यह कैसी पत्रकारिता

संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाने वाली भारतीय विदेश सेवा की युवा अधिकारी स्नेहा दूबे ने जो सुर्खियां बटोरी उसके बाद रातो रात बड़ी सेलेव्रेटी बन गई। सोशल मीडिया में उनकी जमकर तारीफ हो रही है। लेकिन उस घटना के बाद उनके कमरे में बिना अनुमतिके प्रवेश करने वाली न्यूज एंकर अंजना ओम कश्यप को जिस शालीनता के साथ बाहर जाने का रास्ता दिखाया अब वह अधिक चर्चा में है। एक्सक्लूसिव के चक्कर में आज पत्रकारिता का स्तर किस कदर गिर चुका है यह इस एक घटना से साफ हो जाता है। इतने बड़े न्यूज चैनल के जिम्मेदार पद को संभालने वाली अंजना पत्रकारिता के मूल भाव की धज्जियां उड़ाती नजर आईं। उनको पता होना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े मंच पर नेहा दूबे की वह टिप्पणी उनकी निजी नहीं, भारत की टिप्पणी थी। फिर उस टिप्पणी पर और टिप्पणी और इसक्रम में अंजना द्वारा कुर्सी पर बैठी महिला अधिकारी का हाथ पकडक़र उठाने का प्रयास बेहद आपत्तिजनक है। किसी के दफ्तर में लाइव प्रसारण करते हुए बिना अनुमति के प्रवेश करना अपने आप में पत्रकारिता के मूलधर्म के खिलाफ है। किस स्थान पर आप ऐसा कर रहे है इसका भान एक सामान्य पत्रकार तक को होता है। स्नेहा दूबे की इस मामले में दी गयी प्रतिक्रिया भी उतनी ही बेमिशाल रही। वे उठकर खड़ी ुहुईं और कहा कि उन्हें जो बोलना था बोल दिया फिर प्लीज करते हुए महिला रिर्पोटर को बाहर का रास्ता दिखा दिया। सोशल मीडिया पर यह वाक्या भी उतना ही वायरल हो रहा है .हर कोई उस महिला अधिकारी के साथ खड़ा होता दिख रहा है। हाल ही मुम्बई में ड्रग्स प्रकरण या सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से जुड़े मामलों में टीवी चैनलों ने जिस अंदाज में रिपोटिंग की वह भी उतना ही आपत्तिजनक था। अंतर इतना रहा कि इस दौरान किसी के मुंह में जबरन माइक ठूंसने पर यदि वह हाथ से झटका देता तो उस पर दिनभर की बहस हो जाती। स्नेहा दूबे मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
समय के साथ -साथ हर पेशा के काम करने के तरीके में बदलाव होता है। होना भी चाहिए लेकिन हर पेशा का मूल भाव होता है दूसरो का उतना ही सम्मान करना। पुलिस जब अपनी कार्रवाई के दौरान सडक़ पर किसी को आपमानित करती है या उसका व्यवहार किसी तरह से अनुचित होता है तो उसकी भी जमकर आलोचना होती है। सोशल मीडिया के दौर में यदि कोई वीडियो वायरल हो जाता है तो अनुचित व्यवहार करने वाले पर कार्रवाई भी हो जाती है। यह आचरण हर पेशा में लागू होना चाहिए। पत्रकारिता को हमेशा से बेहद सम्मान के साथ देखा जाता रहा है लेकिन कुछ लोगों के अनुचित आचरण के कारण पूरी पत्रकारिता पर सवाल उठने लगते हैं। प्रतिस्पर्धा एवं टी आर पी के इस दौर में खासकर इलेक्ट्रानिक चैनल की पत्रकारिता प्रिंट मीडिया की पत्रकारिता से बिलकुल मेल नहीं खाती। इलेक्ट्रानिक मीडिया में जो खबर दिन भर प्रसारित किये जाते है, संभव है कि वह प्रिंट मीडिया में दिखे भी नहीं, प्रकाशित भी किया गया हो तो किसी कोने में। यही कारण है कि आज भी प्रिंट मीडिया की अपनी गरिमा मानी जाती है। समय के साथ-साथ अखबारों का प्रकाशन सबसे मुश्किल एवं चुनौतीपूर्ण भी होता जा रहा है। बड़े-बड़े प्रकाशन घराने अपने संस्करण समेटने को विवश हो रहे है। लेकिन पत्रकारिता के मूलभाव को प्रिंट मीडिया आज भी उतना ही सशक्त बनाता है।

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