आखिर क्यों सहमे हुए है शिक्षक

हाल के कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए है जिसने शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को चिंता में डाल दिया है। मुजफ्फरपुर में परीक्षा के दौरान जब ब्लूटुथ का उपयोग करने के संदेह में शिक्षिका ने एक छात्रा से हिजाब उतारने को कहा तो इसे धर्म से जोडक़र बवंडर खड़ा कर दिया गया, दूसरा मामला जमशेदपुर का है जहां नकल के संदेह में एक छात्रा की चेकिंग के दौरान कथित रुप से उसके कपड़े उतरवाने के मामले में आरोपी शिक्षिका को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। उस छात्रा के साथ-साथ स्कूल की प्राचार्या को निलम्बित कर दिया गया है। उक्त पीडि़त छात्रा 14 वर्षीय रितु ने घटना के बाद घर जाकर आत्मदाह का प्रयास किया और वह जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। शिक्षिक का कहना है कि नकल के संदेह में उसने जांच जरुर की लेकिन कपड़े नहीं उतरवाये। मामले की जांच चल रही है। लेकिन हालात ऐसे बने कि शिक्षिका की बात कोई सुनने को तैयार नहीं। मामला इतना गंभीर हो गया, कि पुलिस ने आरोपी शिक्षिका को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। चूंकि छात्रा ने आत्मदाह का प्रयास किया और उसका बयान शिक्षिका के खिलाफ गया है इसलिये उसकी गिरफ्तारी हो गई।
यहां शिक्षा से जुड़े लोगों में चिंता इस बात की है कि वे फिर किसी मामले में जांच कैसे करें? एक ओर तो कदाचार के नित नये-नये उपाय किये जाने लगे है लेकिन यदि वे जांच करते है तो किसी तरह के भी आरोप उनपर लगा दिये जाते है और फिर उनका पक्ष सुनने को कोई तैयार नहीं। शारदामणि स्कूल की शिक्षिका के मामले में यही देखा गया। मुजफ्फरपुर की घटना में भी हिजाब को धर्म से जोड़क़र बवंडर खड़ा कर दिया गया है और अभी जिस तरह का माहौल पूरे देश में बना हुआ है वहां की शिक्षिकायें सहमी हुई हैं। जमशेदपुर के शिक्षाविद एवं कोचिंग संस्थान के संचालक श्रीमन त्रिगुण ने अपने फेसबुक पोस्ट में इस दर्द को व्यक्त किया है। उनका कहना है कि कोई भी अध्यापक/अध्यापिका विद्यार्थी विरोधी नहीं हो सकता। विद्यार्थियों के स्वर्णिम भविष्य से ही शिक्षकों का भविष्य उज्जवल होता है। परन्तु आधुनिक परिप्रेक्ष में विद्यार्थियों की उदण्डता (परीक्षा में कदाचार अनुशासनहीनता एवं पैरवी संतानों की भूमिका) में शिक्षक वर्ग किंकर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति में है।
समय के साथ-साथ समाज का दृष्टिकोण भी बदला है एक समय था जब शिक्षकों की डांट, डंडे की मार विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते थे, स्कूल में शिक्षकों के हाथों पिटाई खाने के बाद भी विद्यार्थी घर आकर शिकायत नहीं करता था। उसे पता था कि यहां भी डांट ही मिलेगी कि गलती तुम्हारी होगी। लेकिन आज समय बदल गया है। शारदामणि स्कूल की शिक्षिका को जांच-पड़ताल के पहले ही ‘दोषी’ मान लेना उसी मानसिकता का परिचायक है। उस शिक्षिका की गलती का पता पूरी जांच के बाद ही चल पाएगा। उसी के बाद कोई सजा दी जानी चाहिए।

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