चमकता आईना-प्रकाशन के 25 साल और पत्रकारिता

लोकतंत्र में पत्रकारिता के महत्व को हर कोई समझता- जानता है। समय के साथ साथ लोकतंत्र के हर पहलुओं में काफी बदलाव आया है। यह स्वाभाविक भी है। समय के साथ बहुत सारी चीजें बदल जाती हैं, मगर जो मूल आधार है उसका हमेशा महत्व रहता है। पत्रकारिता के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। इसी कारण आज चौतरफा निशाने पर होने के बाद भी पत्रकारिता का काफी प्रभाव है। कभी पीत पत्रकारिता को लेकर सवाल उठाए जाते थे, आज गोदी मीडिया या लुटियंस मीडिया को लेकर मीम बनाए जाने लगे हैं । पत्रकार- पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर इतना बड़ा संकट शायद इसके पहले कभी देखने को नहीं मिला। समय के साथ साथ पत्रकारिता के स्वरूप में भी बहुत बदलाव हुए।एक समय पत्रकारिता का मतबल प्रिंट मीडिया होता था। यही मापदंड और मानदंड था पत्रकारिता का। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है । 90 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दौर शुरू हुआ। आज सोशल मीडिया या वेब मीडिया तेजी से अपना प्रभाव बना रहा है। इस कारण पत्रकारिता की पहुंच अब और सशक्त होती जा रही है । इसका प्रभाव कितना है इस पर चर्चा और बहस करने के बजाए यह देखना जरूरी है कि लोग पत्रकारिता को महत्व कितना देते हैं ।
इतना तय है कि आज भी पत्रकारिता में शब्दों के चयन, उनकी प्रस्तुति और आम जनमानस के साथ उसके रिश्ते की पवित्रता सर्वोपरि मानी जाती है। समाचार पत्र दस्तावेज के रूप में सहेज कर रखे जाते थे। तुलसी का पौधा और तुलसी के पत्ते की तरह पत्रकारिता छोटी बड़ी नहीं होती। सभी का अपना और बराबर का महत्व है। राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों को बड़े पत्रकार होने का हमने जो दर्जा दे रखा है उसका दंश भी हमें ही झेलना पड़ता है। किसी खास नीति या नियत के तहत भी वे अपनी धारणा पूरे देश पर थोपने लगे रहते हैं। उनका अपना एजेंडा होता है और उसे पूरे देश पर थोपा जाता है। उनकी पत्रकारिता को देखकर साफ कहा जा सकता है कि वे किस मानसिकता से काम करते हैं। सही को सही और गलत को गलत कहने वाले पत्रकारों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।
ऐसे में क्षेत्रीय पत्रकारिता का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है भारत जैसे विवधिता वाले देश में जहां की बहुत बड़ी आबादी जिस क्षेत्रों में निवास करती है वहां क्षेत्रीय पत्रकारिता की ही पहुंच होती है। हिन्दी सहित भाषाई पत्रकारिता का ऐसे क्षेत्रों में खासा प्रभाव होता है। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों और अभाव में रहने के बाद भी वोकल फॉर लोकल की अहमियत को क्षेत्रीय पत्रकारिता एवं क्षेत्रीय समाचार पत्र ही पूरा करते हैं । क्षेत्रीय पत्रकारिता के लिए या क्षेत्रीय समाचार पत्रों के लिए केवल लाभ मायने नहीं रखता । पिछले कुछ दशकों में राष्ट्रीय स्तर के माने जाने वाले कई समाचार पत्रों ने क्षेत्रीय स्तर पर प्रकाशन आरंभ किया मगर उनका सफर क्षणिक साबित हुआ। दशक दो दशक में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। जिस उद्देश्य से ऐसे क्षेत्रों में प्रकाशन आरंभ किए गए थे यह पूरे नहीं हो पाए समाचार पत्रों के प्रकाशन में समय के साथ साथ अधिक निवेश को महत्व दिया जाने लगा। बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगलने वाली प्रवृति यहां भी लागू की जाने लगी। ऐसे में स्थानीय अखबारों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया। या यूं कहे कर दिया गया। अखबारों में पठनीय सामग्रियों के स्थान पर ऐसी ऐसी सामग्रियां परोसी जाने लगीं जिससे पूरे शहर या समाज का सरोकार न के बराबर का है। पाठकों को ग्राहक बना दिया गया। पाठक और समाचार पत्र का रिश्ता बेहद आत्मीय होता रहा है अब वह नाता टूट जान पड़ता है । मगर क्षेत्रीय समाचार पत्र हर परिस्थिति में साथ खड़े नजर आते हैं ।
चमकता आईना के इतिहास और वर्तमान को देखें तो इसकी झलक साफ देखने को मिलती है आजादी की पहली किरण के साथ परम आदरणीय श्रद्धेय ब्रह्मदेव सिंह शर्मा ने इस क्षेत्र में पत्रकारिता की जो अलग जगाई, चमकता आईना आज उसी मजबूती के साथ उसे आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभा रहा है जमशेदपुर में चमकता के प्रकाशन के 25 वर्ष भलेे पूरे हो रहे हों मगर पत्रकारिता कां स्वर्णिम इतिहास इस समाचार पत्र के लिए गौरवशाली रहा है। ब्रह्मदेव सिंह शर्मा ने 15 अगस्त 1947 को देश के आजादी के साथ ही अखबार काप्रकाशन प्रारंभ किया था और उसी कड़ी में जमशेदपुर में चमकता आईना का शुभारंभ हुआ । चमकता आईना के 24 वें स्थापना दिवस के अवसर पर पिछले साल आयोजित भव्य समारोह में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने चमकता आईना को पत्रकारों की नर्सरी कहा था। उनका यह आकलन बिल्कुल सही है कि चमकता आईना ने न केवल स्थानीय लोगों की अनवरत सेवा की है, मगर साथ ही पत्रकारिता की एक ऐसी मिसाल एक ऐसा मापदंड कायम किया है जिसकी वजह से अनगिनत नवआगंतुक पत्रकारों ने इस समाचार पत्र के साथ अपने पत्रकारिता जीवन का शुभारंभ किया । गुरु जी के सानिध्य में पत्रकारिता के मूल मंत्रों को सीखा जाना पत्रकारिता का ककहरा सीखने जानने- समझने के बाद आज देश के विभिन्न हिस्सों में वे पत्रकारिता के मापदंडों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। यही वजह है कि चमकता आईना को केवल एक अखबार ही नहीं एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाता है ।
आज जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा का भी मजाक बना दिया जाता है। पक्ष-विपक्ष दोनो और से इस मुद्दे पर जो कुछ हो रहा है वह पूरा देश देख रहा है। हर संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठ रहे हैं। अपनी बात मनवाने के लिये कोई किसी भी हद तक पहुंच जा रहा है। ऐसे में समाचार पत्रों की भूमिका और भी बढ जाती है। चमकता आईना इस भूमिका को बखूबी समझता है और अपने दायरे में रहकर इसका निर्वहन करता रहा है और करता रहेगा।

Share this News...