जे गरीब पर हित करै ते रहीम बड़ लोग, कहा सुदामा ….

देवेन्द्र
रहीम का एक दोहा है-रहिमन विपदा ही भली जो थोड़े दिन होय, हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय…दो महीने के कोरोना काल में इस महामारी ने कई चेहरों पे चेहरे लगाए शख्सियतों के चेहरों से पर्दा हटा दिया है. इस विपदा में परेशानी तो बढ़ी है, अपनों का साथ भी छूटा है लेकिन कौन अपना और कौन पराया है, इसका सही ढंग से भान भी हो गया है. नायक और खलनायक का भेद भी उजागर कर गया है.
रंग मंच पर खलनायक की भूमिका निभाने वाले अभिनेता सोनू का एक सार्वजनिक जीवन भी है जो वास्तविक नायक वाला है.आज उनकी देश क्या विदेशों में भी चर्चा हो रही है. बिहार, यूपी, ओडिशा और झारखंड के लोग खासकर प्रवासी मजदूरों को जब कहीं से कोई सहारा नजर नहीं आता तो सोनू सूद का पता खोजते हैं. संपर्क करते हैं. बस बात करने भर की देर होती है और समस्या का निदान निकल आता है. कल यानी शुक्रवार को भी ओडिशा के परेशान हाल लोगों ने उनसे संपर्क किया, अपनी परेशानी बताई और सोनू सूद ने हल निकाल दिया. समस्या यह थी कि वे केरल के सिलाई उद्योग में फंसे थे. कोरोना के 65 दिन हो चुके हैं लेकिन न सरकार समाधान निकाल पाई थी, न कोई संस्था. जैसे ही सोनू सूद तक सूचना पहुंची, उन्होंने मित्रों से मंत्रणा की, एयर एसिया से बात की और 167 लोगों का जत्था कल केरल से ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के हवाई अड्डे पर उतर गया. इनमें 147 महिलाएं और 20 पुरुष थे. यह कल की बात है. ऐसी सेवा वे लगातार कर रहे हैं. बिहार के बक्सर में तो सोनू सूद के उपकार के गदगद एक युवक ने तो उनका मंदिर बनाने का संकल्प ले लिया. अंत में सोनू ने ही मना किया कि मेरे भाई, ऐसा मत कर. उस पैसे को किसी गरीब की सेवा में लगा दे.
सोनू सूद के आभार से आप्लावित एक शख्स ने ट्विटर अकाउंट पर सोनू को टैग करते हुए अपनी मां का एक वीडियो शेयर किया है. वीडियो में वह कह रही हैं, ”मेरा लाल मेरे पास है, मैं किस अल्फाज में शुक्रिया करूं. जिस तरह कोई बहन भाई को राखी बांधती है, वह मांगकर तोहफा लेती है लेकिन सोनू भाई ने बिना मांगे तोहफा दे दिया. मैं इस तोहफे को कभी भूल नहीं सकती. मैं अपने लाल के लिए तड़पती रहती थी. अब उसे सामने देख रही हूं….
इसके जवाब में सोनू सूद ने ट्रवीट किया-सही मेरे भाई.. माता जी को प्रणाम, बहुत खुश हूं कि तुम्हें तुम्हारी माता से मिलवा पाया, शब्द नहीं हैं मेरे पास..बस अभी बहुत सारे मनीष अपनी माओं से मिल पाएं, इसी कोशिश में लगा हूं…सोनू सूद के वास्तविक जीवन के नायकत्व के ऐसे बहुत सारे किस्से हैं. और यह बता दूं कि सोनू अभी थके नहीं हैं, प्रवासियों को खाने-पीने की व्यवस्था हो या घर जाने की व्यवस्था, इसी में लगे हैं. ऐसा नहीं है कि सारा कुछ वे अकेले कर रहे हैं बल्कि उनमें करने का जज्बा देख कई मित्र और संस्थाएं अब उनसे जुड़ चुकी हैं और राहत का काम अबाध गति से चल रहा है.
