यहां हर शाख पे उल्लू बैठा र्था

जमशेदपुर,27 दिसंबर संवाददाता विधान सभा क्षेत्र में निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति उपजे असंतोष और अविश्वास के कारणों की परत दर परत बातें उभरने लगी हैं। फिलहाल एक आप्त सचिव को लेकर तो बातें साबित हो रही हैं, लेकिन अभी ऐसे कई नाम हैं जिनसे पीछा छुड़ाये बिना निवर्तमान मुख्यमंत्री अपनी पुरानी छवि शायद ही कायम कर पायें। सोशल मीडिया में ‘नवरत्नÓ के रुप में इन नामों की खूब चर्चा हो रही है। बर्मामाइंस के एक ‘बाबाÓ रातों रात ऐसा बदले कि लोगों की आंखें फटी की फटी रह जाती थी। वे पूर्व मुख्यमंत्री को उनका नाम लेकर वह भी टाइटिल छोड़कर अधूरा ही पुकारते हुए बहसते थे। मुख्यमंत्री के नाम पर सरकारी ्अधिकारियों को खूब नचाते थे और प्रशासनिक तंत्र का भय कायम कर देते थे। स्थानीय प्रमुख कंपनी में अधिकारियों के साथ तो ऐसा व्यवहार करते थे मानों वे उनके टेंट हाउस के कर्मचारी रहे हों। इन सबका मिला जुला खौफ व्यापारियों, भ्रष्ट अधिकारियों के दोहन में उनको खूब मजा दे रहा था। बाबा देखते देखते बड़े कारोबारी , बड़़े हिन्दुवादी नेता , ट्रांसपोर्टर, क्या क्या नहीं बन गये। परिवहन प्राधिकार में मिला पद उनकी शान शौकत को बढाने लगा . कहां तो परिवहन और यातायात व्यवस्था को सुचारु करने और परिवहन मालिकों की समस्या दूर करने के लिये वह प्राधिकार होता है, लेकिन यहां तो आये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास वाली उक्ति चरितार्थ होने लगी, अलबत्ता वह सरकारी अधिकारियों से आधिकारिक ढंग से मिलने जुलने का एक जरिया और प्लेटफार्म बन गया। सरकारी तंत्र में उनकी पैठ ऐसी हो गयी थी कि ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिये भी उनका विंग काम करने लगा। चाहे पुलिस महकमा हो या उस तरह की कमाई वाले जो विभाग हों, वहां के निलंबित , दागी, अफसर बाबा की शरण में पहुंचने लगे और बाबा उनके लिये ‘पूजा पाठÓ का उपाय करने लगे। पता नहीं उन्हें शक्ति प्राप्त थी या नहीं,लेकिन ऐसे ्अधिकारियों को उन्होंने खूब सम्मोहित किया और उनपर वशीकरण मंत्र भी खूब मारा। आम और निरीह लोग चुपचाप देखकर कसमसाते रहे लेकिन उनकी कसमसाहट और पीड़ा को न भाजपा ने महसूस किया और न ही सरकार ने। बाबा अपनी समझ से बड़े ़ेयोजना बद्ध तरीके से काम करते थे। ये उनकीयोजना थी कि लोग मुगालते में पड़े रह, क्योंकि वे कभी सरकार के समक्ष न गुलदस्ता लेकर जाते थे और न ही दिखावे के लिये सामने होते थे। किन्तु ये जो पब्लिक है वो सब जानती है, गुनगुनाते हुए इंतजार करती रही। बाद के दिनों में तो उनसे पीडि़त व्यापारी बातचीत में सार्वजनिक रुप से अपना दुख दर्द भी बयां करने लगे थे। बाबा पता नहीं कबके व्यापारी हो गये जो पत्थर कारोबार और अन्य खनिजों की लीज पर भी नजर डालने लगेथे। पत्थर व्यापारियों को कहते थे कि उनके बेटा ने बिजनेस शुरु किया है, साठ दिन के भुगतान लिमिटपर माल सप्लाई करो। जब व्यापारी कैश काम करने की बात करते थे तब बाबा कहते थे ठीक है. अब प्रशासन ही तुमसे बात करेगा। लीज और ऐसे खनिज व्यापार में लगे व्यापारियों का