सम्पादकीय = हथेली पे जान

भारत में सडक़ सुरक्षा को कितनी अहमियत दी जाती है यह यहां होने वाले सडक़ हादसो के ऑकड़े साफ-साफ बताते हैं। विश्व बैंक भारतीय सडक़ों को पूरी दुनियां में सबसे जानलेवा बता चुका है सडक़ दुर्घटनाओं में हर साल करीब लाखों लोगों की जान जाती है . साल 2020 में 32 लाख सडक़ हादसे हुए जिसमें 13 लाख लोगों की मौत हुई। बावजूद इसके हम सडक़ सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं। सीट बेल्ट नहीं लगाने के कारण हर दिन औसतन 41 लोगों की मौत देश में होती है। हेलमेट न पहनने के कारण जान गंवाने वालों की संख्या कही अधिक है। देश की बहुत बड़ी आबादी केवल पुलिस या चालान कटने के भय से ही सडक़ सुरक्षा का पालन करती है। जिन ट्रैफिक सिग्नल पर पुलिसकर्मी नहीं होते वहां धड़ल्ले से ट्रैफिक नियमों को तोड़ा जाता है।
टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री की सडक़ दुर्घटना में मौत के बाद देश में एक बार फिर सडक़ हादसो को लेकर चर्चा शुरु हुई है। साल 2014 में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की भी सडक़ दुर्घटना में मौत हुई थी। जब ऐसी बड़ी हस्तियों की जान ऐसे हादसो में जाती है तब बड़े स्तर पर चिंता होती है। वरना हर दिन लाखो करोड़ों लोग जान हथेली पर रखकर सडक़ पर विभिन्न माध्यमों से सफर करते है। न सरकार या पुलिस प्रशासन ऐसे हादसो को लेकर गंभीरता दिखाती है, हम खुद कितने जवाबदेह है यह बताने की जरूरत नहीं। बाजार सडक़ पर ही लगता है। ठेले-खोमचे, सब्जी विक्रेता सभी वहीं अपनी दुकानदारी करते है और हम भी बड़े शौक से सडक़ पर ही वाहन खड़ी कर खरीददारी करते नजर आते है। सडक़ पर जाम की स्थिति लगी रहती है।
रांची-टाटा उच्च पथ की हालत किसी से छिपी नहीं है। इस सडक़ पर भी अनगिनत जानलेवा हादसे हो चुके है और यह सब केवल सडक़ निर्माण में होने वाले विलम्ब या लापरवाही का परिणाम है। सडक़ के बड़े हिस्से की हालत इतनी खराब है कि वहां हमेशा धूल उड़ती है, जब वारिश होती है तो वह कीचड़ से सन जाता है। चमकता आईना लगातार इस मुद्दे को प्रमुखता से प्रकाशित भी कर रहा है लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। जमशेदपुर के डिमना रोड में अंडर ग्राउंड केबलिंग का काम चल रहा है। उसके लिये सडक़ की खुदाई कर वहां खतरनाक गड्डे तो बना दिये गये है लेकिन उसे भरे नहीं जा रहे जो दुर्घटना को आमंत्रण दे रहे है। यह सब दर्शाता है कि हम सडक़ हादसो को लेकर कितने गंभीर है।

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