विश्व का तोरणद्वार है हिंदी

किसी देश की भाषा केवल उस देश की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं होती,अपितु उस देश की अस्मिता का बोधक हुआ करती है।हिन्दी भारत की केवल राष्ट्रभाषा और राजभाषा ही नहीं है,अपितु यह भारतवर्ष की अस्मिता का बोधक है।यह भारत मां के ललाट की बिंदी है।इस पर हमें नाज और ताज है इसीलिए कहा गया है कि:-
कोटि कोटि कंठो की भाषा,
जन-मन की मुखरित अभिलाषा।
हिंदी है पहचान हमारी,
हिन्दी हम सबकी परिभाषा।
हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में विदेशों में जाने का अवसर मुझे अनेक बार मिला है।सबसे पहली बार 2009 में मारीशस जाने का अवसर मिला वहां भारतवंशियों की संख्या अधिक है और वहां की राष्ट्र भाषा भोजपुरी है।मारीशस के महात्मा गांधी विश्वविद्यालय में हिंदी का अध्ययन अध्यापन विधिवत होता है।मुझे यह लिखने में प्रसन्नता हो रही है कि मारीशस की राजधानी पोर्ट लुई में तीन बार विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ- दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 1976 में, चौथा 1993 में और एकादश 2018 में पोर्ट लुई में आयोजित हुआ। मारीशस के लोग भोजपुरी और हिंदी से अगाध प्रेम करते हैं। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के कण कण में व्याप्त है।इसी लिए राष्ट्र कवि दिनकर ने मारीशस को हिंदी महासागर का छोटा सा हिंदुस्तान कहा है।2010 में उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वहां भी हिंदी अध्ययन अध्यापन सीमित पैमाने पर होता है। ताशकंद (पहाड़ों पत्थरों का शहर) की प्राकृतिक शोभा न्यारी ओर चित्ताकर्षक है।2013 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद नयी दिल्ली के सौजन्य से हिंदी अध्यापन के लिए अतिथि प्राध्यापक के रुप में जर्मनी के जोहांसगुटेन वर्ग विश्वविद्यालय माइंस में एक सत्र के लिए जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जर्मनी में कुल 16 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें 14 में किसी न किसी रूप में हिंदी का अध्ययन अध्यापन होता है, हालांकि विद्यार्थियों की संख्या प्रत्येक विश्वविद्यालय में 40-50 से अधिक नहीं है। लेकिन जर्मनी के लोग हिंदी सीखना चाहते हैं-यह हिंदी के लिए गौरव का संदर्भ है।इसी प्रकार थाईलैंड कै शिल्पाकान विश्वविद्यालय, सिंगापुर के सिंगापुर विश्वविद्यालय और विश्व के सर्वाधिक खुशहाल देश फिनलैंड के हेलसिंकी विश्वविद्यालय में भी जाने का अवसर मिला और हिंदी की सेवा की। हेलसिंकी विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डा मिक्को वीता माक्की का हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति जो अनुराग , निष्ठा और समर्पण है,उसे भुला पाना मेरे लिए असंभव है।उनकी अतिथि सेवा भी काबिले तारीफ है।
हिन्दी के वैश्विक प्रचार प्रसार के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर 12 विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्न हो चुके हैं,जो हिन्दी की वैश्विकता के विग्रह हैं :-
प्रथम सम्मेलन-10-12 जनवरी,1975-नागपुर, भारत
द्वितीय सम्मेलन-28-30 अगस्त,1976-पोर्टलुई, मारीशस

तृतीय सम्मेलन-28-30 अक्टूबर,1983-नई दिल्ली, भारत
चतुर्थ सम्मेलन-2-4 दिसंबर,1993-पोर्टलुई,मारीशस
पंचम सम्मेलन-4-8 अप्रैल,1996-पोर्ट आफ स्पेन,त्रिनिदाद एंड टोबेगो
षष्ठ सम्मेलन-14-18 सितबंर 1999 लंदन,यू.के
सप्तम सम्मेलन-6-9 जून 2003 पारामारिबो,सूरीनाम
अष्टम सम्मेलन-13-15 जुलाई,2007-न्यूयॉर्क, यू.एस.ए.
नवम 22-24 सितंबर,2012 जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका
दशम 10-12 सितंबर,2015-भोपाल,भारत
एकादश सम्मेलन-18-20 अगस्त 2018 पोर्टलुई, मारीशस
द्वादश सम्मेलन 15-17 फरवरी 2023-नादी,फिजी
ये सभी सम्मेलन इस बात के साक्षी हैं कि हिंदी केवल राष्ट्रीय क्षितिज पर ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर भी अपना परचम फहरा रही है। वह दिन दूर नहीं जब हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की 7 वीं अधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत होगी। अभी संयुक्त राष्ट्र संघ में 6 भाषाएं (अंग्रेजी, चीनी,रूसी, फ्रेंच, स्पेनिश और अरबी )अधिकारिक रुप में मान्यता प्राप्त हैं।कविवर डा उमा शंकर चतुर्वेदी कंचन ने अपने हिंदी खण्ड काव्य में ठीक ही लिखा है कि :-
केश है,कंघा है,कच्छा,कड़ा,
सिख धर्म के हाथ कटार है हिंदी।
बात करो दिन रात जहां मन,
चाहे बेतार का तार है हिंदी।
पूजा से पूर्व पुरोहित हाथ,
सजाई हुई यह थार है हिंदी।
संस्कृति और संस्कार लिए हुई,
विश्व का तोरण द्वार है हिंदी।

