जस्टिस वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार,स्पीकर ने बनाई 3 सदस्यीय कमेटी

दिल्‍ली हाईकोर्ट में जज रहते ‘कैश कांड’ से चर्चा में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा में ‘महाभियोग’ का प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लिया गया है. सांसदों की ओर से दिए गए इस प्रस्‍ताव को स्‍पीकर ओम बिरला ने स्‍वीकार करते हुए कहा, ‘न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 की धारा 3 की उपधारा 2 के अनुसार उन्‍होंने जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के अनुरोध के आधार की जांच करने के उद्देश्य से 3 सदस्यीय कमिटी गठित की है.’ इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और कानूनविद् के तौर पर कर्नाटक हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट बीवी आचार्य शामिल हैं. ये समित जांच के बाद रिपोर्ट सौंपेगी, तब तक ये प्रस्‍ताव लंबित रहेगा, जबकि प्रक्रिया जारी रहेगी.

बता दें कि जस्टिस वर्मा को अक्‍टूबर 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था और वे अप्रैल 2025 तक इस पद पर रहे. इस बीव 14 मार्च को उनके दिल्‍ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई थी. इस आगजनी के बाद कथित तौर पर भारी मात्रा में जले हुए नोट बरामद हुए थे. जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस कमिटी बनाई थी, जिस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ कैश छिपाने और न्यायिक मर्यादा के उल्लंघन की बात कही. जस्टिस वर्मा इनकार करते रहे हैं. विवादों के बीच उनका वापस दिल्‍ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर दिया गया, जहां से वे आए थे.

इसपर पूरी प्रक्रिया क्‍या है, महाभियोग प्रस्‍ताव होने के बाद जस्टिस वर्मा पर क्‍या कार्रवाई हो सकती है, क्‍या उन्‍हें पदमुक्‍त कर दिया जाएगा? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब आपको इस लेख में मिलेंगे. आपको ये जानकर आश्‍चर्य भी होगा कि आज तक किसी जज को महाभियोग के जरिये हटाया नहीं गया है. तो पहली बार महाभियोग कब लाया गया? देश के इतिहास में ऐसा कब-कब हुआ? क्‍या कार्रवाइयां हुईं? ये सारी जानकारी भी हम यहां देने जा रहे हैं.
महाभियोग जैसे जटिल विषय को विस्‍तार से जानने, समझने के लिए हमने संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ, राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकार में कार्य कर चुके एक जज, पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एक जानकार एडवोकेट और यूपीएससी की तैयारी कराने वाले एक चर्चित कोचिंग सेंटर में संविधान पढ़ाने वाले एक शिक्षक से बातचीत की है. तो चलिए शुरू करते हैं…

संविधान में ‘महाभियोग’ का प्रावधान
जैसा कि आप जानते हैं, भारतीय लोकतंत्र के तीन महत्‍वपूर्ण स्‍तंभ हैं- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका. इनमें न्यायपालिका का स्थान इसलिए विशेष है, क्‍योंकि ये न्‍याय सुनिश्चित करती है. और इसके लिए संसद और सरकार के फैसलों की समीक्षा भी करती है. तभी तो संविधान में इसे ‘स्‍वतंत्र और निष्‍पक्ष’ बनाए रखने के लिए जजों को विशेषाधिकार दिए गए हैं. खास तौर पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को.इन जजों पर कार्यपालिका का सीधा नियंत्रण नहीं होता. उनके वेतन और सेवा शर्तों में संसद भी कटौती नहीं कर सकती और यहां तक कि उन्हें कार्यकाल के दौरान आसानी से हटाया भी नहीं जा सकता. इनका वेतन भी कॉन्‍सॉलिडेटेड फंड से दिया जाता है, ताकि उन पर बाहरी दबाव न हो.

Share this News...