कलेजा ही कितना, बेचारे चुपचाप शरणागत हो जाते थे। वे अपने अपने क्षेत्र के जब अपने अपने आकाओं से संपर्क करते तो उन्हे यही सलाह दी जाती थी कि जैसा कहता है कर लो भाई, अभी उसकी चलती है। कुछ डीसी और एसपी भी ‘बाबा Óके प्रभाव में आ जाते थे और व्यापारियों से बात करने के लिये खोजबीन शुरु कर देतेथे। बाबा ने अपने भक्तों का कितना कल्याण किया वह तो नहीं दिखाई दे रहा, लेकिन उनकी किस्मत पिछले पांच साल में ऐसी बदली कि बर्मामाइंस स्थित उनका महल लोग आंख फाड़ फाड़कर देखने जाने लगे। कई इंजीनियर और ट्रांसपोर्टरों ने उसमें एक से एक आहुतियां दीं। ऊपर से मुख्यमंत्री ने बस्तीक्षेत्रों में जो टिस्को और गैर टिस्को क्षेत्र का भेदभाव मिटाते हुए बिजली की चकाचौंध व्यवस्था की, उसका पहला असर यह होता था कि शाम होते ही बाबा का गृह क्षेत्र दुधिया रौशनी में नहाने लगता था। वोटरों ने बस्ती क्षेत्रों की रौशनी की तो चर्चा नहीं की , लेकिन वहां आसपास की सभी बस्तियों यहां तक कि इस्ट प्लांट तक के लोग अपनी रौशनी भूलकर उनकी ही रौशनी में आंख चौंधियाने की चर्चा करने लगे। ऐसा लगता था कि बाबा मुख्यमंत्री का नाम डुबाने के लिये कमर कसचुके थे और पश्चिम विधान सभा से टिकट लेने के लिये मुख्यमंत्री पर लगातार दबाव कारगर नहीं होने के कारण संतुलन खो बैठे थे। उनका हरकदम भले ही सरयू राय के विरुद्ध बताया जाता था लेकिन भीतर ही भीतर एक चाल सामने आई कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिलता है तो समुदाय विशेष कोइस तरह नाराज करेंगे कि वे बुरी तरह बिदक जायें। बाबा अपनी सीमा भूल गये थे कि पूर्व मे भले ही किसी के सहयोगी रहे हों, लेकिन आज वह व्यक्ति राज्य का मुख्यमंत्री और देश का एक चर्चित चेहरा है। उनके् किसी कदम सेउस चेहरे पर आंच आती है।
चुनाव प्रचार के दौरान भी सरयू राय के खिलाफ कई आपत्तिजनक आडियो वायरल हुए जिसमें वे श्री राय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करते और कार्यकर्ताओं को धमकाते सुने गये। बर्मामाइंस में सरयू राय के प्रचार अभियान के दौरान उनपर हमला किया जाना भी उलटा पड़ गया और सरयू राय को इसकी सहानुभूति मिल गयी। बर्मा माइंस को भाजपा का गढ माना जाता है लेकिन यहां रघुवर दास पिछड़ गये। लोगों ने उनको मुकाबले सरयू राय को तरजीह दी तो इसके पीछे उक्त स्थानीय नेता की भूमिका अहम रही।
चुनाव प्रचार के दौरान बाबा की गतिविधियों का अंदाज पूर्व मुख्यमंत्री को लग गया लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी। उन्हें जमशेदपुर से चाईबासा भेजकर दूर करने की कोशिश इसी रणनीति का हिस्सा बताया जाता रहा , लेकिन पश्चिम से टिकट नहीं मिलने का क्रोध बाबा नहीं पी सके और भीतर ही भीतर भितरघात को परिभाषित करते रहे।
सोसल मीडिया पर इनके फैन के नाम पर लगातार पोस्ट किये जाते रहे। जिनमें सरयू राय पर हमला किया जाता रहा। उस समय श्री राय रघुवर कैबिनेट के सदस्य थे। लेकिन किसी ने रोका टोका नहीं। कहा जाता है कि सूर्य मंदिर में रघुवर दास ने जो समीक्षा बैठक हार के बाद की थी उसमें कई लोगों ने उक्त नेता की कारगुजारियों के बारे में निवर्तमान मुख्यमंत्री को अवगत भी कराया।
