबकि लेजर रिस्टोर रिफ्लेक्टर अरे चांद के डायनामिक को समझने का प्रयास करेगा। इन सबसे पूरी दुनिया को कई रहस्यों के बारे में जानकारी मिलेगी। वह वैज्ञानिकों को उनके अध्ययन और रिसर्च में बहुत फायदे वाली बात होगी इसरो दुनिया में अपने की भाई थी कमर्शियल लैंडिंग के लिए जाना जाता है अब तक 30 देश के 424 विदेशी सैटेलाइट को वह छोड़ चुका है जिसमें 104 सेटेलाइट एक बार छोडऩे का भी इस्तेमाल उसके नाम है अभी तक दुनिया में नासा का ही डंका बजता रहता था लेकिन अब इसरो भी उसी श्रेणी में आकर खड़ा हो गया है। यह भारत के लिए बहुत बड़े गर्व की बात है।

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