सम्पादकीय- कोल्हान के साथ न्याय करे रेलवे

जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण ने देश के रेल मंत्री अश्विनी वैश्णव से मुलाकात कर रेल सुविधाओं से संबंधित लम्बी चौड़ी सूची सौंपी। श्री महतो लगातार जिन रेल सुविधाओं की मांग अपने पहले कार्यकाल के शुरुआती दिनों 2014 से कर रहे है उनमें कुछ में जरूर उन्हें कामयाबी मिली है, लेकिन अधिकांश मामले लंबित की सूची में नजर आते है। टाटा से बक्सर, टाटा से भागलपुर रेल सेवा की मांग लम्बे अरसा से की जा रही है। इनके अलावे भी कई अन्य मांगे हैं जिन पर रेलवे ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत दिलचस्पी नहीं ले रहा। कोरोना और कोहरा के नाम पर भी कई रेल सेवायें बंद कर दी गई है जो इस क्षेत्र के लोगों के लिये परेशानी का सबब बनी हुई है। टाटानगर से खुलने वाली जालियाबाग एक्सप्रेस का मार्च तक बंद किया जाना और टाटा जम्मूतवी को ‘रांची शिफ्ट’ किया जाना भी इस क्षेत्र के साथ ‘अन्याय’ जैसा ही है। यह सब उस क्षेत्र के साथ हो रहा है जो रेलवे को माल ढुलाई में सर्वाधिक राजस्व देने वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में जितनी माल गाडिय़ां चलती हैं उसे देखते हुए प्राथमिकता के आधार पर यहां रेलवे लाइन के तिहरीकरण के प्रोजेक्ट को पूरा किया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। खैर देर आये दुरुस्त आये वाली कहावत चरितार्थ हो रही है तथा इस दिशा में काम प्रगति पर है।
रेलवे को अब तक यात्री सुविधा प्रदान करने से अधिक राजनीतिक नफा नुक्सान के हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। कई ऐसे क्षेत्रों में यात्री ट्रेनों की भरमार देखने को मिलेगी जो राजस्व के मुकाबले में चक्रधरपुर रेल मंडल के सामने कही नहीं टिकते। लेकिन झारखण्ड की एवं खासकर इस क्षेत्र की उपेक्षा का लम्बा इतिहास रहा है और इस क्षेत्र के लोगों को इसका कोपभाजन बनना पड़ता है। रेल ट्रैफिक के भार का रोना रोकर इस क्षेत्र को नई ट्रेने नहीं दी जाती। दरअसल जिस भारी संख्या में मालगाडिय़ों का परिचालन होता है, उस कारण नई यात्री ट्रेनों के लिये कोई समय ही नहीं मिल पाता। टाटा-जालियाबाग एक्सप्रेस शुरु हुए अब करीब दो दशक होने के आये है लेकिन केवल दो फेरा सप्ताह में होता है। यदि इसका फेरा बढ़ाया जाये तो इसका लाभ अधिक से अधिक लोग उठा सकेंगे। साथ ही लोकल ट्रेनों की क्नेक्टिविटी भी बढ़ाये जाने की जरूरत है। जमसेदपुर एक औद्योगिक नगरी है और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग यहां रोजी रोजगार के लिये आते है। जो चंद लोकल ट्रेने चलती है उनमें लोग भेंड़ बकरियों की तरह ठूस कर चलने को विवश होते है। रेलवे को इस क्षेत्र के साथ न्याय करना चाहिए।

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