चलो मणिपुर मणिपुर खेलें

देश में राजनीतिक दल किसी ऐसे मुद्दे की तलाश में होते हैं जिसके दम पर वे अपनी राजनीति की रोटी सेक सकें। े ऐसे हजारों उदाहरण मिल जाते हैं । इस समय मणिपुर एक ऐसा ही मुद्दा बना हुआ है । संसद ठप्प है। कई विधान सभाओं में इसे लेकर प्रस्ताव पारित किये जा रहे हैं । देश में पहली बार अभी देश को यह तो पता चल रहा है कि मणिपुर भी एक राज्य है वहां के लोगों को भी तकलीफ होती है। वहां के लोग भी इसी भारत के नागरिक हैं। स्मरण नहीं आता कि इसके पहले आज तक कभी भी देश में मणिपुर जैसे राज्य को लेकर इतनी चिंता जताई गई और यदि इक्का दुक्का उदाहरण दे भी दिये जाएं तो इतना बड़ा मुद्दा कभी बन पाया। मणिपुर की तब बात आती है तो भारतीय जनता पार्टी बंगाल,राजस्थान की बात करने लगती है लेकिन विपक्ष है कि मणिपुर से बाहर कुछ सुनने सुनाने को तैयार नहीं । मणिपुर के मामले से अधिक चिंताजनक हालात यही है कि जिसे जो राज्य अपने एजेंडा में फिट बैठता है, वह केवल वहीं की बात करता है। उसका कांटा वहां से बाहर निकलने का नाम नहीं लेता।
मणिपुर के लोग कष्ट में भी होते हैं, इसका अहसास देश को पहली बार हो रहा है या कराया जा रहा है। मणिपुर आज से कई गुना अधिक अशांत रहा है लेकिन न तो संसद कभी इस मुद्दे पर ठप्प रहा और न ही मीडिया की इसने सुर्खियां बटोरी। भाजपा का आरोप है कि मणिपुर के हालात इतने भयावह थे कि वह 6 महीने तक बंद रहा करता था। लोगों को पलायन पर मजबूर होना पड़ता था मगर कभी उसका जिक्र तक नहीं होता था प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की कौन करें गृह राज्य मंत्री ने केवल एक दिन मणिपुर का दौरा किया था जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 50 से अधिक बार मणिपुर का दौरा कर चुके हैं। पिछले कुछ समय से पूर्वोत्तर भारत का सियासी पारा पूरी तरह पलटी खा गया है। एक समय था कि यहां भारतीय जनता पार्टी की अशांति के मुद्दे को उठाया करती थी। आज पूर्वोत्तर भारत एक तरह से भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मणिपुर, त्रिपुरा, असम, जैसे राज्यों में कभी भारतीय जनता पार्टी का शासन भी हो सकता है । अब तो वहां ना केवल भाजपा का शासन है बल्कि सरकारें भी दुबारे जीतकर सत्ता में आ रही हैं। अब वहां भाजपा को शांति दिखती है लेकिन कांग्रेस सहित उसकी अगुवाई वाले विपक्ष को यह राज्य अशांत दिखता है। यही सेलेक्टिव विरोध मूल समस्या है। मणिपुर से भी बड़ी समस्या और इसका कोई समाधान या निदान नहीं। भाजपा के शासन में आने के बाद से एक पक्ष के लिये पूर्वोत्तर भारत चर्चा में आने लगा है और वहां की घटनाएं सुर्खियां बनने लगी है । स्मरण आता है कि झारखंड की आदिवासी लड़कियों को इसी तरह असम में नि:वस्त्र परेड कराया गया था. उस समय वहां कांग्रेस की सरकार थी और केंद्र में मनमोहन सिंह की कांग्रेस अगुवाई वाली यूपीए सरकार। एक-दो दिन यह खबर बनी थी। राजनीतिक दलों की ओर से भी बयानबाजी देकर खाना पूरी कर ली गई थी । किसी ने भी इस मुद्दे को लंबा नहीं खींचा । आज मणिपुर जल रहा है वहां के लोग परेशान हैं ।इससे इनकार नहीं किया जा सकता मगर क्या जोकुछ हो रहा है वह मणिपुर की समस्या के समाधान के लिये किया जा रहा है। देश में अभी केवल मणिपुर ही रह गया है। राजनीतिक दलों के लिए महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे क्या अब महत्व नहीं रखते? विपक्ष के लिए महंगाई हमेशा से एक बड़ा हथियार रहा है ।एक ऐसा मुद्दा जिसके दम पर और सरकारे बनाई और गिराई जाती रही हैं। मगर मणिपुर के नाम पर मानसून सत्र पूरी तरह से ठप है। दोनों पक्ष की ओर से कहा जा रहा है कि हम मणिपुर पर चर्चा करना चाहते हैं । लेकिन दुख की बात है कि चर्चा नहीं हो रही। मणिपुर पर चर्चा के लिए नियमों का हवाला दिया जा रहा है। गांठ यहीं पड़ी हुई है। मणिपुर- मणिपुर का शोर मचाया जा रहा है और पूरा देश हाथ पर हाथ धरे बैठा है। मंशा मणिपुर के लोगों को राहत दिलाने की है या कुछ और यह जानने की जरुरत है।

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