मजदूरों की व्यथा-कथा बीते 70 सालों की विकास यात्रा की ऑडिट रिपोर्ट है :- गो्विंदाचार्य

नई दिल्ली :- 16 मई स्वदेशी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि प्रवासी मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के स्वरोजगारियों की घर-वापसी की अंतहीन व्यथा-कथा, उनका मौन विलाप पिछले 70 वर्षों की विकास यात्रा की कथा का ऑडिट रिपोर्ट है बैलेंसशीट में प्रवासी मजदूरों और उनके समकक्ष लोग कम से कम 45 करोड़ लोग बैठते है उनकी यात्रा संकल्प ने वर्तमान राजसत्ता व्यवस्था को अपने लिये अस्वीकृत कर लिया और अपने को भगवान् के हवाले कर निकल पड़ा. लॉकडाउन के पहले ही तीन, चार दिन लगाकर व्यवस्थित वापसी का इन्तजाम किया जा सकता था. दूसरे लॉकडाउन में इज्जतपूर्वक वापसी की व्यवस्था की जा सकती थी.
उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र में ही देश मे 45 करोड़ खाते हैं उनमे से 5 करोड़ वापस आने थे उसमे से प्रदेश के अन्दर तो लोग जैसे-तैसे वापस आ सके फिर भी करोड़ों लोग फंस गये प्रदेश के बाहर से लौटने वालो के प्रति कड़ाई बढती गई बहुत देर हुई यह समझने में कि ऐसे संकट में घर वापस जाने की इच्छा उचित एवं स्वाभाविक है, रोकने की बजाय व्यवस्थाएं की जानी चाहिये थी जो नहीं हो सकी फलत: आज का दारुण दृश्य दिख रहा है7 यह दृश्य मैन मेड या स्टेट मेड है देश के प्रभु वर्ग ने कैटल क्लास को भगवान भरोसे छोड़ दिया7 समाज ने एक सीमा तक साथ दिया7
गोविंदाचार्य ने कहा कि ये मजदूर किसी शौकिया हिच हाइकिंग या ट्रेकिंग के नहीं अपने शरीर और प्राणों को जोड़े रखने की कवायद मे लगे है! अभी तक 2 लाख मजदूरों को उत्तरप्रदेश में वापस किया गया है इसमे 10 दिन लगे 20 लाख मजदूरों की वापसी मे तो 50 दिन लग जायेंगे अभी बचे पैसे खत्म हो चले हैं, काम धंधा बंद है, कोरोना का डर अलग से है तो वे अब मरता क्या न करता की मनस्थिति मे चल पड़ेे हैं असंगठित क्षेत्र के कितने लोग कहाँ फंसे है इसका अंदाज ही लगाया जा रहा है इसमे भी केंद्र, राज्य सरकारें राजनीति खेल रही हैं
उन्होंने कहा कि सत्ता तंत्र पर राहत के लिये निर्भरता, भारतीय समाज व्यवस्था मे अधिक से अधिक पूरक व्यवस्था हो सकती है समाधान कारक नहीं पूज्य श्री विनोबा भावे ने कहा था-असरकारी काम के लिये काम (अ)सरकारी होना चाहिये
घर वापसी की जद्दो-जहद मे लगे लाखों मजदूर और स्वरोजगारों का काफिला हमसे सवाल कर रहा है कि क्या 75 वर्ष की भारत की विकास का इतना ही उनके हिस्से पडऩा वाजिब था या वे अधिक के हकदार हैं वे हाशिये पर कब? कैसे? किन कारणों से पड़ गये या डाल दिये गये है! क्या कोई इन प्रश्नों का उत्तर देगा? या कोई इसके लिये अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करता है? अन्यथा इतनी लंबी-चौड़ी राज्य का उपादेयता किन के लिये रह जाती है? उनकी सुध लेने को सरकार और समाज दोनों को युद्ध स्तर पर इन 45 करोड़ लोगों को प्राथमिकता देनी होगी भारतीय मजदूर संघ सरीखे समाज के सक्रिय समूहों से संवाद कर साथ लेना होगा इस क्रम मे सभी को यह ध्यान रखना है कि सभ्य समाज में राज्य व्यवस्था की स्थापना के पीछे प्रस्थापना है कि राज्यवस्था उनके बचाव के लिये सृजित हुई है जो खुद का बचाव न कर सकें
सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था को इसी कसौटी पर कसना प. दीनदयाल जी के विचारों की अनुपालना की शुरुआत होगी।

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