हमदर्दी और देखभाल है कोरोना से लडाई में हमारा साथी

प्रसांता दास
चीफ फील्ड ऑफिसर, यूनिसेफ,रांची
कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां, शारीरिक चुनौतियों की तरह ही विविध तथा जटिल है। घोरमानवीय पीडा की इस घडी में स्वास्थ्यकर्मियों पर अपने कर्तव्यों को पूरा करने का भारी दबाव है। कर्इ मौकों पर उन्हें जनता तथा खुद के प$डोसियों तक का पर्याप्त सहयोग एवं सहानुभूति नहीं मिलता। संगठित तथा असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कूशल एवं अकुशल कर्मियों के लिए भी अपनी आजीविका को खोना चिंता तथा तनाव का कारण बन गया है। महामारी के कारण हुए लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा में भी ब$ढोतरी देखी जाती है। कई महिलाओं एवं बच्चों को घरेलू हिंसा के कारण डर के साये में जीना पडता है।
कोरोना महामारी ने कई मायनोंं में हमार उपर एक मनोवैज्ञानिक असर डाला है, जिसके कारण मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल करना काफी महत्वपूर्ण है। खुद की देखभाल के प्रति एक सक्रिय दृष्टिकोण, संकट की इस घ$डी में चिंता एवं भय से उबरने के लिए आवश्यक है।
संकट के इस समय में मन को मजबूत रखना आवश्यक है। इस समय का उपयोग हम अपने पुराने दोस्तों, परिवार के सदस्यों तथा संबंधियों के साथ अपने जु$डाव को और मजबूत करने में कर सकते हैं। इसके अलावा प्राणायाम एवं ध्यान के अभ्यास तथा अपनी रूचि एवं शौक को पुनर्जीवित कर तथा परिवार के साथ समय बीताकर भी इस घ$डी में हम खुदको मजबूत रख सकते हैं। इसके अलावा अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए कृतज्ञताका एक जार’ रखने की आदत का उपयोग भी कर सकते हैं। इस जार में एक पर्चीपर प्रतिदिन उन चीजों के बारें में लिख कर डाल सकते हैं, जिनके प्रति हम खुदको कृतज्ञ अनुभव करते हैं। आवश्यकता होने पर सरकार के द्वारा जारी की गई हेल्पलाइ ननंबरों के माध्यम से पेशेवर परामर्शदाताओं तथा मनोविशेशज्ञों की सहायता प्राप्त की जा सकती है।
इस महामारी ने लाखों बच्चों को प्रभावित किया है, विशेशकर सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछ$डे वर्गाें के वंचित तथा दिव्यांग बच्चे इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। यह उन बच्चों के लिए भी संकट लेकर आया है, जो चाइल्डकेयर संस्थानों में रहते हैं। इनसंस्थाओं में रह रहे बच्चे इन दिनों घब$डाहट, चिंता, घर जाने की उत्सुकता, लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार, नींद न आने की समस्या तथा गुस्सा आदि परेशानियों से जुझ रहे हैं।
इस समय यह महत्वपूर्ण है कि हम बच्चों को आश्वस्त करते रहें और उन्हें अहसास दिलाते रहें कि हम उनकी सुरक्षा के प्रति सजग हैं, ताकि वे खुद को असुरक्षित न समझें। बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग तथा हाथ धोने एवं स्वच्छता के अभ्यास के बारे में भी बताते रहना आवश्यक है, जोकि उन्हें सुरक्षित रखेगा। इस समय जबकि चारों ओर सूचनाओं की भरमार है, यह भी जरूरी है कि बच्चों तक सही सूचनाएं पहुंचे वह भी सरल तरीके से। घर के अंदर खेले जानेवाले खेलों तथा संयुक्त गतिविधियों के माध्यम से भी बच्चों को सहज बनाए रखा जा सकता है। इससेबच्चों को अभिव्यक्ति का भी एक मंच मिलेगा, जोकि इस समय काफी जरूरी है। संकटग्रस्त बच्चों की सहायता के लिए चाइल्ड लाइन नंबर १०९८ पर कॉल कर सहायता प्राप्त की जा सकती हैै। इसी प्रकार घरेलू हिंसा की स्थिति में महिला हेल्पलाइन १०९१ या पुलिस हेल्पलाइन १०० पर कॉल किया जा सकता है।
बाल श्रम, बाल विवाह तथा तस्करी की घटनाओं में वृद्घि को रोकने के लिए ग्रामीण स्तर पर सतर्कता तथा सहयोग को ब$ढाने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यह आवश्यक है किचाइल्डकेयर संस्थानों में रहनेवाले बच्चों को कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उनके साथ किसी प्रकार की हिंसा या दुव्र्यवहार न हो। इस निर्देश के तहत संप्रेक्षण गृह में रह रहे सभी बच्चों को जमानत पर रिहा करने की बात भी कही गई है, केवल उन परिस्थितियों को छो$डकर जिसमें किशोर न्याय अधिनियम २०२० की धारा १२ के तहत आवेदन के कारण स्पष्ट नहीं हैं।
यूनिसेफ; चाइल्ड केयर संस्थानों में रहनेवाले बच्चों, स्वास्थ्यकर्मियों तथा राज्य सरकार द्वारा प्रवासियों की सहायता के लिए स्थापित हेल्प डेस्क के वोलेंटियर्स के मानसिक स्वास्थ्य एवं मनो-सामाजिक व्यवहार को बेहतर बनाए रखन ेमें विशेश सत्र के आयोजन के माध्यम से राज्य सरकार की सहायता कर रहा है। हम केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआईपी) के साथ साझेदारी में अधिक से अधिक बच्चों, किशोर-किशोरियों, परिवारों तथा सरकार के अंदर एवं बाहर के सभी पदाधिकारियों के लिए यह सहयोग करना जारी रखेंगे।
मैं इस बात को दोहराना चाहता हूं कि दूसरों के साथ हमदर्दी का व्यवहार रखकर तथा अपने मानसिक स्वास्थ्य का ेबेहतर बनाकर ही हम इस संकट का मुकाबला कर सकते हैं। यह स्वाभाविक है कि नियमित सामाजिक संवाद तथा आवश्यक सहयोग की कमी के कारण लोग खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। आधुनिक तकनीक इसमें हमारी मदद कर सकता है। यह हमें उन लोगोंतक पहुंचा सकता है, जिनसे हम नहीं मिल सकते। वर्तमान चुनौती का मुकाबला आपसी सहयोग एवं हमदर्दी की भावना से ही हो सकता है। हममें से जो भी सक्षम हैं उन्हें इसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए तथा उनकी मदद करनी चाहिए जिनके पास नहीं हैं। आइए हम खुदको तथा आसपास के लोगों को खुश रखन में अपनी भूमिका निभाएं, खासकर उनलोगों के जीवन को खुशनुमा बनाने में योगदान दें,जिन्हें इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है।

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