पूर्वोतर भारत के बाद कोल्हान में पहली बार इरी कोकून कीटपालन का हुआ प्रयोग

खरसावां संवाददाता, 11 जनवरी: भारत के पूर्वोतर राज्य मेघालय, असम मणिपुर के बाद झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में भी पहली बार इरी कोकून कीटपालन का प्रयोग षुरू किया गया है। कोल्हान प्रमंडल के अंतर्गत खरसावां, कुचाई, चक्रधरपुर, गोइलकेरा, मनोहरपुर, डेबरासाई, भरभरिया, हाटगम्हारिया, नोवामुडीह, चा$िडल अग्र परियोजना केन्द्रों में इरी कोकून किटपालन का प्रयोग किया गया है। जिसमें सफलता मिल रही है। इसकी जानकारी देते हुए खरसावां अग्र परियोजना पदाधिकारी सुनील कुमार षर्मा ने कहा कि इरी कोकून किटपालन के सफलता के बाद पूरे झारखंड में इरी कोकून किया जायेगा। भारत के पूर्वोतर राज्य के लोग इरी कोकून के पीपा को मुख्य रूप से खानें के लिए उपयोग करते है। इसका धागा अतिरिक्त आय का साधन है। इरी कोनून का धागा मोटा होता है। इस धारा को मोटा रेषम कप$डों जैसे ष्ॉाल, चदर सहित सजावट समानों में काम आता है। खरसावां में १०० डीएफएस इरी कोकून का प्रयोग किया गया है। बता दे कि कुचाई सिल्क कों अंतरराश्ट्रीय पहचान मिल चुकी है। झारखंड झारक्राट ने कुचाई सिल्क को देष-विदेष में एक ब्रां$ड के रूप में पहचानें दिलानें में कामयाबी हासिल की है। जिसके कारण देष-विदेष कुचाई सिल्क का काफी क्रेज भी है। ऑग्रनिक सिल्क होने के कारण विष्व के करीब दो दर्जनों देषों में इसकी मांग है।
जिला में पांच करोड़ तसर का हुआ उत्पादन
खरसावां-कुचाई सहित जिला क्षेत्र में पांच करोड तसर का उत्पादन हुआ है। इसमें से खरसावां-कुचाई में तीन करो$ड कोकून का उत्पान हुआ है। जबकि पूरे सरायकेला खरसावां जिला में मिलाकर पांच करो$ड तसर का उत्पादन हुआ है।
तसर की खेती में घर-घर सेे जुड़े लोग: शर्मा
खरसावां अग्र परियोजना पदाधिकारी सुनील कुमार षर्मा ने कहा कि खरसावां-कुचाई के लोग तसर की खेती से जु$डे है। लगभग ६ हजार लोग सिल्क उधोग से जुडकर रोजगार पा रहे है। कोकुन, धागा व सिल्क के कपडे सहित विभिन्न उत्पादन में ये जुडे हुए है। लगभग १० हजार पोस्ट और प्री कोकून में महिला और पुरूशों को प्रषिक्षण दिया जा चुका है।

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