प. बंगाल में ओवैसी की एंट्री से ममता के लिए चुनाव की राहें होंगी मुश्किल

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी के कुछ घंटों के औचक पश्चिम बंगाल दौरे ने राज्य में पहले से गरमाती सियासत में एक नया उफ़ान पैदा कर दिया है. बंगाल में विधानसभा चुनाव में सिर्फ 3 महीने बचे हैं. इस चुनाव में जहां अभी तक बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही थी, वहीं रविवार को बंगाल में ओवैसी की एंट्री की घोषणा से मुकाबला अचानक दिलचस्प होता दिख रहा है. दरअसल ओवैसी अकेले नहीं बल्कि प्रभावशाली फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ इस चुनाव में उतर रहे हैं. अब्बास सिद्दीकी के चुनाव में सीधे उतरने से ममता बनर्जी के कोर वोट बैंक में सेंध लगना तय माना जा रहा है. 31 फीसदी वोट शेयर के साथ मुस्लिम बंगाल चुनाव में ‘किंगमेकरÓ की भूमिका में रहते हैं. कहते हैं कि 2011 में ममता बनर्जी की धमाकेदार जीत के पीछे भी यही वोटबैंक था. राज्य की 294 सीटों में से 90 से ज्यादा सीटों पर इस वोटबैंक का सीधा प्रभाव है. और इसी वोटबैंक के गुमान में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी लगातार भाजपा को यहां ठेंगे पर रख रही हैं. लेकिन फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा के चुनाव में उतरने से ममता के इस मजबूत वोट बैंक में सेंध लगने की पूरी संभावना है और ऐसा हुआ तो ममता का तीसरी बार भी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने का सपना अधूरा रह सकता है.
बंगाल के हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ विख्यात दरगाह है. दक्षिण बंगाल में इस दरगाह का विशेष दखल है. लेफ्ट फ्रंट सरकार के दौरान इसी दरगाह की मदद से ममता ने सिंगूर और नंदीग्राम जैसे दो बड़े आंदोलन किए थे. लेकिन पीरजादा से टीएमसी की अभी नहीं बन रही है. इसी अनबन को ओवैसी ने न केवल भुनाने की कोशिश की है बल्कि खुले तौर पर घोषणा कर दी है कि वे हमारे साथ हंै और प. बंगाल में वे जो कहेंगे, उसी के अनुसार एआईएमआईएम यहां की रणनीति तय करेगी. इसके बाद से बंगाल में कय़ासों का दौर तेज़ हो गया है.
दरअसल ममता बनर्जी के खिलाफ बंगाल में एक साथ कई मोर्चे खुल चुके हैं. अव्वल तो यह की 10 साल की एंटीइंकबमेंसी के कारण भाजपा का वोटबैंक लगातार बढ़ रहा है. इस कारण उसे तेजी से उभरती भाजपा की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बहुत बड़ा उलटफेर किया था. 2014 में सिर्फ दो सीट जीतने वाली भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 18 सीटों पर जीत हासिल की. 2014 में 42 में से 34 सीटें जीतने वाली टीएमसी को 2019 में सिर्फ 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थीं. हालांकि इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया. टीएमसी ने जहां 43.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया वहीं बीजेपी को 40.3 प्रतिशत वोट मिले. इस तरह भाजपा का यहां अपवार्ड ट्रेंड चल रहा है. दूसरा मोर्चा टीएमसी में अपने दल के अंदर खुल चुका है. कई दमदार साथी टीएमसी को छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं. आगे भी कई बड़े चेहरों के भाजपा में जाने की संभावना है. इसके साथ भाजपा के बड़े नेता लगातार बंगाल में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ माहौल बनाने का काम कर रहे हैं. हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा रैलियां कर लौटे हैं. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को जब भी मंच मिलता है, बंगाल का उल्लेख किए बिना नहीं रहते. तीसरा मोर्चा एआईएमआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने जाकर खोल दिया है. रही बात भाजपा के खिलाफ विपक्ष की गोलबंदी की तो यह मोर्चा अभी तैयार ही नहीं हुआ है. कांग्रेस ने कहा है कि वह वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. अर्थात यह मोर्चा भी भाजपा विरोधी वोटों में ही सेंध लगाएगा. इस तरह वहां चतुष्कोणीय समीकरण के आसार बन रहे हैं. ऐसे में तीन कोण सिर्फ इसलिए मौदान में होंगे कि अपनी उपस्थिति भी दर्ज करानी है और ममता बनर्जी को हराना भी है. ऐसे में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के लिए अकेले तीन मोर्चों पर लडऩा मुश्किल होगा.

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