लेखक संदीप मुरारका ने लिखा प्रधानमंत्री को पत्र – किसी आदिवासी को मिले भारत रत्न

*एक्स पर किया पीएमओ, गृह मंत्री और अर्जुन मुंडा को टैग*

*द्रौपदी मुर्मू, जयपाल सिंह मुंडा, गिरीश चंद्र और रघुनाथ मुर्मू के नामों का सुझाया विकल्प*

जमशेदपुर, 12 फरवरी. जनजातीय समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखने वाले कलमकार संदीप मुरारका ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर किसी आदिवासी व्यक्तित्व को भारत रत्न से अलंकृत करने हेतु आग्रह किया है. पद्म पुरस्कार प्रदान करने की परंपरा 1954 में प्रारंभ की गई थी. तब से इस वर्ष तक कुल 53 भारत रत्न, 336 पद्म विभूषण, 1320 पद्म भूषण एवं 3531 पद्मश्री प्रदान किये जा चुके हैं. संदीप मुरारका ने उस लंबी सूची से आदिवासियों के नामों को चिन्हित कर अलग संकलित किया है. इस संकलित सूची के अनुसार जनजातीय विभूतियों को अब तक केवल 146 पदक प्राप्त हुए हैं.
इन आंकड़ों में एक मजेदार तथ्य यह है कि वर्ष 1954 से लेकर 2014 तक 61 वर्षों में आदिवासियों को महज 61 पदक प्रदान किये गए थे, यानी प्रतिवर्ष औसतन एक पदक दिया गया था. जबकि नरेन्द्र मोदी कार्यकाल में वर्ष 2015 से 2024 के दौरान दस वर्षों में 85 आदिवासियों को पद्म सम्मान से अलंकृत किया गया, यानी प्रतिवर्ष औसतन आठ से ज्यादा पदक प्रदान किए गए हैं. किंतु जनजातीय झोली में एक भी ‘भारत रत्न’ अलंकार शामिल नहीं हो पाया है.
शिखर को छूते ट्राइबल्स पुस्तक के चार खंडो के लेखक
संदीप मुरारका ने जनजातीय समुदाय के प्रति प्रधानमंत्री की उदारता की प्रशंसा करते हुए आग्रह किया है कि भारत रत्न के लिए किसी एक आदिवासी व्यक्तित्व का चयन किया जाए. उन्होंने अपनी ओर से भारत रत्न के लिए चार नामों का विकल्प भी प्रस्तावित किया है. जिनमें पहला नाम भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का है. वे झारखंड की पूर्व राज्यपाल एवं ओडिशा की पूर्व मंत्री रह चुकी हैं. उससे भी बड़ी बात यह है कि द्रोपदी मुर्मू एक सरल व सौम्य व्यक्तित्व की स्वामी हैं. दूसरा नाम भारत के 14वें नियंत्रक- महालेखापरीक्षक 
गिरीश चंद्र मुर्मू का प्रस्तावित किया गया है. भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू जम्मू एवं कश्मीर के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर, भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में पूर्व सचिव, गुजरात में नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री कार्यकाल में प्रधान सचिव एवं गुजरात औद्योगिक निवेश निगम लिमिटेड  के पूर्व प्रबंध निदेशक रह चुके हैं. वर्ष 1928 में एम्सटर्डम में संपन्न ओलंपिक खेलों में हॉकी में भारत ने प्रथम स्वर्णपदक जीता था. उस समय भारतीय टीम के कप्तान थे जयपाल सिंह मुंडा, जिनका नाम तीसरे विकल्प के रुप में सुझाया गया है. संताली समुदाय उन्हें आदर से मरङ गोमके पुकारता है. वे संविधान सभा के सदस्य रहने के साथ साथ लोकसभा सांसद एवं बिहार में 29 दिन के उपमुख्यमंत्री भी रहे हैं. शिक्षाविद् एवं लेखक जयपाल सिंह मुंडा झारखंड आंदोलन के पुरोधा, आदिवासी चेतना के नायक एवं एक बहुमुखी व्यक्तित्व थे. संदीप ने चौथा नाम संताली भाषा की लिपि ‘ओलचिकी’ के अविष्कारक गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू का प्रस्तावित किया है. वे मानद डी. लिट् से विभूषित विद्वान लेखक होने के साथ एक बेहतरीन नाटककार, भाषा वैज्ञानिक, धार्मिक नेता एवं शिक्षक थे. संदीप मुरारका का मानना है कि
जनजातीय हितों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्णय अभूतपूर्व एवं अविस्मरणीय रहे हैं. यदि किसी आदिवासी को भारत रत्न प्रदान किया जाता है, तो पूरे विश्व में एक सकारात्मक संदेश जाएगा. साथ ही इस घोषणा से जनजातीय इतिहास में एक नया और स्वर्णिम अध्याय जुड़ जाएगा.

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