अब कंज्यूमर प्रोडक्ट पर धार्मिक इफेक्ट-उपभोक्ता सामग्री के ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के खिलाफ SC में याचिका

कहा- ‘100 करोड़ लोगों को इस्तेमाल के लिए किया जा रहा बाध्य

new delhi 22 april
उपभोक्ता वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ SC में याचिका दाखिल हुई है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि देस के 85 प्रतिशत लोगों को उनकी धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए बाध्य किया जा रहा है. यह सर्टिफिकेट निजी संस्थाएं जारी करती हैं. इस पर पाबंदी लगनी चाहिए.

लोगों को इसके लिए बाध्य किया जाता है- याचिका

वकील विभोर आनंद की याचिका में कहा गया है कि 1974 तक किसी ने हलाल सर्टिफिकेट के बारे में सुना भी नहीं था. शुरू में मांस के लिए यह सर्टिफिकेट शुरू किया गया. अधिकतर रेस्टोरेंट हलाल प्रमाणित मांस का ही इस्तेमाल करते हैं. कुछ धर्मों में हलाल मांस खाने पर विशेष रूप से पाबंदी है. लेकिन लोगों को इसके लिए बाध्य किया जाता है.

यह मुक्त बाजार के सिद्धांतों के खिलाफ- याचिका

याचिकाकर्ता ने कहा है कि 1993 के बाद से डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का हलाल सर्टिफिकेशन शुरू कर दिया गया. अब स्थिति यह है कि हर तरह की खाद्य सामग्री, कॉस्मेटिक, साबुन, मेडिकल सामान तक का हलाल सर्टिफिकेशन शुरू कर दिया गया है. अधिकतर कंपनियां अपना खर्च बचाने के लिए यह सर्टिफिकेट लेती हैं. इस तरह सभी लोगों को उनके धर्म के विरुद्ध हलाल प्रमाणित उत्पाद के इस्तेमाल के लिए बाध्य किया जा रहा है. यह मुक्त बाजार के सिद्धांतों के खिलाफ है. 100 करोड़ लोगों से जबरन इन उत्पादों का उपभोग करवाया जा रहा है. यह अनुच्छेद 14 (कानून की नज़र में समानता) और 21 (अपनी इच्छा से जीवन बिताने) जैसे मौलिक अधिकारों का भी हनन है.
याचिका में आगे कहा गया है कि इस सर्टिफिकेशन की कोई कानूनी मान्यता नहीं है. इसे जमीयत उलेमा ए महाराष्ट्र, जमीयत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट जैसी 5-6 निजी संस्थाएं जारी करती हैं. इन संस्थाओं को इस तरह का सर्टिफिकेट जारी करने से करोडों रुपए मिलते हैं. इस फंड का इस्तेमाल किन कामों में होता है, यह भी संदिग्ध है. इसलिए, कोर्ट इस तरह का सर्टिफिकेशन रद्द करने का आदेश दे.

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