CGPC: धार्मिक और सामाजिक संस्था या कुश्ती का मैदान!!

Jamshedpur ,9 April : CGPC सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के प्रधान पद पर गुरुमुख सिंह मुखे के आसन को लेकर गोली की तरह जिस तरह बोली फूट रही है, कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में यह पवित्र कमिटी किसी बड़ी हिंसा का गवाह या खूनी घटनास्थल बन जाए और सिख समाज की जुझारू और गौरव पूर्ण संस्कृति पर कोई बड़ा दाग लग जाये।
गुरुचरण सिंह बिल्ला जिस तरह मुखे पर हमला कर रहे हैं और इस दौरान दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे के आपराधिक इतिहास का बखान किया जा रहा है उससे कोई भी आम आदमी सहज सहम जा सकता है। मुखे का यही कहना है कि उनका चुनाव हुआ जिसके बाद उनके प्रभाव से घबड़ाये कुछ लोगों ने उन्हें गोली कांड में फंसाया । उनपर अभी कोई आरोप सिद्ध नही हुआ जबकि उन पर आरोप लगाने वाले लोग तो खुद सजायाफ्ता हैं, अपितु उन्हें किसी गुरुद्वारा कमिटी के शायद ही समर्थन प्राप्त है। उनके खिलाफ कमिटी में कहीं कोई बगावत नहीं है। जो लोग उनके विरुद्ध खड़े होकर हिंसा का माहौल बना रहे वे कानूनी तरीके से या CGPC बायलॉज के अनुसार कार्रवाई क्यों नहों कराते ? समाज और CGPC कमिटी कह दे तो वे अविलंब पद त्याग कर देंगे लेकिन इस तरह उनका नाम सड़कों पर उछलाने से वे डरने वाले नहीं हैं।
CGPC का निश्चित रूप से अपना कोई विधान होगा जिसके तहत इसका संचालन होता है । यहां निर्वाचित बॉडी काम करती है। इसके ऊपर किसका नियंत्रण होता है? अगर किसी प्रधान को मिड टर्म हटाना हो तब उसे कैसे हटाया जा सकता है, इसको लेकर कोई नियम या प्रावधान होगा? उस तरीके को अख्तियार करना और विधि सम्मत तरीका अपनाने के बजाय जिस तरह “तू तू -मैं मैं ” हो रही है उससे लगता है CGPC अपने मूल उद्देश्य से भटक कर जोर आजमाइश का केंद्र बन गयी है। आम समाज की बातें नदारद होकर केवल चंद लोगों के हल्ला बोल और हंगामे का स्वर ही बाहर आ रहा है। इतना तो जाहिर है कि पीछे से कुछ शक्तियां दोनों पक्षों की पीठ ठोक कर उन्हें लड़ा रही हैं। दोनों पक्षों के इतिहास और विवाद को देखते हुए प्रशासन को एक सामाजिक व धार्मिक संस्था को खून खराबे का घटनास्थल बनने से रोकने के लिए लॉ एंड आर्डर संबंधी प्रदत शक्तियों का उपयोग करते हुए CGPC के बाहरी तत्वों के आसपास प्रवेश पर रोक तथा आरोप प्रत्यारोप मढ़ने वालों पर अलग से न्यूनतम 107 की कानूनी कार्रवाई का घेरा लगाना चाहिये या अन्य विहित प्रक्रिया के तहत अविलंब डंडा घुमा देना चाहिए, नही तो बाद में सिर्फ बदनामी और उदासीनता के लांछनों को ही झेलना होगा।

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