नक्सलियों से मुक्ति के लिए उनकी आय के स्रोत पर लगातार वार जरूरी

झारखंड सरकार अब राज्य के चतुर्दिक विकास पर फोकस करने वाली है. इस इरादे का संकेत राज्य सरकार का एक साल पूरा होने पर आयोजित समारोह से मिला. लगभग एक साल कोरोना के कारण राज्य का विकास ठिठका भी रहा है. लेकिन अब सरकारी खजाने में राजस्व आ रहा है. इसलिए बयानबाजी छोड़कर विकास के काम होने चाहिए. विकास की पहली जरूरत है राज्य में अमन-चैन का माहौल होना. शासन का इमेज और परसेप्शन भी बहुत काम करता है जिसका अभाव दिख रहा है. प्रभावकारी योजनाएं जमीन पर उतारने के लिए विजन भी चाहिए. और तीसरी सबसे बड़ी समस्या नक्सलियों की है. नक्सल गतिविधियों पर अंकुश लगाने के यद्यपि ढेर प्रयास हो रहे हैं लेकिन जमीन पर उनका उत्पात अब भी जारी है. हाल के दिनों में कई दुर्दान्त नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मारे गए हैं लेकिन अब भी कई बाकी हैं.
झारखंड पुलिस मुख्यालय ने 12 मोस्ट वांटेड नक्सलियों की सूची जारी की है और उनके विरुद्ध इनाम राशि की भी घोषणा की है. बारह नक्सलियों में से 04 पर एक-एक करोड़ की राशि का एलान किया गया है. चार नक्सलियों पर 25-25 लाख इनाम राशि देने की बात कही गई है. जबकि, 02 नक्सलियों पर 15-15 लाख और बाकी दो वांटेड नक्सलियों पर 10-10 लाख इनाम राशि देने की घोषणा की गई है. उन वांटेड नक्सलियों की सूची में सबसे ऊपर मिसिर बेसरा का नाम है. इसके ऊपर 1 करोड़ की इनाम राशि की घोषणा की गई है. प्रशांत बोस, असीम मंडल और अनल दा पर भी एक-एक करोड़ का इनाम रखा गया है. सरकार ने यह भी कहा है कि नक्सलियों और उनकी संपत्ति के बारे में सूचना देने वालों के नाम गुप्त रखे जाएंगे. अब इनके मूलोच्छेद की जरूरत है क्योंकि ये आइडियोलॉजी की लड़ाई नहीं लड़ रहे. मूल रूप से अपराधकर्म से जुड़कर लेवी वसूलना और संपत्ति का विस्तार करना इनका मकसद है. कई बड़े मामलों में इनका नाम ‘सुपारी किलरÓ के रूप में सामने आया है. यह एक तरह से संगठित अपराध है जिस पर अंकुश जरूरी है.
झारखंड में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन नक्सल और उग्रवाद की समस्या से राज्य को निजात नहीं मिल सकी. आज भी राज्य के 24 में से ज्यादातर जि़ले नक्सल प्रभावित हैं. राज्य में भाकपा माओवादी के अलावा पीएलएफआई, तृतीय प्रस्तुति कमेटी यानी टीपीसी और झारखंड जनमुक्ति परिषद यानी जेजेएमपी के उग्रवादी-नक्सली संगठन सक्रिय हैं. खास बात ये है कि नक्सली-उग्रवादी जंगलों से निकल कर अब शहरों की तरफ रुख़ कर रहे हैं. इस कारण इनसे निपटना बड़ी चुनौती बन गई है. बताइए, रांची जो राज्य की राजधानी है, वहां राजभवन के पीछे में नक्सली पोस्टर चस्पां कर चले जा रहे हैं! यह उनके बढ़े मनोबल का प्रतीक है. उनका मनोबल तोडऩ जरूरी है. कई पॉश इलाकों में उनकी संपत्ति का पता चला है. उनमें से कई के बच्चे देश के नामी स्कूलों में पढ़ रहे हैं और यहां गांव के बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते हैं, उन स्कू लों को नक्सली आग के हवाले कर रहे हैं. सरकारी कार्यालयों को नेस्तनाबूत कर रहे हैं. यह जनता की संपत्ति है. इसमें पब्लिक की गाढ़ी कमाई लगी है. नक्सली ऐसे कृत्य का गांववालों का भला नहीं कर रहे हैं.
हालांकि उग्रवादी संगठनों की बढ़ी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए झारखंड पुलिस व एनआइए ने भी संयुक्त रूप से कवायद शुरू की है. इस कड़ी में एनआइए (नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी) कोर्ट के आदेश पर खूंटी जिला प्रशासन ने दिनेश गोप की 10 डिसमिल जमीन को अटैच किया है. पुलिस मुख्यालय की ओर से जारी सूची में पहली बार पीएलएफआइ सुप्रीमो दिनेश गोप की तस्वीर सामने आयी है. इसमें कहा गया है कि इसको जिंदा या मुर्दा पकड़वाने वाले को 25 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा तथा सूचना देनेवालों का नाम गोपनीय रखा जायेगा. राज्य के बड़े पुलिस अफसरों के सेल नंबर जारी किए गए हैं जिनपर नक्सलियों के बारे में सूचनाएं दी जा सकती हैं. टेरर फंडिंग के खिलाफ भी कार्रवाई चल रही है. सबसे जरूरी इनके आय के स्रोत को को काटना है. इन्हें धन उपलब्ध कराने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई जरूरी है बल्कि सबसे पहले इन्हें ही घेरा जाना चाहिए. अगर इनका ‘अमृत कोषÓ सूख गया तो ये अपने आप मर जाएंगे.

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