आइए जानें क्या है छोटानागपुर का बोड़ाम – बाटिया परंपरा

अमूमन हमलोग देखते आए हैं कि नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए वास्तु शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि का सहारा लिया जाता है। लेकिन झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी – मूलवासी नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए बिल्कुल ही अलग उपाय करते हैं। इस उपाय से न केवल नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने की मान्यता है, बल्कि गांव के लोगों और जानवरों को सुरक्षित रखने का भी दावा किया जाता है। छोटानागपुर के आदिवासी समुदाय गांव में मनुष्य और जानवर सुरक्षित रखने के लिए के मकर संक्रांति के बाद जो भी पहला रविवार होता है, उस दिन सामुहिक रूप से अपनी परंपरा का निर्वहन करते हैं। उसे बोड़ाम बाटिया कहा जाता है।
मकर संक्रांति और टुसु परब के बाद कुड़मालि नया साल का पहला महीना माघ (जनवरी) के रविवार को ग्रामीण बोड़ाम – बाटिया करते हैं। जिसमें अपने घरों में साल भर उपयोग में आने वाली बांस के उपकरणों, चूल्हे की राख, ठुटका झाड़ू (आधा घिसा हुआ झाड़ू) इत्यादि के साथ साथ बीते साल के जो कुछ नकारात्मक ऊर्जा देने वाली वस्तुओं को इक्क्ठा करते हैं। उन इकट्ठा गए वस्तुओं पर एक लोटा पानी डाल उन्हें गांव के सीमा क्षेत्र के बाहर फेंका जाता है। बताते हैं कि ग्रामीणों का एक समूह सबसे पहले गांव में पुराने वस्तुओं को इकट्ठा करते हैं। फिर उन्हें रीतिरिवाज के साथ गांव के अंतिम सीमा पर फेंक आते हैं। इस दौरान नकारात्मक ऊर्जा के रूप में जिन्दा मुर्गी के चूजों को प्रतीकात्मक रूप से उड़ाकर उसे छोड़ दिया जाता है। ग्रामीण अपने ग्राम देवता से गांव के मनुष्यों और जानवरों के सुरक्षा की कामना करते हैं। बोड़ाम – बाटिया परंपरा के अनुसार पुराने वस्तुओं को फेंकने के बाद सामुहिक वनभोज का आयोजन होता है, जिसे ग्रामीण बनभूजनी कहते हैं। इस दौरान ग्रामीण सामुहिक रूप से सकारात्मक ऊर्जा के साथ कृषि कार्य करने और प्रकृति का संरक्षण करने का संकल्प लेते हैं।

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