विस्तारवादी कभी नहीं रहा भारत

हमारा सिद्धांत कभी से विस्तारवादी नहीं रहा और न हम अधिनायकवादी रहे। भारत शुरू से उदारवादी रहा है। त्रेतायुग से लेकर कलियुग तक इतिहास के पन्ने इसके गवाह हैं। किसी की एक इंच जमीन कब्जाने की कभी मंशा नहीं रही। जब भी मौका मिला, शेर के जबड़े में हाथ डाल कर उसके दांत गिनने वाले भरतवंशियों ने किसी अतिवादी, अत्याचारी, पापी और अन्यायी शासकों से पीड़ित-प्रताडित मानवता को न्याय दिलाने का काम किया। खोई हुई सत्ता, संपत्ति, जमीन, जायदाद, यहां तक कि बीवी भी वापस दिलवाई। चाहे वो किष्किंधा नरेश सुग्रीव हों, दशानन के अनुज विभीषण हों या कोई और। इनका खोया राजपाट जीतकर उन्हें ही सौंप दिया। कभी हथियाने या हड़पने की मंशा नहीं रही। इन्हें छोड़िए, कोई 50 बरस पहले की बात है, एक आतताई शासक के जबड़े से बांग्लादेश को आजाद कराकर वहां का शासन वहां की अवाम को सौंप दिया। वे आज आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं।
हमारी ही जमीन दो-तीन मुल्कों ने कब्जाई हुई है, या बे सिर पैर के दावे कर रहे हैं।
खैर, एक और छोटा सा मुल्क एक अधिनायकवादी शासक के पंजों में फंसा छटपटा रहा है। यह मसला हमारी नजर में है। कुछ करने का इरादा भी है……
वक्त आने पर बता देंगे तुम्हें ये आसमां
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है….

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