सरकारी स्कूलों में जाति प्रमाण पत्र : आंकड़ों के खेल में उलझा मामला

जमशेदपुर, 28 मार्च (रिपोर्टर) : सरकारी स्कूलों में जाति प्रमाण पत्र बनाये जाने को लेकर कई तरह की नई नई समस्याएं सामने आ रही है. बच्चों, अभिभावकों से लेकर स्कूली शिक्षक शिक्षिकाएं आंकड़े के खेल में उलझकर रह गये हैं. जाति प्रमाण पत्र के लिये स्कूलों में दाखिले के समय अभिभावकों द्वारा एफिडेविट लिया जाता रहा है. अब जाति प्रमाण पत्र के लिये एक फॉर्म मुहैया कराया गया है. जाति प्रमाण पत्र के लिये झारखंड का खतियान होना चाहिये. सरकारी स्कूल में पढऩेवाले अधिकांश बच्चों के पास खतियान नहीं है. जमीन जायदाद होती तो वे सरकारी स्कूलों में ही क्यों पढ़ते. खतियान नहीं होने की सूरत में नोटरी से लिखाकर लाने को कहा जाता है. नोटरी इसके लिये 300 रुपये का शुल्क लेता है. एक जाति प्रमाण पत्र के लिये अभिभावक को करीब 500 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं. उसके अलावा उन्हें इधर-उधर दौड़ लगानी पड़ रही है. रोज कमाने खानेवाले गरीब मजदूर अभिभावकों के लिये यह एक नई समस्या पैदा हो गई है. सरकारी स्कूलों में बीएलई को तैनात किया गया है, जो फॉर्म भरे जाने के बाद जाति प्रमाण पत्र प्रक्रिया के लिये आगे की कार्रवाई में सहयोग करेगा. समस्या यह है कि इतना सारा कुछ होने के बाद भी जाति प्रमाण पत्र तैयार हो जाएगा, इसकी भी गारंटी नहीं है. स्कूली शिक्षक शिक्षिकाएं पठन पाठन के मूल कार्य से हटकर ऐसे कार्यों में लगे हुए हैं. लंबे समय तक बंद रहने के बाद स्कूल खुले हैं, लेकिन इन प्रक्रियाओं की वजह से पढ़ाई पूरी तरह बाधित हो रही है.

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