डा जे जे ईरानी के योगदानों को भुलाया नहीं जा सकता

टाटा स्टील के पूर्व प्रबंध निदेशक पद्मभूषण से सम्मानित डा जमशेद जे ईरानी के निधन से केवल उद्योग जगत ही नहीं, पूरे समाज को भारी क्षति हुई है। उन्हें एक दूरदर्शी लीडर के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में भारत के आर्थिक उदारीकरण के दौरान टाटा स्टील का नेतृत्व किया और भारत में इस्पात उद्योग के उन्नति और विकास में अत्यधिक योगदान दिया। डा ईरानी ने टाटा स्टील की अगुवाई ऐसे समय में ही जब उसके सामने उसके इतिहास की शायद सबसे कठिन चुनौती थी। औद्योगिक उदारीकरण के इस दौर में भारतीय इस्पात उद्योग पर देश की अर्थ व्यवस्था का बहुत बड़ा दारोमदार था। ऐसे दौर में उन्होंने टाटा स्टील का कायाकल्प कर पूरे उद्योग जगत को चकित कर दिया था। उनका कहना था कि टाटास्टील में बदलाव लाना टाइटेनिक को घुमाने जैसा है। करीब 85 हजार मैन पावर वाली इस कंपनी में मजदूरों के साथ समन्वय स्थापित कर और कई ऐसी दूरगामी योजनाओं को लाकर कंपनी के हितों के साथ साथ मजदूरों के हितों का भी उन्होंने उतना ही ख्याल रखा। ऐसे कठिन दौर में सामाजिक जिम्मेदारियों से भी वे पीछे नहीं हटे और जमशेदपुर शहर के विकास के लिये सतत् प्रयासरत रहे। जमशेदपुर से उनके गहरे लगाव को इसी से समझा जा सकता है कि अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्होंने इसी धरती को अपना अंतिम ठिकाना बनाया। और यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके कार्यकाल में टाटा स्टील ने जो लांचिंग पैड तैयार की, उसी का परिणाम है कि आज कंपनी का डंका पूुरी दुनियां में बज रहा है।
कंपनी के प्रमुख होने के साथ साथ उनकी सामाजिक स्वीकार्यता भी गजब की रही। लोगों से घुलना मिलना , उनके बीच जाना और उनकी बातों को सुनना उनको बेहद खास बनाता है। जनहित के कार्यों के लिये वे कभी पीछे नहीं हटे।
डॉ ईरानी को भारत में गुणवत्ता आंदोलन के पहले लीडर के तौरपर भी देखा जाता है। उन्होंने टाटा स्टील को गुणवत्ता और ग्राहकों की संतुष्टि पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ दुनिया में सबसे कम लागत वाला स्टील उत्पादक बनने में सक्षम बनाया, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सके।
करीब चार दशकों तक उन्होंने टाटा स्टील में सेवा प्रदान की। साल 2011 में ं टाटा स्टील के बोर्ड से सेवानिवृत्त हुए, जिसने उन्हें और कंपनी को विभिन्न क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई।
भारतीय उद्योग और व्यापार संगठनों के साथ ही वे सक्रिय रुप से जुड़े रहे और वहां रहकर उन्होंने पूरे देश के औद्योगिक विकास की दिशा में प्रयास किया। खेलों में भी उनकी गहरी रुचि थी। उनके निधन से भारतीय उद्योग जगत को गहरी क्षति हुई है।

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