Public ने देखा-झेला वो गलत, सरकार का बयान सही, मान लेने में हर्ज क्या!

संपादकीय
आक्सीजन के अभाव में कोरोना से हुई मौतों के बारे में ज्यादा बतकुच्चन करने से अच्छा है कि सरकार कह दे कि कोई महामारी देश में आई ही नहीं और जो लहरों की बात हो रही थी या हो रही है, वह समुंदर से संबंधित है. बात खतम करिए. संसद का एक-एक मिनट बड़ा कीमती होता है. क्यों जाया करते हैं. और भी कई गंभीर मसले हैं, मसलन भूख, बेरोजगारी, महंगाई, खेती-किसानी…..हो सके तो इन पर बहस करिए. कोई रास्ता निकालिए. जब जो घटनाएं पूरे देशवासियों के सामने घटीं, उसे भी सरकार संसद में जाकर नकार दे तो फिर सच और झूठ में अंतर करना मुश्किल हो जाता है. इस मामले में सरकार तर्क दे रही है कि देश के किसी राज्य सरकार ने आक्सीजन के अभाव में कोरोना से मौत की बात लिख ही नहीं रही है तो केन्द्र सरकार कैसे इसे स्वीकार कर ले. ठीक है, अगर केन्द्र सरकार का दायित्व केवल राज्य सरकारों की रिपोर्टों की कंपाइलेशन भर ही रह गया है, तब तो ‘न्यू इंडियाÓ का फलसफा देशवासियों की नजर में स्पष्ट हो चला है….
अब दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन आज कह रहे हैं कि ऑक्सीजन की कमी से देश में बहुत सारी मौतें हुईं. दिल्ली में भी ऐसा वाकया देखने को मिला. यह कहना एकदम गलत है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई. अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो अस्पताल हाईकोर्टों का दरवाजा क्यों खटखटाते…..स्वास्थ्य मंत्री जी, यही बात आप भारत सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में लिख भेजते तो आज उसे यह कहने का मौका नहीं मिलता न कि किसी राज्य सरकार ने ऑक्सीजन से हुई मौतों का न तो कोई आंकड़ा दिया है और न रिपोर्ट में उसका जिक्र किया है. यही शिकायत महाराष्ट्र से भी होनी चाहिए जहां शिव सेना की सरकार है और उसके सांसद संजय राउत कह रहे हैं कि मैं स्तब्ध हूं, उन परिवारों के लिए जिनके अपने मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की वजह से दुनिया से चले गए. उन परिवारों को यह सुनकर कैसा लगा होगा. इन परिवारों को सरकार के खिलाफ मुकदमा दाखिल करना चाहिए….राउत जी, पहले अपनी सरकार की रिपोर्ट पढ़ तो लीजिए जिसके हवाले से भाजपा के प्रवक्ता कह रहे हैं कि वहां से भी ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है.
किसे नहीं मालूम है कि इस साल मार्च और अप्रैल में जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी तो ‘ऑक्सीजन संकटÓ पैदा हो गया था. लोगों के अपने परिजनों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर खोजने के लिए दर-दर भटकते और ऑक्सीजन की कमी के कारण मौतें होने की कई खबरें आ रही थीं. आरोप लगे कि अस्पताल ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों को एडमिट नहीं कर रहे थे. इस वजह से तड़प-तड़प कर कई लोगों की जानें सड़कों और अस्पतालों के बाहर चली गईं. लेकिन केंद्र सरकार ने मंगलवार को यह बताया कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई जबकि अप्रैल-मई के मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारों के बयान के आधार पर देखें तो केवल दिल्ली, गोवा, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश समेत 5 राज्यों में ही 195 लोगों की मौत हो गई थी.
अब जरा इस विवाद का तकनीकी पक्ष देखें तो पता चलेगा कि स्वास्थ्य मंत्री की बात सही है. यदि किसी राज्य ने लिखित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से किसी मौत का जिक्र नहीं किया है तो केंद्र सरकार वही जवाब देने के लिए बाध्य है. क्योंकि स्वास्थ्य विभाग राज्य के जिम्मे आता है. केवल 5 राज्यों से ही ऑक्सीजन कमी के चलते 195 लोगों की जान चली जाने की रिपोर्ट आई. केन्द्र सरकार को क्या जरूरत है इसमें ‘अपना विवेकÓ घुसेडऩे की. उसे भी तो संसद में विपक्ष की आलोचनाओं से बचना है. उसने उन्हीं राज्यों की रिपोर्ट को ढाल बनाकर अपना बचाव कर लिया. जबकि कई ऐसे उदाहरण हैं जिनमें ऑक्सीजन के अभाव में दर्जनों मौतेंं हुई. ज्यादातर मौतें तो आक्सीजन सप्लाई में प्रेशर की कमी से हुई. एक मामला तो यूपी से ही आया था जहां एक निजी अस्पताल संचालक ने वेंडीलेटर पर पड़े मरीजों की ऑक्सीजन सप्लाई रोककर टेस्ट लिया था कि कितने मरीज झेल सकते हैं जिसमें करीब दो दर्जन लोगों की मौतें हो गई थीं और बड़ा बावेला भी मचा था. आंध्र प्रदेश के तिरुपति शहर में 10 मई को रुइया सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई में प्रेशर की कमी से 11 मरीजों की मौत हो गई. ये सभी मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे. कर्नाटक के चामराजनगर में 3 मई को ऑक्सीजन की कमी के चलते 24 से ज्यादा मरीजों की मौत हो गई. इनमें 23 कोरोना संक्रमित और एक अन्य बीमारी से पीडि़त मरीज शामिल थे. हालांकि, वहां की सरकार ने भी ऑक्सीजन की कमी की बात से इनकार किया है. दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में 23 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी से 25 मरीजों की मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन ने मौत के पीछे ऑक्सीजन प्रेशर में कमी को कारण बताया था. इसके बाद जयपुर गोल्डन अस्पताल ने ऑक्सीजन सप्लाई में लगातार कमी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का भी रुख किया था. हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार ने रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा कि अस्पताल में मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई थीं. इससे पहले सर गंगाराम अस्पताल में 23 अप्रैल को वक्त पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाने की वजह से 25 मरीजों की मौत हो गई थी. 1 मई को ऑक्सीजन की कमी के चलते बत्रा अस्पताल में 12 कोरोना मरीजों की मौत हो गई. महाराष्ट्र के नासिक में 21 अप्रैल को डॉक्टर जाकिर हुसैन अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने के कारण 22 मरीजों की मौत हो गई क्योंकि ऑक्सीजन लीक हो गई थी. ऑक्सीजन लीक होने के कारण अस्पताल में करीब आधे घंटे तक सप्लाई बाधित रही थी. कितने कांड गिनाए जाएं लेकिन अखबारों की रिपोर्ट तो संसद के जवाब में शामिल नहीं होती न, सरकारी जो बताए वही सही.
इसलिए सरकार की रिपोर्ट को ही सही मान लिया जाए और संसद के दोनों सदनों को दूसरे मसले पर बहस-मुबाहिशा करने दिया जाए. जनता की रिपोर्ट तो पांच साल में एक बार आती है, अब उसी रिपोर्ट का इंतजार किया जाए.

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