ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ रतन टाटा भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, कहा- मिस्त्री की कमियों से टाटा ग्रुप की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची ट्रिब्यूनल ने मिस्त्री की बहाली के आदेश दिए थे, रतन टाटा के रवैए को पक्षपातपूर्ण और दमनकारी बताया रतन टाटा ने कहा- फैसले में एक चुङ्क्षनदा बात का प्रचार, संबंधित तथ्य दबा दिए गए

नई दिल्ली ,3 जनवरी (ईएमएस): सायरस मिस्त्री मामले में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के फैसले के खिलाफ टाटा ग्रुप के चेयरमैन एमेरिटस रतन टाटा ने भी शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी। रतन टाटा ने दलील दी है कि अपीलेट ट्रिब्यूनल ने उन्हें बिना तथ्यों या कानूनी आधार के दोषी ठहरा दिया। मिस्त्री की कमियों की वजह से टाटा ग्रुप की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा। टाटा की याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई के आसार हैं। बता दें मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाने के मामले में ट्रिब्यूनल ने बीते 18 दिसंबर को फैसला दिया था। फैसले में कहा था कि रतन टाटा ने टाटा सन्स के अल्प शेयरधारकों के हितों की अनदेखी कर पक्षपातपूर्ण और दमनकारी कदम उठाए। मिस्त्री फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन नियुक्त किए जाएं। बता दें मिस्त्री परिवार के पास टाटा सन्स के 18.4′ शेयर हैं।
रतन टाटा की 5 अहम दलीलें
1. मिस्त्री प्रोफेशनल क्षमताओं के आधार पर टाटा सन्स के चेयरमैन बनाए गए थे, शपूरजी पलोंजी ग्रुप के प्रतिनिधि के नाते नहीं।
2. मिस्त्री की नियुक्ति के वक्त यह शर्त रखी गई कि वे परिवार के बिजनेस से खुद को अलग रखेंगे, इस मामले में अनिच्छा की वजह से मिस्त्री की लीडरशिप प्रभावित हो रही थी।
3. मिस्त्री ने शक्तियां और अधिकार अपने हाथ में लेने पर फोकस किया, बोर्ड के सदस्य अलग-थलग किए जा रहे थे।

4. मिस्त्री जापान की कंपनी डोकोमो के साथ टाटा की पार्टनरशिप को संभालने में विफल रहे। इस मामले में उनका जिद्दी रवैया सामने आया था। यह टाटा सन्स ब्रांड की पहचान के विपरीत था।
5. ट्रिब्यूनल के फैसले में कहा गया कि मेरे और मिस्त्री के बीच 550 ईमेल का आदान-प्रदान हुआ, लेकिन ये मेल चेयरमैन एमेरिटस और चेयरमैन के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए हुए थे। इनमें दखल देने जैसी कोई बात नहीं थी।

रतन टाटा ने ट्रिब्यूनल का फैसला खारिज करने की अपील की
रतन टाटा ने कहा है कि ट्रिब्यूनल का निष्कर्ष गलत है, यह केस के रिकॉर्ड के विपरीत है। फैसले में एक चुङ्क्षनदा बात का प्रचार किया गया, जबकि संबंधित तथ्य और रिकॉर्ड दबा दिए गए। रतन टाटा ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि ट्रिब्यूनल का फैसला खारिज किया जाए। टाटा सन्स भी गुरुवार को ट्रिब्यूनल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुकी।

रतन टाटा से मतभेदों की वजह से मिस्त्री हटाए गए थे: रिपोट्र्स
टाटा सन्स टाटा ग्रुप की होङ्क्षल्डग कंपनी है। टाटा सन्स के 66′ शेयर टाटा ट्रस्ट के पास हैं। टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा हैं। वे 1991 से 2012 तक टाटा सन्स के भी चेयरमैन रहे थे। उनके रिटायरमेंट के बाद सायरस मिस्त्री चेयरमैन नियुक्त हुए, लेकिन चार साल बाद ही हटा दिए गए। अलग-अलग रिपोट्र्स के मुताबिक सायरस मिस्त्री निवेश के फैसलों में रतन टाटा के खिलाफ थे। उन्होंने रतन टाटा पर टाटा सन्स के कामकाज में दखल देने का आरोप भी लगाया था।

मिस्त्री ने टाटा सन्स के प्रबंधन में खामियों के आरोप लगाए थे
टाटा सन्स के बोर्ड ने 24 अक्टूबर 2016 को मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था। बोर्ड के सदस्यों का कहना था कि मिस्त्री पर भरोसा नहीं रहा। इसके बाद रतन टाटा अंतरिम चेयरमैन बने थे। जनवरी 2017 में एन चंद्रशेखरन एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बना दिए गए। मिस्त्री ने चेयरमैन के पद से हटाने के फैसले को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में चुनौती दी थी। उन्होंने टाटा सन्स के प्रबंधन में खामियों और अल्प शेयरधारकों को दबाने के आरोप लगाए थे। हालांकि, एनसीएलटी ने पिछले साल जुलाई में टाटा सन्स के पक्ष में फैसला दिया था। इसके बाद मिस्त्री अपीलेट ट्रिब्यूनल पहुंचे थे। मिस्त्री अभी अपने परिवार के कारोबारी समूह की फर्म शपूरजी पलोंजी एंड कंपनी के एमडी हैं।

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