कला-संस्कृति के संगम में मानभूम छऊ नृत्य ने बनायी अलग पहचान,विभिन्न त्योहारों व मेला में दर्शकों का मनोरंजन कर मचा रही है धूम

चांडिल : सोमवार के दोपहर दो बजे से हरुडीह-धातकीडीह के ऐतिहासिक सरस्वती मेला में पुरुलिया जिला के अंतराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त बिनाधर कुमार बनाम नवयुवक संघ छऊ नृत्य दल द्वारा कला के विभिन्न आयामों से सरोवर नृत्य प्रस्तुत कर जमकर दर्शकों की हात तालियां बटोरी।
उस्ताद बिनाधर कुमार ने बताया कि मानभूम शैली छऊ नृत्य का उदगम स्थल प्राचीन काल के मानभूम रियासत व वर्तमान समय के पुरुलिया जिला तथा चांडिल अनुमंडल क्षेत्र है। मानभूम शैली के छऊ नृत्य में कला भी है और सनातन संस्कृति भी है। उन्होंने कहा कि कला जीवन को ”सत्यम शिवम सुंदरम” से समन्वित करती है। इसके द्वारा ही बुद्धि आत्मा का सत्य स्वरूप झलकता है। कला उस क्षितिज की तरह है जिसका कोई छोर नहीं, इतनी विशाल इतनी विस्तृत अनेक विधाओं को अपने में समेटे। विश्व कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा कि कला में मनुष्य अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है, दार्शनिक प्लेटो ने कहा कि कला सत्य अनुकृति के अनुकृति है।
कलाप्रेमी मेला कमिटी के सचिव लक्ष्मीकांत महतो उर्फ गिडु कुड़मी ने कहा कि रेडफील्ड के अनुसार ” संस्कृति कला और उपकरणों मे जाहिर परम्परागत ज्ञान का वह संगठित रूप है जो परम्परा के द्वारा संरक्षित हो कर मानव समूह की विशेषता बन जाता हैं। जार्ज पीटर के अनुसार ” किसी समाज के सदस्यों की उन आदतों से संस्कृति बनती है जिनमे वे भागीदार हो चाहे वह एक आदिम जनजाति हो या एक सभ्य राष्ट्र। संस्कृति एकत्रिकृत आदतों की प्रणाली हैं। ई. ऐडम्सन होबेल के अनुसार ” किसी समाज के सदस्य जो आचरण और लक्षण अभ्यास से सीख लेते हैं और अवसरों के अनुसार उनका प्रदर्शन करते है, संस्कृति उन सबका एकत्रिकृत जोड़ है। डाॅ. दिनकर के अनुसार ” संस्कृति जीवन का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर समाज मे छाया रहता है जिसमे हम जन्म लेते हैं।

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