अयोध्या पर सुप्रीम फैसला: आसान शब्दों में समझें शुरू से आखिर तक कोर्ट रूम के अंदर की पूरी कार्यवाही

नई दिल्ली: 9 नवंबर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने देश के सबसे विवादित रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मुद्दे पर पूरी विवादित जमीन रामलला को देने का फैसला किया. इसके साथ ही अदालत ने मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े की अपील खारिज कर दी.
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ते हुए क्या कहा?
– सुप्रीम कोर्ट ने कल शाम को बता दिया था कि अयोध्या केस का फैसला सुबह 10.30 बजे पढ़ा जाएगा. इस वजह से सुबह से ही सुप्रीम कोर्ट परिसर के पास गहमागहमी शुरू हो गई. मीडिया के कारिंदे सुप्रीम कोर्ट, जजों की रिहाइश और अयोध्या में डेरा डाले हुए थे और पल-पल की खबर बता रहे थे.
– जैसे ही 10.30 बजा, सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ बैठी और मुख्य न्यायधीश ने बोलना शुरू किया. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सबसे शांति की अपील की और फैसले को पढऩा शुरू किया.
-सबसे पहले अदालत ने इस विवाद का निपटारा किया कि मस्जिद पर मालिका हक किसका होगा. शिया या सुन्नी वक्फ बोर्ड का? सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की अर्जी खारिज कर दी और 1946 का फैसला बरकरार रखा.
-इसके बाद इस केस के मुख्य विवाद पर जजों ने अपना फैसला पढऩा शुरू किया. सभी जजों ने पहले फैसले की कॉपी पर साइन किए, जिससे ये साफ हो गया कि ये फैसला एकमत में होने जा रहा है. जैसे ही चीफ जस्टिस ने फैसला पढऩा शुरू किया, ये संकेत दे दिया कि इसे पढऩे में करीब आधा घंटा लगेगा.
– सीजेआई ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ”कोर्ट को देखना है कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने. मस्?िद 1528 की बनी बताई जाती है लेकिन कब बनी इससे फर्क नहीं प?ता. 22-23 दिसंबर को मूर्ति रखी गयी, जगह नजूल की ?मीन है. लेकिन राज्य सरकार हाई कोर्ट में कह चुकी है कि वह ?मीन पर दावा नहीं करना चाहती.”
कोर्ट ने कहा, ”कोर्ट हदीस की व्याख्या नहीं कर सकता. नमाज प?ने की जगह को मस्?िद मानने के हक को हम मना नहीं कर सकते. 1991 का प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट धर्मस्थानों को बचाने की बात कहता है. यह एक्ट भारत की धर्मनिरपेक्षता की मिसाल है.” सीजेआई ने कहा, ”विशारद ने अपने साथ दूसरे हिंदुओं के भी ह? का हवाला दिया. निर्मोही सेवा का हक मांग रहा है, कब्?ा नहीं.”
– सीजेआई ने फैसले में बड़ी बात कही, ”निर्मोही का दावा 6 साल की समय सीमा के बाद दाखिल हुआ. इसलिए खारिज है.” सीजेआई ने कहा, ”सूट 5 (रामलला) हद के अंदर माना जाएगा.” कोर्ट ने कहा, ”निर्मोही अपना दावा साबित नहीं कर पाया है. निर्मोही सेवादार नहीं है. रामलला न्याय से सम्बंधित व्यक्ति हैं, राम जन्मस्थान को यह दर्जा नहीं दे सकते.”
– इसके बाद कोर्ट ने कहा, ”पुरातात्विक सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते. हाई कोर्ट के आदेश पर पूरी पारदर्शिता से हुआ. उसे खारिज करने की मांग गलत है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बहस में अपने दावे को बदला. पहले कुछ कहा, बाद मे नीचे मिली रचना को ईदगाह कहा. साफ है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बना था.”
– कोर्ट ने कहा, ”नीचे विशाल रचना थी, वह रचना इस्लामिक नहीं थी. वहां मिली कलाकृतियां भी इस्लामिक नहीं थी. ्रस्ढ्ढ ने वहां 12वी सदी की मंदिर बताई. विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की ची?ें इस्तेमाल हुईं. कसौटी का पत्थर, खंभा आदि देखा गया. ्रस्ढ्ढ यह नहीं बता पाया कि मंदिर तो?कर विवादित ढांचा बना था या नहीं. 12वी सदी से 16वी सदी पर वहां क्या हो रहा था. साबित नहीं.”

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