33 करोड़ के घोटाले में सरायकेला सहकारी बैंक का पूर्व प्रबंधक गिरफ्तार मामला नौ व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लोन स्वीकृत करने से जुड़ा

सरायकेला, 22 मई (संवाददाता): झारखंड स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक सरायकेला शाखा के पूर्व प्रबंधक सुनील कुमार सत्पथी को आज गिरफ्तार कर लिया गया. अपराध अनुसंधान विभाग ने यह कार्रवाई की. इस संबंध में सरायकेला थाना में गत 21 अगस्त 2019 को धारा 419, 420, 406, 409, 467, 468, 471, 472, 120 (बी)/34 भा.दा.वि के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें प्राथमिकी सुनियोजित षडयंत्र कर सरकारी राशि का गबन करने का आरोप लगाया गया था.
अपराध अनुसंधान विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में दावा किया गया है, इन आरोपों को जांच के क्रम में सत्य पाया गया. सीआईडी के अनुसार यह मामला आर्थिक घोटाले से संबंधित है जिसमें करीब 33 करोड़ रुपये की सरकारी राशि का गबन करने का आरोप है.
इस मामले में दूसरा पक्ष यह है कि पूर्व में को-ऑपरेटिव बैंक के एमडी एवं तत्कालीन सचिव के बीच लंबा विवाद चला. पूर्व प्रबंधक सत्पथी को निलंबित किया गया और उनके स्थान पर नियुक्त प्रबंधक प्रदीप कुमार सामल पर दबाव बनाकर अनधिकृत ढंग से प्राथमिकी दर्ज कराई गई. इतनी बड़ी कथित राशि के गबन पर ऊपर के सक्षम अधिकारियों को प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए थी.
यह मामला 9 प्रतिष्ठानों को व्यापारिक ऋण स्वीकृत करने से जुड़ा है. इनमें 3 प्रतिष्ठानों के लोन एकाउंट सेटल भी हैं और उक्त राशि में कुछ करोड़ रुपये बैंक को रिपेमेंट भी किए गए हैं. यह मामला ऋण के समतुल्य जमानत संपत्ति मोर्टगेज नहीं करने का पहले बताया गया जिस पर ऋण प्राप्तकत्र्ता ने और संपत्ति दने के लिए प्रक्रिया भी शुरू की. प्राथमिकी दर्ज करने के समय बैंक का 28 करोड़ रुपये ही लोन अकाउंट का था जिसे 33 करोड़ बतया गया है. लोन स्वीकृति प्रक्रियाओं में भी कतिपय गड़बडिय़ों का मामला बना था जैसे डिपोजिट राशि का ट्रांसफर, आफिस मद की राशियों का भी ट्रांसफर आदि. सत्पथी को नोसिट भेज कर अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया था जो आज सीआईडी कार्यालय गए थे जहां उन्हें हिरासत में ले लिया गया.
ऋण राशि रोड डिवीजन के ठेकेदार संजय डालमिया को दी गई जो कोल्हान के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इसी को-ऑपरेटिव बैंक की शाखा के वित्तीय सहयोग से काम करता आया है और जिसके पास बैंक ऋण चुकाने के लिए पर्याप्त पुश्तैनी संपत्ति है. व्यापार और रोजगार बढ़ाने के चक्कर में लिया गया कर्ज अधिकारियों की आपसी लड़ाई में कारोबारियों के गले की फांस बनाने और उनकी मजबूरी बनाने से अभियोजन की बचने के लिए हमेशा सलाह मिलती रही है.

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