महंगाई अब क्यों नहीं बनता बड़ा मुद्दा

देश में महंगाई चरम पर है । पेट्रोल ,डीजल, रसोई गैस, खाने पीने की चीजों से देकर मकान बनाने की सामग्रियों की कीमतों में आग लगी हुई. आम जनता इस हालात से बुरी तरह परेशान है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतना कुछ होने के बाद भी महंगाई पर इतनी चर्चा क्यों नहीं हो रही? साल 2014 में तब के भारतीय जनता पार्टी प्रचार अभियान दल के प्रमुख नरेंद्र मोदी ने महंगाई को एक बड़ा मुद्दा बनाया था और तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ जोरदार हमले बोले थे। ऐसा माहौल बनाया कि यदि भाजपा जीती तो अच्छे दिन आयेंगे। यह नारा खूब हिट हुआ था। ऐसा माहौल बनाया गया मानो महंगाई पर पूरी तरह अंकुश लग जाएगी। लेकिन अभी जो कुछ हो रहा है वह भारतीयों को परेशान करने वाला है ।
यहां बड़ा सवाल यह है कि इतना कुछ होने के बाद भी देश की राजनीतिक जमात चुप हैं। विपक्षी दल इसे बड़ा मुद्दा नहीं बना पा रहे । इसे विपक्षी कमजोरी भी कहा जा सकता है। महंगाई हमेशा से विपक्ष का बड़ा हथियार रहा है लेकिन यह पहला मौका देश में देखने को मिल रहा है जब महंगाई पर सत्ता ही हावी है। महंगाई की बात करने वालों पर सत्ता धारी दल से अधिक उसके समर्थक हावी हैं। सोशल मीडिया पर महंगाई की बात होती नहीं कि ऐसा करने वाले को ट्रोल करने लगा जाता है। गरीब को मुफ्त में राशन मिल रहा है। उसेकई और सुविधायें मिलती हैं। अमीरों के लिये महंगाई कोई मुद्दा नहीं। बचा मध्यम वर्ग। उसे कुछ नहीं मिल रहा लेकिन महंगाई का सबसे अधिक बचाव यही वर्ग करता मिलेगा । वैसे महंगाई पर बहस से अधिक कई ऐसे मुद्दे आ जाते हैं जिससे किसी को फुर्सत नहीं मिल पा रही कि महंगाई पर चर्चा करे। ऐसे मुद्दों पर होने वाली बहस अधिक सूकुन देने वाले हैं। पूरा देश अभी फिल्म कश्मीरी फाइल्स के नफा नुकसान के आकलन में व्यस्त है । दोनो ओर से तलवारें खिच गयी हैं। साल 1990 की तरह आज भी इस फिल्म को लेकर दो फाड़ साफ दिखती है। फिर महंगाई की बात करने की किसे फुर्सत है। रूस यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग भी महंगाई के मुद्दे पर हावी है। रही सही कसर पाकिस्तान के राजनीतिक घटनाक्रम ने पूरी कर दी है. श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है उसकी भी चर्चा हो रही है। सारी चर्चा हो रही है, सबपर बहस किये जा रहे हैं लेकिन जिससे हमें रोज का लेने देना है और उसपर कोई चर्चा नहीं हो रही। पेट्रोल डीजल की कीमतों की बढोतरी की कोई बात करता है तो यह कहकर उसका मुंह बंद करा दिया जाता है कि जिसे पास गाड़ी नहीं वह पेट्रोल की बात करता है। भारत में डीजल की सबसे ज्यादा खपत ट्रांसपोर्ट और एग्रीकल्चर सेक्टर में होती है। दाम बढ़ने पर यही दोनों सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।महंगाई का बचाव करने वाले सोशल मीडिया पर अनेक आंकड़े गिनाने लगते हैं । पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव खत्म होने के बाद पेट्रोल डीजल की कीमत पिछले 13 दिनों में लगातार बढ रही है। राजस्थान में 120 प्रति लीटर की कीमत पर पेट्रोल मिल रहा है। जमशेदपुर में पेट्रोल की कीमत 106.99 रुपये है। अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में 12 रु तक की और बढ़ोतरी हो सकती है।
महंगाई की चर्चा होने पर कभी मनमोहन सरकार के पेट्रोबांड की चर्चा होती है तो कभी रुस यूक्रेन युद्ध को कारण बताया जाने लगता है। आलम यह हो गया है कि पिछले 2 साल में किचन का बजट करीब 40प्रतिशत तक बढ़ चुका है यह कहां जाकर रुकेगा कह पाना मुश्किल है। इतना कुछ होने के बाद भी विपक्षी दलों के नेता घरों में बैठे हैं। इक्का दुक्का प्रदर्शन विरोध कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली जाती है। माना जाता है कि विपक्षी दल जनता के साथ खड़े होते हैं लेकिन देश में विपक्षी दल की कमजोरी का सत्ताधारी दल पूरा फायदा उठा रहा है । उसका तर्क है कि जनता कहां नाराज है? जनता ने तो चार राज्यों में भाजपा के पक्ष में ही मतदान किया है। इसका यह मतलब नहीं कि महंगाई बढ़ाने का सरकार को लाइसेंस मिल गया है। पिछले 13 दिनों में 11 बार पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ी है हर बढ़ोतरी 80 पैसे की हो रही है मानों सरकार ने कोई एक फार्मूला तय कर रखा है ।जैसी राजनीतिक शून्यता दिख रही है ,लगता नहीं कि आने वाले दिनों में आम जनमानस को कोई राहत मिलने जा रही है।

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