बहरागोड़ा में भाजपा को गुटबाजी-19 का संक्रमण

कोरोना काल में भी एक साथ नहीं दिखे विद्युत महतो, डॉ षाडंगी , डॉ गोस्वामी और कुणाल
बहरागोड़ा, 25 अगस्त: पूर्वी सिंहभूम जिला के बहरागोड़ा विधानसभा में क्षेत्र में हार की हैट्रिक लगाने वाली भाजपा की रेल गुटबाजी -19 से संक्रमित होकर तीन अलग-अलग पटरियों पर दौड़ रही है. सांसद विद्युत वरण महतो गुट, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेशानंद गोस्वामी गुट और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ दिनेश षाडंगी- कुणाल षाडंगी गुट में बंटी भाजपा का कोई ओर – छोर नजर नहीं आ रहा है. तीनों ही दिग्गज अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं. कोरोना काल में इन तीनों दिग्गजों ने जनता की खूब सेवा की ,परंतु कभी भी एक साथ एक मंच पर नहीं दिखे. चुनाव के मैदान से लेकर जिला और प्रखंड स्तरीय कमेटी गठन में भी तीनों की गुटबाजी सिर चढ़कर बोल रही है. तीनों में एक दूसरे की टांग खिंचाई की हो? साफ दिखाई देती है. इसी गुटबाजी के परिणाम स्वरूप पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी कुणाल षाडंगी की 60,000 मतों से ऐतिहासिक हार हुई थी. कुणाल षाडंगी के जमशेदपुर में और सांसद विद्युत वरण महतो के पुत्र कुणाल महतो की बहरागोडा में एंट्री के बाद तो अब गुटबाजी की बयार सुनामी बनती जा रही है.भाजपा कार्यकर्ता भी उहापोह में है कि किसे अपनाएं और किससे कन्नी काटें।
आमतौर पर अपना संगठन मजबूत करने के लिए नेता विरोधी दलों में सेंधमारी करते हैं. परंतु यहां तो कहानी उलट है. यहां तो एक दूसरे गुट के कार्यकर्ताओं को अपने गुट में शामिल कराने का खेल हो रहा है.आलम यह है कि इन तीनों बड़े नेताओं के प्रोग्राम में उनके गुट के ही कार्यकर्ता या प्रखंड स्तरीय नेता और कार्यकर्ता शामिल होते हैं.ऐसा अक्सर देखा जाता है. पार्टी पीछे छूट गई है और व्यक्ति विशेष आगे निकल रहे हैं.लिहाजा भाजपा कार्यकर्ता तीन अलग-अलग खेमे में बंट गए हैं.
जहां तक डॉ गोस्वामी की बात है तो उनका संगठन पर दबदबा है. पिछले पांच वर्षों में उन्होंने इस विधानसभा क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना ली है, भले ही पार्टी ने उन्हें उम्मीदवारी से नकार दिया था। सांसद विद्युत वरण महतो की राजनीति का अंदाज ही निराला है. वे गुरिल्ला अंदाज में राजनीति करते हैं और इस विधानसभा में उनका एक अलग ही रुतबा है. इस विधानसभा क्षेत्र की राजनीति की धुरी रहे पूर्व मंत्री डॉ षाडंगी शारीरिक अस्वस्थता और पुत्र कुणाल षाडंगी की ऐतिहासिक हार से थोड़ा कमजोर हुए हैं. फिर भी उनके चाहने वाले कम नहीं है. वहीं कुणाल षाडंगी विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता बनकर जमशेदपुर में अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं. कुल मिलाकर इस विधानसभा क्षेत्र में विस चुनाव 2019 के बाद भाजपा में गुटबाजी पराकाष्ठा पर है. हाईकमान ने गुटबाजी के इस खतरनाक वायरस की दवा नहीं खोजी तो इस विधानसभा में भाजपा की और दुर्गति होना तय है.इस त्रिगुट में जेएमएम के विधायक आराम से बैटिंग कर रहे हैं । पूर्व प्रदेश नेतृत्व और तत्कालीन सरकार की निजी पसंद की राजनीति आज भाजपा के गले की फांस ही नहीं , अपितु कुलघाती साबित हो रही है।

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