मुफ्त योजनायेें भी न बन जाये सिरदर्द


देश में जिस तरह सरकारें सब कुछ मुफ्त में लुटा रही हैं, उसका गंभीर परिणाम देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। हाल ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कुछ आला अधिकारियों की बैठक में यह मुद्दा उठा। दो अधिकारियों ने बैठक में कहा कि जिस तरह राज्य सरकारें मुफ्त में सुविधायें मुहैया करा रही हंै उससे श्रीलंका वाले हालात पैदा हो सकते हैं। खासकर आमआदमी पार्टी ने इसे वोट ‘खरीदने’ का जरिये बना लिया है। पंजाब में उसने 300 यूनिट बिजली फ्री देने की घोषणा की थी। इसके अलावे हर महिला को प्रतिमाह 1000 रुपये भी दिये जाने का ऐलान विधानसभा चुनाव के पूर्व किया था। दिल्ली में उसका फ्री वाला मॉडल हिट रहा है और अब वह जहां भी चुनाव लड़ रही है वहां इसी मॉडल की घोषणा कर रही है। देश के अधिकांश राज्य कर्ज में डूबे हुए है पैसा कहां से आयेगा, इसकी कोई योजना नहीं है लेकिन मुफ्त में सुविधायें दी जा रही हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी फ्री मुफ्त में अनाज देने की योजना का भाजपा को पूरा फायदा मिला था।
चिंता इस बात की है कि आरक्षण की तरह यह भी नया सिरदर्द न बन जाये। भीमराव अम्बेडकर ने 10 साल के लिये आरक्षण की सुविधा लागू करने की बात कही थी लेकिन सात दशक बीतने के बाद भी यह सुविधा जारी है। अब किसी राजनीतिक दल में इतना साहस नहीं कि वह आरक्षण को लेकर कोई चर्चा तक करे। आरक्षण अब हक बन गया है। ऐसा ही मुफ्त में सुविधायें प्रदान की जाने वाली योजनाओं के साथ भी होने जा रहा है। राजनीतिक दल त्वरित लाभ के लिये ऐसी योजनायें लोगों के सामने लाती है लेकिन राज्य की आर्थिक सहेत पर इसका कितना असर पड़ता है, इससे उनका कोई लेना देना नहीं रहता। यदि उस दल की सरकारें गिर गई तो आने वाली सरकार को सब झेलना होगा? श्रीलंका में यही हो रहा है। वहां की सरकारें चीन से कर्ज पर कर्ज लेती गई, आज हालात बेहाथ हो गये है। लेकिन देश में ऐसी घोषणाओं पर अंकुश कौन और कैसे लगा सकता है, यह बड़ा सवाल है।

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