एमटीएमसी में मेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन पर गोष्ठी, 2047 तक विकासशील भारत की यात्रा में योगदान

जमशेदपुर : मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज में आज बायो मेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन विषय पर एक महत्वपूर्ण गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसे बैंगलोर से आईं प्रसिद्ध चिकित्सिका डा. गडि़चेरला सुमन ने मुख्य वक्ता के रुप में विषय वस्तु पर प्रकाश डाला. डा. सुमन ने भिन्न भिन्न अपशिष्टों के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि अस्पताल से निकलनेवाले अपशिष्ट पदार्थों का अगर सही ढंग से प्रोसेसिंग नहीं किया गया तो इससे एचआईवी, हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों, वायु और जल प्रदूषण तथा अन्य प्रकार के जख्मों का खतरा होता है. उन्होंने इसकी रोकथाम के लिये चार आर-रिड्यूस, रियूज, रिसाइकल और रिकवर पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि देश में बायो मेडिकल वेस्ट को नियंत्रित करने के लिये 2016 में कानून बना और इसके क्रियान्वयन की जिम्मेवारी प्रदूषण नियंत्रण परिषदों तथा जिलाधिकारी की अध्यक्षतावाली जिलास्तरीय निगरानी कमिटियों को सौंपा गया. चूंकि इन परिषदों और कमिटियों के पास मानव शक्ति और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, इसलिये संभव है अस्पतालों में इस विषय पर उनका नियंत्रण उतना नहीं होता. कई अस्पतालों में तो इन परिषदों का भ्रमण भी नहीं होता. अतएव यह हमारी जिम्मेवारी है कि हम अस्पताल अपशिष्टों का प्रबंधन करने के लिये सजग हों क्योंकि अस्पतालों की जिम्मेदारी सबका शुभ और सबका स्वास्थ्य बनाये रखना होता है. इस प्रक्रिया की कई विधियां है, जिन्हें हमें जरुर पालन करना चाहिये. चिकित्सक समुदाय की यह भूमिका होनी चाहिये कि वह जागरुकता पैदा कर रियूज, रिसाइक्लिंग, नियमित ऑडिटिंग, मॉनिटरिंग करता रहे और नवाचार द्वारा अपशिष्टों को उनके उचित जगह पर पहुंचाकर प्रदूषण को रोके.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री द्वारा विकसित भारत अभियान का जो संकल्प लिया गया है, उसके तहत 2047 तक अमृत काल विमर्श विकसित भारत का अभियान चलाया गया है. इसी क्रम में सभी चिकित्सकीय संस्थानों को अपशिष्ट प्रबंधन पर गोष्ठियां आयोजित कर जागरुकता फैलाने और अपशिष्ट प्रबंधन को मजबूत बनाने की सलाह दी गई. इस क्रम में मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज ने यह प्रयास किया. विदित हो कि मणिपाल को इंस्टीच्यूट ऑफ इमीनेंस का दर्जा प्राप्त है और देश में चिकित्सकीय शिक्षा में इसका विशेष स्थान है.
प्रारंभ में कॉलेज के डीन डा. जी प्रदीप कुमार ने विषय प्रवेश कराया और बताया कि समाज में हर व्यक्ति बायोलॉजिकल अपशिष्ट फैलाता है, जिसे जागरुकता फैलाकर ही रोका जा सकता है. जैसे जहां-तहां थूकना, यत्र तत्र खून लगे रुई फेंकना, घर में दवाओं या सिरिंज को इधर उधर रखना प्रदूषण फैलाने में अहम भूमिका निभाते हैं.
कॉलेज के प्रशासक डा. राजीव द्विवेदी ने बड़े ही आध्यात्मिक लहजे में वेद की ऋचाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि सनातन धर्म में स्वास्थ्य और सुख के लिये जो वर्णन किया है, उसका आज वैज्ञानिक अनुपालन करने पर जोर दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पीपल के पेड़ की बड़ी महत्ता है, जो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है.
सत्र में मेडिकल के प्रथम और द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिये प्रश्न-उत्तर सत्र का भी आयोजन किया गया, जिसमें छात्रों ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की. डा. सुमन ने उन्हें बताया कि चिकित्सक के नाते उनको भविष्य में क्या भूमिका निभानी है. प्रारंभ में कॉलेज के एसोसिएट डीन विजय कौटिल्य ने स्वागत भाषण किया. दीप प्रज्वलन के बाद कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई.

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