अरुणाचल में जदयू को झटके के बाद बिहार में उथल-पुथल की आशंका

अरुणाचल प्रदेश में जनता दल यूनाइटेड के सात में से छह विधायकों के भाजपा में शामिल होने से राज्य में सियासी ट्विस्ट आ गया है. राज्य विधानसभा की ओर से जारी बुलेटिन के अनुसार, पीपल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) के लिकाबाली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक करदो निग्योर भी बीजेपी में शामिल हो गए हैं. बिहार में जेडीयू और बीजेपी सहयोगी हैं और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर हाल में वहां हुए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी. अरुणाचल में भी पंचायत और नगर निगम चुनाव के रिजल्ट आने ही वाले हैं. ऐसे में यह उलटफेर बेहद अहम माना जा रहा है. अब हर कोई इस दल के सर्वेसर्वा नीतीश की कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं. नीतीश कुमार इसे भूलने वाले नहीं हैं.
जेडीयू ने 26 नवंबर को सियनग्जू, खर्मा और टाकू को ‘पार्टी विरोधीÓ गतिविधियों के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया था और उन्हें निलंबित कर दिया था. इन जेडीयू के छह विधायकों ने इससे पहले पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों को कथित तौर पर बताए बिना तालीम तबोह को विधायक दल का नया नेता चुन लिया. पीपीए विधायक को भी क्षेत्रीय पार्टी ने इस महीने की शुरुआत में निलंबित कर दिया था. अरुणाचल प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष बीआर वाघे ने कहा, ‘हमने पार्टी में शामिल होने के उनके पत्रों को स्वीकार कर लिया है.Ó 2019 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू 15 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 7 सीटों पर जीत दर्ज कर सभी सियासी पंडितों को चौंका दिया था. बीजेपी (41) के बाद जेडीयू अरुणाचल में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी. ताजा सियासी उलटफेर के बाद 60 सदस्यीय विधानसभा में अरुणाचल में बीजेपी के 48 विधायक हो गए हैं. वहीं जेडीयू के पास अब केवल एक विधायक बचा है. कांग्रेस और एनसीपी के पास 4-4 विधायक हैं. हर कोई भाजपा की जल्दीबाजी से हैरत में है. क्योंकि ऐसी भी बात नहीं कि भाजपा वहां अल्पमत में थी बल्कि उसके पास दो तिहाई बहुमत है. बावजूद इसके उसने अपने सहयोगी का घर भी नहीं बख्शा. बल्कि यह तीसरा मौका है, जब भाजपा ने सीधे तौर पर जदयू को झटका दिया है. इससे पहले भी 2019 से लेकर 2020 तक केंद्र, बिहार और अब अरुणाचल प्रदेश में जदयू को मात खानी पड़ी है. शुरुआत लोकसभा चुनाव 2019 से हुई थी. जदयू 16 सीटें जीतकर केंद्र में गया, लेकिन मनमुताबिक मंत्रालय नहीं मिलने से उसे बैरंग ही लौटना पड़ा था. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जदयू के सभी घटक दल एक साथ लड़ रहे थे. लेकिन, लोजपा गठबंधन से बाहर निकलकर जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी. इसका भारी नुकसान जदयू को उठाना पड़ा. इस दौरान भाजपा ने चुप्पी साध ली. बिहार में सरकार बनने के बाद भी लोजपा पर अबतक कोई कार्रवाई जैसा निर्णय भाजपा नेतृत्व ने नहीं लिया है.
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि यह तोड़-फोड़ तब हुई है, जब पटना में 26-27 दिसंबर को जदयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने वाली है. इसमें उन विधायकों को भी शामिल होना था. लेकिन बीच में ही भाजपा ने ‘खेलाÓ कर दिया. अब अटकलें तो यही लग रही हैं कि बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मचने वाला है. नीतीश शुक्रवार को जब मीडिया से मुखातिब हुए, तो उनका अंदाज कुछ बदला हुआ था. उन्होंने कहा कि वे लोग चले गए हैं, लेकिन हमारी बैठक अभी बाकी है. कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार एक-दो दिन में कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. नीतीश के इस बयान को बिहार की राजनीति में आने वाले भूचाल के संकेत के तौर पर देखा जा सकता है.
दरअसल राजनीति में भाजपा तो अपने आकाओं को भी नहीं बख्शती. नीतीश तो सरकार में सहयोगी हैं. भाजपा के चाल, चरित्र, चेहरे को नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते हैं. लेकिन साथ में हैं और सतर्क भी रहते हैं. लेकिन उनकी तमाम सतर्कताओं के बावजूद अरुणाचल में जबर्दस्त सेंध लग गई. वह ऐसे मौके पर लगी है जब उन्होंने घोषणा की थी कि बंगाल का चुनाव जदयू भी लड़ेगा. इससे पहले ही उनकी इमारत की छह ईंटें खिसका दीं. अब विरोधी भी ताने कसेंगे और छवि को भी आंच आएगी.

 

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