हनुमान जयंती पर विशेष. हनुमान जी है आदिकाल के संचार प्रणाली का महानायक

”संदेशा सम्भवामि युगे युगे” अर्थात खबरों के आदान प्रदान की आवश्यकता किसी न किसी रूप में युग युग से है। सतयुग में देवर्षि नारद, त्रेता युग में हनुमान व द्वापरयुग में संजय इसका उदाहरण है। कलियुग के वर्तमान समय में दैनिक समाचार पत्र, पत्रिकायें, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि प्रमुख संचार प्रणाली का माध्यम है। किंतु सत्य, त्रेता व द्वापर युग में ऐसा आविष्कार नहीं हुआ था। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार संचार प्रणाली का जन्मदाता देवर्षि नारद जी है, महानायक हनुमान व संजय को माना जाता है। सनातन धर्म ग्रंथ पुराणों के बहुचर्चित पात्र देवर्षि नारद देवलोक में घुम घुम कर संवाद वहन करने वालो में अग्रणी थे। महाकाव्य महाभारत के अनुसार संजय दिव्यचक्षु से एक स्थान में बैठकर ही संसार के घटनाक्रम की जानकारी देते थे। हिंदु धर्म ग्रंथ रामायण के अनुसार हनुमानजी जनसंचार माध्यमों के महानायक थे। सर्वप्रथम देवलोक में देवर्षि नारद जी और मर्त्यलोक में श्री हनुमानजी ने संवाद वहन का कार्य शुरू किया था। इसलिए देवर्षि नारद जी को पारंपरिक लोक मीडिया का आदि आचार्य (पत्रकार) एवं हनुमानजी को महानायक कहा जाता है।

ज्योतिषियों के सटीक गणना के अनुसार हनुमानजी का जन्म एक करोड़ 85 लाख 58 हजार 114 वर्ष पूर्व चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के पवित्र दिन में चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में प्रातः 6.30 बजे भारत देश में वर्तमान के झारखंड राज्य के गुमला जिला अंतर्गत अंजन नाम के छोटा सा पहाड़ी गांव के एक गुफा में हुआ था। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है उनमें हनुमान जी भी है। हनुमानजी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिए हुआ।

अंतराष्ट्रीय भागवत भूषण से सम्मानित हरिद्वार निवासी श्री संजेल जी कहते हैं कि रामायण में वर्णित सुंदरकांड के अनुसार सीता को लंकापति रावण ने छल से हरण कर ले गया। हनुमानजी की भेंट राम से इस घटनाक्रम में तब हुआ जब राम अनुज लक्ष्मण के साथ अपनी पत्नी सीता को खोज रहे थे। सीता को खोजते हुए दोनों भाई ऋषिमुख पर्वत के समीप पहुंच गये जहां सुग्रीव अपने अनुयायियों के साथ अपने ज्येष्ठ भ्राता बाली से छिपकर रहते थे। वानर राज बाली ने अपने छोटे भ्राता सुग्रीव को एक गंभीर मिथ्याबोध के चलते अपने साम्राज्य से बाहर निकाल दिया था और वे किसी भी तरह से सुग्रीव के तर्क को सुनने के लिए तैयार नहीं था। राम और लक्ष्मण को आते देख सुग्रीव ने हनुमान को उनका परिचय जानने के लिए भेजा। हनुमान एक ब्राह्मण के वेश में उनके समीप गये। हनुमान के मुख से प्रथम शब्द सुनते ही श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि कोई भी बिना वेद-पुराण को जाने ऐसा नहीं बोल सकता जैसा इस ब्राह्मण ने बोला। राम ने लक्ष्मण से कहा कि इस ब्राह्मण के मंत्रमुग्ध उच्चारण को सुनकर तो शत्रु भी अस्त्र त्याग देगा। उन्होंने ब्राह्मण की प्रशंसा करते हुए कहा कि वो राजा निःसंकोच ही सफल होगा जिसके पास ऐसा गुप्तचर होगा। श्रीराम से इन सब बातों को सुनकर हनुमानजी ने अपना वास्तविक रूप धारण किया और श्रीराम के चरणों में नतमस्तक हो गये। श्रीराम ने उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। उसी दिन एक भक्त और भगवान का हनुमान एवं प्रभु राम के रूप में अटूट और अनश्वर मिलन हुआ। इसके बाद हनुमान ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई। इसके पश्चात श्रीराम ने बाली को मारकर सुग्रीव को उनका सम्मान और गौरव वापस दिलाया। लंका युद्ध में सुग्रीव ने अपनी वानर सेना के साथ श्रीराम का सहयोग किया।

महाकाव्य रामायण में हनुमान जी के ”संवाद वहन” का सैकड़ों उदाहरण है। जिसमें एक महत्वपूर्ण उदाहरण है रावण द्वारा सीता हरण के बाद हनुमान जी ने समुद्र लांघ कर लंका में प्रवेश किया। हनुमान जी ने अशोकवाटिका में सीता से भेंट कर उन्हें राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोकवाटिका को विध्वंस कर रावण के पुत्र अक्षय कुमार को वध कर दिया। मेघनाद ने हनुमान को नागपाश में बांधकर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया। उस समय रावण ने हनुमान के पूंछ में तेल से डूबा हुआ कपड़ा बांधकर आग लगा दिया। जिससे हनुमान ने लंका का दहन कर दिया। हनुमान सीता के पास पहुंचे वे अपनी चूड़ामणि देकर उन्हें विदा किया। द्वितीय उदाहरण है लक्षण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्षण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिए हनुमान जी सुषेण वैद्य को ले आयें और संजीवनी बूटी लाने चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान जी के कार्य में बाधा के लिए कालनेमि दैत्य को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान ने पूरे पर्वत को ही उठाकर वापस चलें। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आये और वैद्य सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये। इस प्रकार त्रेता युग में भगवान श्रीराम की संचार माध्यमों का काम हनुमान जी ने किया।

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