नए वायरस से डरने का नहीं, पुराने कोरोना प्रोटोकॉल के साथ जीने का

ब्रिटेन में मिले कोरोना के नए स्वरूप (स्ट्रेन) से घबड़ाहट तो हर जगह है. ब्रिटेन से भाया कोलकाता 11 से 14 दिसंबर के बीच जमशेदपुर के विभिन्न क्षेत्रों में भी आधे दर्जन लोग पहुंचे हैं. कोई वहां नौकरी कर रहा था तो कोई बिजनेस. कोई अपनों से मिलकर लौटा है तो अन्य कारणों से आया है. अखबारों की सुर्खियों की मानें तो उनके यहां आने के बाद हड़कंप है. लेकिन इतना भी नहीं है कि कोई हाट-बाजार न जाए या फिर सौदा-सुलुफ को घर से न निकले. निकल रहे हैं लोग, धड़ल्ले से निकल रहे हैं. डर बस चर्चाओं तक सीमित है. यह वायरस चर्चा में तो आ ही गया है. लगे हाथ प्रशासन ने अपनी पुख्ता तैयारियों का दावा भी कर दिया है. लेकिन बस दावा ही समझिए. जिसके पास आधाभूत सुविधाएं भी न हों, वह और क्या करेगा, सिवाय दावा के. वचने किं दद्रिता…
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने साफ कहा है कि इससे घबराने की जरूरत नहीं. खबर है कि कोरोना वायरस ने अपनी संरचना में बदलाव करते हुए एक ऐसे नए रूप के दर्शन दिए हैं, जो ज्यादा तेजी से फैलता है और जिसे काबू में करने के लिए शायद कामयाब वैक्सीनों में भी कुछ बदलाव करने पड़ें. वायरस के इस नए रूप में पिछले वाले के मुकाबले करीब 20 बदलाव देखे गए हैं, जिनमें से कुछ इसकी संक्रमण क्षमता से भी जुड़े हैं. इन बदलावों की वजह से यह नया वायरस पहले के मुकाबले 70 फीसदी ज्यादा तेजी से फैल रहा है. वैसे इस तथ्य पर भरोसा करना अभी जल्दबाजी होगा. इसके बदले रूप की हकीकत को ठीक से समझने के लिए थोड़ा और वक्त चाहिए. दूसरी बात यह कि तेजी से फैलने की बात पक्की हो तब भी इससे बचने के उपाय पहले जैसे ही रहने हैं. दवाई तो अभी आई नहीं है, बस ढिलाई से बचना है. यानी मास्क पहनिए, हाथ धोते रहिए और सैनिटाइजर का उपयोग करिए. शारीरिक दूरी बनाए रखने जैसी सतर्कता कायम रखते हुए जीवनचर्या दुरुस्त रखिए. फिर कोई वायरस नई करामात दिखाकर हमें अपना शिकार नहीं बना सकता. याद रखने की अकेली बात वही है कि वायरस से जंग लंबी है और इस दौरान हमें हताशा-निराशा के अलावा अति उत्साह से भी खुद को बचाए रखना है. इतने से तो जान बची रहेगी. फिर जहान की चिंता भी जारी रखिए. क्योंकि जीने के लिए जेब में पैसे भी चाहिए. ब्रिटेन के शोर से तो निफ्टी और सेंसेक्स में भी सोमवार को धड़ाम से गिर गए. शेयर बाजार तो खैर मंगलवार को इस गिरावट से उबर गए, लेकिन लोगों में आई निराशा इतनी आसानी से नहीं जाने वाली, न ही इसके असर से यूं एक झटके में मुक्ति पाई जा सकेगी.
पिछले वायरस की सीक्वेंसिंग के पता चला कि भारत में शुरुआती दौर में सबसे पहले वायरस का स्वरूप चीन के वुहान शहर वाला था. फिर इटली और अन्य यूरोपीय देशों के स्वरूप भी यहां आए. अफ्रीका-अमेरिका के स्वरूप भी देश के अलग-अलग राज्यों में सामने आए. ब्रिटेन में मिला स्वरूप बताया जा रहा है कि 70 प्रतिशत तेजी से फैलता है, अगर यह भारत में आ गया तो असर क्या होगा? हम वैज्ञानिक तो नहीं हैं लेकिन इतना तो कह ही सकते हैं कि कोई खास असर नहीं पड़ेगा अगर आप पुराने कोरोना प्रोटोकॉल के साथ जी रहे हैं तो. कोरोना जैसी बीमारियों के यहां दर्जनों अलग-अलग स्वरूप पहले से मौजूद हैं. नए स्वरूप पर यूरोप में अध्ययन हो चुका है कि यह सिर्फ फैलता तेजी से है, मौतें ज्यादा नहीं होतीं. नया कोरोना वाला सिम्टम केरल में मिला है. पुराने का भी सबसे पहले भारत में वहीं मिला था. उसकी जांच की जा रही है. सीक्वेंसिंग की रिपोर्ट वैसे तो 36 घंटे में आ जाती है, लेकिन ब्रिटेन से आए संक्रमितों की रिपोर्ट तीन दिन बाद भी सामने नहीं आई है. इसलिए डर के पहले मर जाने से बेहतर है कि जो होगा, उसे देख लेंगे. कोई जरूरी नहीं कि नया वाला वायरस ज्यादा खतरनाक हो. क्योंकि, ज्यादातर वायरस परिवर्तन के बाद और कमजोर होते जाते हैं. दोंजी ज्यादा तेज नहीं होती. अभी तो पहले वाली की ही दवाई नहीं आई है. नए वाले के बारे में अभी से क्या कहना. इसलिए डरने का नहीं, बस पुराने कोरोना प्रोटोकॉल के साथ जीने का है. मीडिया से भी उम्मीद की जानी चाहिए कि वह डराए नहीं. जबतक पूरी जानकारी नहीं आ जाती तबतक कम से कम इन आयातित वायरसों के बारे में अटकलबाजी नहीं. ये बहुरुपिया हैं तो हैं.

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