अब जरा वास्तविक जीनव के नायकों की भी थोड़ी बात कर लें. शिमला की वह सभा, संभवत: अप्रैल 2017 की है, उसमें देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साहब गरज रहे हैं. कह रहे हैं कि हवाई जहाज में कौन सफर करता है, बड़े लोग, पैसे वाले लोग…लेकिन उनका सपना है कि हवाई चप्पल पहनने वाले लोग भी उसमें सफर करें. पूरी लाइन तो नहीं याद है लेकिन उस संबोधन का भाव कुछ ऐसा ही था. और बदले में मैदान में सामने बैठी भीड़ मोदी…मोदी चिल्ला रही है. उस भीड़ में शामिल अधिकतर लोग भी हवाई चप्पल और मैले कुचैले वस्त्रों वाले ही थे जो अपने सार्वजनिक जीवन के नायक द्वारा दिखाए गए सपने से इस कदर आह्लादित हो रहे थे, मानो कल ही पूरा होने वाला हो. बिहार के मुख्यमंत्री भी ऐसे ही सपने दिखाने वालों में शामिल रहे हैं. और भी कई मंत्री और राजनेता ऐसे ही सपने दिखाकर तालियां बजवाते रहे हैं. कई नेताओंं को देखा है कि अपने बेटा-बेटी की शादी में अरबों रुपये लुटा देते हैं लेकिन गरीब का बेटा अगर परेशानी में फंसा है तो किसी-किसी का ही बटुआ उनके लिए खुलता है. यह किसी एक नेता की बात नहीं है बल्कि हमारी सियासत का एक चेहरा यह भी है.
आज ये गरीब हवाई चप्पल वाले, मैले कुचैले कपड़ों वाले जब विपदा में घिरे हैं तो सपना दिखाने वाला कोई सामने नहीं आ रहा है. इस भीड़ में भी कुछ नेता हैं जिसका दिल अपनों के लिए धड़कता है. नेताओं की भीड़ में शामिल उस नेता का नाम है हेमंत सोरेन जो बाहर फंसे अपने प्रदेश के भाई-बंधुओं को लाने के लिए बेचैन है. वह यहां-वहां पत्र लिखते हैं. जवाब भी नहीं आता. लेकिन कोशिश जारी रखते हैं. अंग्रेजी में एक कहावत है-ह्वेयर देयर इज विल देयर इज वे…कोशिश कामयाब होती है और करीब 180 प्रवासी श्रमिकों का जत्था गुरुवार को मुंबई से हवाई मार्ग से रांची पहुंचता है. लॉकडाउन के बाद यह देश में पहला मौका है, जब प्रवासी मजदूरों को विमान से अपने राज्य वापस लाया गया है. हां, यह भी सच है कि इसमें अलमनाई नेटवर्क ऑफ नेशनल स्कूल ऑफ लॉ, बेंगलुरु का अहम योगदान रहा… इनमें हजारीबाग के 41, गिरिडीह के 29, सिमडेगा के 28, रांची जिले के 16, कोडरमा के 11, देवघर के 10, धनबाद के नौ, पलामू के नौ, पश्चिमी ङ्क्षसहभूम के आठ, बोकारो और चतरा के पांच-पांच, पूर्वी ङ्क्षसहभूम के तीन, जामताड़ा और गढ़वा के दो-दो, गोड्डा और गुमला के एक-एक श्रमिक शामिल थे.
कोशिशों और सपने पूरे करने की कहानी यही खत्म नहीं होती. बल्कि लेह लद्दाख में फंसे 44 प्रवासी मजदूरों का जत्था शुक्रवार को बिरसा मुंडा हवाई अड्डे पर उतरता है. लद्दाख से आए 44 प्रवासी मजदूर दुधानी, शिवडीह और आसपास के रहने वाले बताए जाते हैं. आज तड़के सभी प्रवासी मजदूरों को दुमका पहुंचाया गया. सबसे बड़ी बात यह कि उनकी अगवानी करने को खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हवाई अड्डे पर मौजूद रहे. वे खुद वहां न जाकर अपने अधिकारियों को भी भेज सकते थे लेकिन बात फिक्र करने की है और घड़ी संवेदना की है. इसलिए वे खुद वहां मौजूद रहते हैं. अर्थात सपने दिखाई कोई, पूरे करे कोई. ‘वोÓ जश्र मनाने में व्यस्त हैं और ‘येÓ उनके सपने पूरे करने में…..
यह सच है कि एक मई से झारखंड के प्रवासी मजदूरों का अपने गांव आना शरू हुआ है, तब से ही कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह संख्या और बढ़ेगी लेकिन सब मिलकर इसका सामना करेंगे और कोरोना को हराएंगे. लोग दहशत में हैं लेकिन सब्र के साथ क्योंकि सरकार का मुखिया संजीदा है. व्यवस्थागत त्रुटियां हैं लेकिन शिकायत पर समाधान की उम्मीद भी है. जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान परेशान रहते हैं कि पता नहीं कौन सा पब्लिक ट्वीट उनकी परेशानी बढ़ाने आने वाला है. मतलब शासन के कारिंदे निरंकुश नहीं हुए हैं. छोटी-छोटी शिकायतों पर भी कार्रवाई हो रही है. राज्य का मुखिया अमीरों की कम, गरीबों की फिक्र ज्यादा कर रहा है. रहीम का दूसरा दोहा है-जे गरीब पर हित करै ते रहीम बड़ लोग, कहा सुदामा बापुरो कृष्ण मिताई जोग….

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