फिर कौन रखेगा बुजुर्गों का ख्याल

हमारे देश में बुजुर्गों का हर तरह से ख्याल रखे जाने की परंपरा और संस्कार रहा है। 60 साल को नौकरी से रिटायर होने का उम्र माना गया है और ऐसे लोगों की सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए परिवार समाज एवं यहां तक की सरकार की ओर से भी तरह-तरह की सुविधायें मुहैया कराई जाती हैं। व्यवस्था की जाती रही है। जो व्यक्ति 60 साल की उम्र तक अपने परिवार का पूरा बोझ अपने कंधे पर उठाता है, अवकाश ग्रहण के बाद जब उनके आय का श्रोत बंद हो जाता है तो नफा -नुक्सान का हिसाब किताब रखने के बजाय उनका ख्याल हर तरह से रखा जाता है। लेकिन हाल ही रेलवे के एक बेरहम निर्णय ने इन बुजुर्गों को निराश कर दिया है।
कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ ही रेलवे ने बुजुर्गों को यात्रा में दी जाने वाली छूट को खत्म कर दिया था। उस समय जारी बयान में कहा गया कि चूंकि बुजुर्गों को कोरोना में बाहर नहीं निकलना है इसलिये अभी रेलवे ने उनको दी जाने वाली छूट को खत्म किया है। उसके बाद सबकुछ सामान्य हो गया लेकिन वरीय नागरिकों को दी जाने वाली रियायत वापस नहीं की गई। रेलवे 60 साल से अधिक उम्र के पुरुषों को टे्रनों के बेसिक किराया पर 40 प्रतिशत और 58 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को 50 प्रतिशत छूट देता रहा था। कोरोना के दौरान छूट को वापस देने की मांग बीच-बीच में छूट उठती रही लेकिन रेलवे की ओर से कोरोना का हवाला देकर इस छूट को बंद रखा गया। अब रेलमंत्री ने लोकसभा में साफ कर दिया है कि वरीय नागरिकों को दी जाने वाली छूट स्थाई तौर पर बंद कर दी गई है। उससे भी क्रूर बात यह रही कि रेलमंत्री ने इसे बड़ी कामयाबी के तौर पर पेश करने की कोशिश की। उन्होंने देश को बताया कि इन बुजुर्गों की यात्रा पर दी जाने वाली छूट को बंद कर रेलवे ने साल में 1667 करोड़ रुपये बचाये। जिस देश में सांसदों विधायकों को आजीवन पेंशन मिलता हो, हर टर्म की विधायकी, सांसद चुने जाने पर अलग अलग पेंशन की व्यवस्था हो वहां इतनी रकम सरकार के लिये पान-खैनी खाकर थूक दिये जाने के समान मानी जानी चाहिये। ऐसे में यह ऑकड़ा रेलमंत्री ने किस सोच के साथ पेश किया यह सोचने की बात है। उससे हैरत की बात है कि पूरा देश इस मुद्दे पर मौन है। साल 20.12.20 में 6.18 करोड़ बुजुर्गों ने रेल यात्रा की थी और रेलवे ने 1667 करोड़ रुपये की छूट दी। साल 2020-21में 1.90 करोड़ बुजुर्ग यात्रियों ने सफर की थी। यह कोरोना का साल था। साल 21-22 में 5.55 करोड़ बुजुर्ग यात्रियों ने सफर किया पिछले तीन सालों में रेलवे ने बुजुर्ग यात्रियों के किराया के मद में क्रमश: 1421 करोड़, 1638 करोड़ और 1667 करोड़ रुपये की छूट दी।
जिस देश में बैंकों के लाखों करोड़ रुपये के लोन को सरकार एक झटके में माफ कर देती है उस देश में बुजुर्गों को दी जाने वाली रियायत के नाम पर क्या 1500-1600 करोड़ की रकम खर्च नहीं की जा सकती? बुजुर्गों की सेवा को भारतीय संस्कार में भगवान की सेवा का दर्जा दिया जाता है। कहा जाता है पुण्य मिलता है, उनका आशीर्वाद फलित होता है और बदले में कई गुणा का लाभ मिलता है। पता नहीं भारतीय रेल किस सोच के तहत बुजुर्गों पर इतनी बेरहम हो गई है।

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