कहा जाता है कि उक्त नेता का मन काफी बढा हुआ था। रघुवर नगर में अपना आलीशान मकान बनाने के लिये उन्होंने अपनी ही पार्टी के लोगों को नहीं छोड़ा। एक वयोवृद्ध आरएसएस पदाधिकारी की जमीन को हथियाना, वहां बुल्डोजर चलाया जाना चुनावके दौरान लोगों ने याद रखा। स्थानीय लोगों के साथ अचानक उनका व्यवहार बदल गया औरवे सुपर सीएम के तौर पर उनके साथ व्यवहार करने लगे। वे लगातार अधिकारियों, कारोबारियों को धमकाते चलते थे। बताया जाता है कि अभिजीत स्टील से लोहा निकलवाने के लिये भी उन्होंने एंड़ी चोटी एक किये रखा। वहां के पुलिस अधिकारियों पर दबाव डालने का प्रयास कियागया। लेकिनवहां उनकी दाल नहीं गली। ुपरिवहन से जुड़े मामलों में भी उन्होंने हाथ साफ करने का प्रयास किया। जमशेदपुर के स्लैग कारोबार में भी उनकी पूरी दखल हो गयी थी। कहा जाताहै कि सारा ठेका वे ही हथियाने लगे. खुद तो ट्रांसपोटिंग नहीं करते थे इस कारण हर ट्रिप को किसी को बेच दिया करते थे। बताया जाता है कि हर ट्रिप के लिये उनको मोटी रकम बैठे बिठाये ही मिल जाता करती थी। स्लैग केपूरे कारोबार पर धीरे धीरे उनका कब्जा हो गया था। इस धंधे में उनकीऐसी तूती बोलने लगी कि तमाम पुराने कारोबारियों से काम पूरीतरह छिन गया।
ऐसे ‘नवरत्नोंÓ में एक नवरत्न खादी पहनकर विष्टुपुर सेआयरन सहित अन्य धंधे में हाथ साफ करते रहे। ये लोग भूल गये कि मुख्यमंत्री बनने के बाद रघुवर दास भले ही बदले से नजर आए लेकिन उसके पिछले 20 साल क्षेत्र में बड़ी सादगी से ही भ्रमण करते रहे और लोगों की पसंद बने रहे। ये ‘नवरत्नÓ तो जैसे हहराए हुए से प्रदर्शन करने लगे। सत्ता से जुडऩे के मजे के साथ साथ कंपनी में नौकरी का भी मोह पाले रहे। कितने ही वाई -6 अस्थायी कर्मचारियों की वरीयता लांघकर नियुक्ति लेनेका लालच तक संवरन नहीं कर सके। कंपनी ब्लाक क्लोजर का मामला तो कोढ में खाज साबित हुआ लेकिन उसके पहले ही अस्थायी कर्मचारी और उनके परिवार का विश्वास ऐसे ‘नवरत्नÓ ने तोड़ दिया था। टेल्को क्लब में ‘मैरिज एनिवर्सरीÓ जैसा शो आफ ‘चुपेचाप क्रांतिकारियोंÓ को मौका देता गया। वाई-6 जैसा साधारण अस्थायी कर्मचारी देखते देखते बड़े वाहन में पुलिस अंगरक्षक के साथ घूमने लगे, आयरन ओर का बड़ा व्यापारी दलाल बन जाये ,किसी बोर्ड का पदाधिकारी बनकर रैम्प पर फैशन वाक करने लगे पैदाइशी रईशजादे का स्वंाग -दंभ भरन लगे तो फिर पांच साल के कठिन इंतजार के बाद आए दिन पर लोग कैसे हिसाब किताब चुकता न करें। ऐसे नवरत्न मीडिया प्रबंधक का भी बैच लिये रहतेथे लेकिन मीडिया को उसके कार्य -कर्म संचालित करने के लिये आवश्यक वांछित सहयोग से कोई वास्ता नहीं रखते थे। अलबत्ता मुख्यमंत्री से प्रेस वार्ता तक कराने से भागते थे। उक्त ‘नवरत्नÓ ने तो एक शिक्षा पदाधिकारी को गर्दन मरोडऩे की धमकी भी दी थी।
जो जहां रहा वहीं से उसने इतना दंभ भरा और आतंक पैदा किया कि मतदान के दिन और उसके पहले निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय को प्रचार में कुछ बोलना नहीं पड़ा।

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