JAMSHEDPUR : इंजीनियरों के प्रताप की कहानी !

Jamshedpur,8 oct: चुनाव की आहट के साथ ही जिला में पदस्थापित विभिन्न पदाधिकारियों की पदस्थापना मियाद की सूची तैयार होने लगी है. पुलिस पदाधिकारी के अलावे विभिन्न विभागों के अभियंताओं पर चुनाव आयोग की नज़र होती है. जिले में कुछ अभियंता 5 सालों से अधिक समय से जमे हुए हैं जो एन केन प्रकारेण जमशेदपुर में जमे रहना चाहते हैं. इस जिले का मोह नहीं त्याग पाते. वैसे लोग कोई न कोई कारण बनाने में लग गए हैं. अपना या निकटवर्ती परिजन का इलाज उनके लिए कारगर कारण होता है. सरकार में मंत्री और विधायक के प्रभाव से वे पदस्थापना बरकरार रखने में कामयाब भी होते हैं. इंजीनियर भी इसमें पीछे नहीं रहते क्योंकि योजनाओं के जरिए वे सालों भर सबकी सेवा करते हैं तब उनको संरक्षण भी प्राप्त हो जाता है. उल्लेखनीय है यहां कुछ संविदा पर नियुक्त प्रतापी अभियंता गजटेड पद तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संभाल रहे हैं और उनका कार्यकाल 5 वर्षों से अधिक बीत चुका है, फिर भी सरकार के इर्द गिर्द बने कॉकस और मैनेजिंग तंत्र के जरिए वे पदस्थापना बहाल रखते हैं और गजटेड तथा नोटिफाइड सहायक अभियंता तक की जिम्मेवारी सँभालते हैं, जो कार्य नियमावली का उल्लंघन ही नहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला साफ दिखाई देता है. एन आर इ पी के सहायक अभियंता पर संविदा वाले अभियंता की पदस्थापना हमेशा चर्चा में रहती है. पूर्व में जिला परिषद में भी संविदा पर नियुक्ति के बावजूद यह काम सँभालते रहे जो इन दिनों अप्रत्यक्ष रूप से आज भी अपना प्रताप रखते हैं. जिला परिषद की इको स्पोर्ट्स कार की बिष्टपुर थाने में जब्ती जिला के इंजीनियरिंग सेल में चलने वाले भ्रष्टाचार और मनमानियों की प्रताप कथा बयान करने के लिए पर्याप्त है. यह कार बिष्टपुर थाने में इसीलिए जब्त है कि उसे मनमाने कोई और चलाता था और उससे जुबिली पार्क सड़क पर एक जानलेवा दुर्घटना हुई जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु तक हो गयी. उस कार के कागजात, इन्सुरेंस तक दुरुस्त नहीं थे. दुर्घटना शिकार व्यक्ति के परिवार को आज तक न न्याय मिला, न कोई मुआवजा मिला. सरकारी खजाने से पब्लिक मनी पर खरीदी गयी वह ब्रांड नयी कार थाने में सड़ रही. यही कार किसी इंजीनियर या अन्य सरकारी अधिकारी के निजी पैसे की होती तो क्या उसको यूं ही थाना में सड़ने देते ? आसमान सर पर उठाकर उसको रिलीज़ करा लिया गया होता और दुर्घटनाग्रस्त परिवार को ले- देकर मामला सलटा लिया गया होता. आश्चर्य है तेज तर्रार आई ए एस डी डी सी के जिला परिषद के सी इ ओ प्रभार लेने के बावजूद थाना में धूप पानी में सड़ रही यह कार चिल्ला चिल्ला कर भ्रष्टाचार और मनमानियों की कहानी की ओर सबका ध्यान खिंचती है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही जिससे अंदेशा होता है कि ऐसे प्रतापी इंजीनियर पहले की भांति जिला परिषद के सी ई ओ पर अपना प्रभाव बना लिए हों. नए डी डी सी ने जब प्रभार लिया तब आशा जगी कि दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को मुआवजा मिल जाएगा और पब्लिक मनी से खरीदी गयी कार को भी सड़ने से बचा लिया जाएगा. उन्होंने इसकी खोज खबर भी ली, लेकिन फिर मामला जस का तस दब गया है. उपायुक्त मंजू नाथ भजन्त्री असहाय और न्याय वंचित आम व्यक्ति को त्वरित न्याय दिलाने के लिए स्वयं सक्रिय रहने के लिए जन दरबार लगाते हैं. आश्चर्य है इंजीनियरों का यह प्रताप वाला खेल उनकी नजर से कैसे बचा हुआ है जबकि यह मामला सार्वजनिक हो चुका है.

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