12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी के नादी शहर में 15,16 और 17 फरवरी 2023 को आयोजित हुआ। फिजी भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 21000 हजार किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर का एक द्वीप है।यह 300 द्वीपों का एक समूह है,जहाँ 1879 में अंग्रेज भारतियों को ईख के खेतों में काम करने के लिए ले गये थे;जिन्हे गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था।फिजी की राजधानी सुआ है,जो एक खूबसूरत शहर है।12 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन फिजी के नादी शहर के शेरेटन होटल में हुआ।12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन का केंद्रीय विषय था:-
हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक।
जिसका समवेत रूप में उद्घाटन भारत के विदेश मंत्री डा एस.जयशंकर और फीजी गणराज्य के राष्ट्रपति महामहिम रातू विल्यम कटोनिवेरे ने किया।महामहिम ने कहा कि आधुनिक फिजी के निर्माण में भारतवंशियों का बहुत बड़ा योगदान है ,हम इसे भुला नहीं सकते,जबकि विदेश मंत्री डा एस.जयशंकर ने कहा कि हमें इस बात का हर्ष है कि 12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आतिथ्य फिजी कर रहा है।यह हमारे दीर्घकालिक संबंधों को आगे बढ़ाने का सुअवसर है। हिंदी फिजी में द्वितीय राजभाषा है-यह प्रसन्नता का संदर्भ है। इस अवसर पर विदेश राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र ने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए भारत सरकार तत्पर है।विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने कहा कि हिंदी के विकास के लिए फिजी में भाषा प्रयोगशाला खुलेगा।आगत अतिथियों का भव्य स्वागत पारंपरिक ढ़ंग से किया गया।वैदिक और लौकिक रीति से मंगलाचरण किया गया।उद्घाटन दोनों देशो के राष्ट्रगान से और उद्घाटन सत्र का समवेत संचालन डा अलका सिंहा और डा अनुराधा पाण्डेय ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन फिजी के शिक्षा मंत्री ने किया। भारत सरकार के 285 सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल ने इसमें भाग लिया।प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व विदेश मंत्री डा एस. जयशंकर ने किया।इस प्रतिनिधि मंडल में विदेश राज्य मंत्री वी.मुरलीधरन और गृहराज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के साथ साथ झारखंड की राज्य सभा सांसद डा.महुआ माजी के अलावे भारत के 10 सांसदों ने भी अपनी सहभागिता प्रदान की।भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में झारखंड से लोकप्रिय दैनिक प्रभात खबर के मुख्य संपादक श्री आशुतोष चतुर्वेदी,रांची विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डा जे बी पाण्डेय,राज्य सभा सांसद सह साहित्यकार डा महुआ मांजी, जमशेदपुर के साहित्यकार श्री जयनंदन,जामताड़ा के हिंदी शिक्षक सह कवि डा अरुण कुमार वर्मा ने अपनी सहभागिता प्रदान कर इस 12 वे विश्व हिंदी सम्मेलन को सार्थकता प्रदान की।बिहार से नई धारा पत्रिका के संपादक डा शिव नारायण,छपरा से डा कुमार वरुण, जहानाबाद से डा विपिन कुमार और मुजफ्फरपुर से डा राजेश्वर कुमार ने और कोलकाता से .डा साहब उपाध्याय ने भी भाग लिया।बताते चलें कि इस 12 वे विश्व हिंदी सम्मेलन का विषय था-हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक।10 सत्रों में विभाजित इस विश्व सम्मेलन में झारखंड के प्रतिनिधियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने सारगर्भित वक्तव्यों से हिंदी के वैश्विक प्रचार प्रसार की कामना की।
अंतिम दिन हिंदी सेवा के लिए देश के (12)और विदेश के(13)= 25 विद्वानों और विदुषियों को सारस्वत हिंदी सम्मान से सम्मानित किया गया। वैश्विक मंगल की कामना से पूर्णाहुति हुई:-
सर्वे भवंतु सुखिनः,
सर्वे स़ंतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,
मा कश्चित् दुख भाग्भवेत्।

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