त्रिशंकु विधान सभा की स्थिति में कई के हो जाएंगे पौ बारह

त्रिशंकु विधान सभा की स्थिति में कई के हो जाएंगे पौ बारह
रांची,22 दिसंबर राजनीति अक्सर दिग्गजों को भी दगा देती है। बड़े-बड़े नेता और दल भी इसकी जद में आकर धूल चाटने को विवश होते हैं। ऐसा एक बार फिर झारखंड में होता प्रतीत हो रहा है। कम से कम एक्जिट पोल के रुझान तो ऐसे ही संकेत दे रहे हैं। वास्तविक नतीजे भले ही 23 को आएंगे लेकिन माहौल शुक्रवार शाम से ही गर्म हो गया है और राजनीतिक सक्रियता चरम पर है। इस चुनाव में भाजपा से छिटककर आजसू ने अपने बूते सत्ता की सीढ़ी चढऩे की ठानी तो यूपीए फोल्डर से झाविमो ने किनारा कर लिया। इतना ही नहीं, सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन की वामपंथियों से भी नहीं बनी।
नए समीकरण में कुछ नेताओं को पार्टियों ने किनारे लगा दिया तो वो भी अपने बूते ताल ठोंककर मैदान में खड़े हो गए। पार्टियों ने उनके खिलाफ कार्रवाई भी की लेकिन अब आसरा भी ऐसे ही लोगों से है। भाजपा और झामुमो दोनों बड़े दलों ने पूरी ताकत लगाई लेकिन एक्जिट पोल के आंकड़े बताते हैं कि अब दोनों ही खेमों को सहयोगियों की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में भाजपा को आजसू से आस है तो झाविमो पर भी डोरे डालने की तैयारी वहीं झामुमो-कांग्रेस को झारखंड विकास मोर्चे से सहयोग की उम्मीद है और वामपंथियों का साथ भी चाहिए। सीधे शब्दों में समझिए तो सत्ता की चाबी झाविमो-आजसू के हाथ में दिख रही है तो निर्दलीय उम्मीदवारों के भी पौ-बारह होते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर बड़े दलों ने जिनको कमजोर आंका, वे सत्ता की मुख्य धुरी बनते दिख रहे हैं। बड़े दलों को अब इन्हीं छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों का आसरा है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान ही इस बात के संकेत दिए थे कि जरूरत पडऩे पर आजसू से सहयोग लिया जाएगा। इसके बाद से दोनों दलों के बीच मजबूत संबंध के पैरोकार सक्रिय हो गए हैं तो इधर झामुमो-कांग्रेस के मैनेजर भी कुनबे को बढ़ाने के लिए जीतोड़ कोशिश में जुटते दिख रहे हैं। खासकर वे लोग सक्रिय हुए हैं जो शुरू से महागठबंधन में सबको स्थान देने के हिमायती रहे थे।
जोड़-तोड़ से बनती रही है सरकार

झारखंड गठन के बाद बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने। 2003 में मंत्रियों ने बगावत कर दिया। बाबूलाल मरांडी को हटाकर भाजपा आलाकमान ने अर्जुन मुंडा को गद्दी सौंपी।
2005 में चुनाव के बाद किसी दल को बहुमत नहीं। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सरकार बनाई। शिबू सोरेन महज दस दिन कुर्सी पर रहे। उसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
2006 में निर्दलीय मधु कोड़ा ने अर्जुन मुंडा की सरकार गिरा दी। 19 जनवरी 2009 को शिबू सोरेन फिर मुख्यमंत्री बने।
2009 में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और झामुमो ने मिलकर सरकार बनाई। भाजपा के समर्थन वापस लेने पर सरकार गिर गई। राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। इसके बाद फिर अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। झामुमो भी सरकार में शामिल थी।
अर्जुन मुंडा की सरकार से समर्थन वापस लेकर हेमंत सोरेन ने कांग्रेस और राजद के सहयोग से सरकार बनाई।

कौन कितने दिन रहा मुख्यमंत्री (अलग-अलग अवधि में)

बाबूलाल मरांडी – दो साल, चार महीने तीन दिन।
अर्जुन मुंडा- एक वर्ष, ग्यारह महीने 12 दिन।
शिबू सोरेन – दस दिन
अर्जुन मुंडा – एक वर्ष छह महीने सात दिन।
मधु कोड़ा – एक साल, ग्यारह महीने आठ दिन।
शिबू सोरेन – चार माह, 23 दिन।
शिबू सोरेन – पांच माह दो दिन।
अर्जुन मुंडा – दो वर्ष चार महीने सात दिन।
हेमंत सोरेन – एक साल पांच महीने पंद्रह दिन।
रघुवर दास – 28 दिसंबर 2014 से…।

तीन बार राज्य में लगा राष्ट्रपति शासन।

Share this News...