: कल यानी रविवार को संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए माताएं जितिया व्रत रखेंगी। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतपुत्रीका व्रत भी कहा जाता है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत करने का विधान है। इस बार 14 सितंबर को व्रत रखा जाएगा और 15 सितंबर को पारण होगा।
कब और कैसे शुरू होता है व्रत?
जितिया व्रत शुरू करने से पहले शनिवार को नहाए-खाए की परंपरा निभाई जाती है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में जल, फल और अन्न ग्रहण किया जाता है। इसके बाद अगले दिन महिलाएं निर्जला व्रत का संकल्प लेकर संतान की सलामती के लिए उपवास करती हैं।
क्यों कहते हैं इसे खास?
यह व्रत सिर्फ महिलाएं रखती हैं। मान्यता है कि जो मां इस व्रत को सच्चे मन से करती है, उसके बच्चे की उम्र लंबी होती है और उस पर कोई संकट नहीं आता। इसी वजह से इसे मातृत्व और आस्था से जुड़ा सबसे बड़ा पर्व माना जाता है।
व्रत के दौरान इन 10 बातों का रखें ध्यान:
- व्रत से एक दिन पहले ही नियमों का पालन शुरू कर दें। अष्टमी के दिन निर्जला व्रत रखा जाता है।
- गेहूं की जगह मडुआ (रागी) की रोटी खाई जाती है।
- व्रत से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है।
- तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस-मछली) वर्जित है।
- शाम को राजा जीमूतवाहन की कुशा से बनी प्रतिमा की पूजा होती है।
- चाकू-कैंची जैसी नुकीली चीजों का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
- चील और सियारिन की मिट्टी व गोबर से प्रतिमा बनाई जाती है।
- ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देना जरूरी है।
- पारण के समय महिलाएं लाल रंग का धागा या लॉकेट गले में पहनती हैं।
- पूजा में चढ़ाए गए सरसों के तेल को बच्चों के सिर पर लगाया जाता है।
पारण और आस्था का महत्व
अगले दिन यानी 15 सितंबर को व्रत का पारण होता है। इस मौके पर महिलाएं लाल धागा पहनकर संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह व्रत केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि मातृत्व के समर्पण और बलिदान की भी पहचान है।