कलयुग की ‘श्रवण कुमारी’

लॉक डाउन के बीच लोगों को हो रही परेशानियों के बीच कुछ ऐसी साहस की कहानी भी सामने आ रही है जिसे पढकर गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। खासकर इस मामले में देश की नारियों ने जो जज्बा दिखाया है, वह काबिले तारीफ है। दरभंगा (बिहार) की एक 13 साल की लड़की अपने पिता को गुडग़ांव(हरियाणा) से 1200 किलोमीटर दूर सायकिल पर लेकर जब अपने गांव पहुंची तो लोग दंग रह गये।ज्योति ने वह कर दिखाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। 13 साल की ज्योति कुमारी के पिता मोहन पासवान गुरुग्राम में ई रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे। 26 जनवरी को दुर्घटना होने से उनके जांघ की हड्डी कई जगहों से टूट गयी थी. पैर का ऑपरेशन हुआ था. अभी इलाज चल ही रहा था कि देश में लॉकडाउन हो गया। इस कारण उनके दवा दारू और खाने पर भी लाले पड़ गए और ऐसे में मकान का किराया नहीं देने पर मकान मालिक ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी बीच खाते में प्रधानमंत्री राहत कोष से आये 500 रु से 13 साल की ज्योति ने पुरानी साइकिल खरीदी और पिता को लेकर 10 मई को चल पड़ीं. अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठाकर उसने करीब 1200 किमी की दूरी आठ दिनों में तय कर 16 मई को उन्हें सकुशल घर पहुंचाया. इस बहादुर लड़की की चर्चा हर जगह हो रही है। गांव के लोग ज्योति के कारनामो के देखकर दंग रह गये। सामान्य तौर पर कोई सोच सकता है कि 13 साल की मासूम बच्ची इतना अदम्य साहस का परिचय दे सकती है। जिन बेटियों को लेकर हमारे देश में एक दूसरी धारणा भी है। उनकी भ्रूण हत्या कर दी जाती है, वहां इस कलयुगी श्रवण कुमारी ने पूरे समाज को एक बहुत बड़ा संदेश दिया है कि बेटियां बेटों से कम नहीं।
लॉक डाउन के कारण हर कोई परेशान है। लेकिन कई ऐसी माताओं की तस्वीरें सामने आ रही हैं जिनमें वे अपने बच्चों को गोद में लिये या कंधे पर बिठाकर पैदल चल रही हैं। नारी शक्ति का ऐसा अद्भुत प्रदर्शन हमारे देश में इन दिनों देखने को मिल रहा है जिससे आंखें भी भर आती हैं और दूसरी ओर मां, बेटी के प्रति अपार श्रद्धा भी उमड़ता है। खुद की चिंता किये बगैर ये मातायें, बेटियां अपनों को सुविधा देने के लिये चल पड़ी हैं। देश के हर कोने से इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं। यह घटनाक्रम समाज को एक बहुत बड़ा संदेश भी दे रहा है। सामान्य तौर पर महिलाओं को घर पर रहने की हिदायत मिलती है। कोई सोच नहीं सकता कि वे सै$कड़ों, हजारों किलोमीटर पैदल चलने का साहस कर पाएंगी। लेकिन ऐसा देखने को लगातार मिल रहा है। खुद की शक्ति की पहचान तो महिलाओं को होती है लेकिन समाज उसकी शक्ति को नहीं पहचाने की लगातार भूल करता रहता है। वैसे भी हमारी संस्कृति में नारी को शक्ति का रुप माना जाता है। माता पार्वती को शिव की शक्ति कहा जाता है। जब-जब माता पार्वती शिव से अलग होती रहीं,शिव की शक्ति क्षीण रही। मां दूर्गा को शक्ति का प्रतिरुप भी कहा जाता है। उसी शक्ति की पूजा भारत में होती है।आज उसी शक्ति का परिचय माताओं, बेटियों, बहनों ने देश के अलग अलग हिस्सों में दिया है। उन सभी को सलाम। दरभंगा की 13 साल की ज्योति ने कम उम्र में जो उदाहरण पेश किया है, उसके आगे सारे मेडल, डिग्री गौण प्रतीत होते है।

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