लेट लतीफी का प्रतीक न बने भारतीय रेल

भारतीय रेल का दूसरा नाम लेटलतीफी भी दिया जाता रहा है ।लोग ट्रेनों की लेटलतीफी को लेकर शर्त लगाने को तैयार रहते हैं ।समय पर ट्रेन चलना सपने जैसा प्रतीत होता है। इसके लिए जो भी प्रयास किए जाते हैं, लंबे समय तक नहीं चल पाते और भारतीय रेल अपने पुराने ढर्रे पर चल पड़ती है। ट्रेनों के विलंब होने के जितने भी कारण गिनाए जाते हैं जो भी तर्क कुतर्क गढ़े जाते हैं, उससे आम जनमानस की परेशानियां कहीं से कम नहीं हो जाती। दक्षिण पूर्व रेलवे की ओर से 20 जुलाई से 20 अगस्त तक पंक्चुअलिटी ड्राइव ,समय की पाबंदी ड्राइव ,की शुरुआत की गई है मगर इस ड्राइव में भी ट्रेनों की रफ्तार, उसकी लेटलतीफी में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। आलम यह है कि मंगलवार को गोविंदपुर में ट्रेनों की लेटलतीफी के कारण भारी विरोध प्रदर्शन किया गया इसके पहले गालूडीह में भी इसी तरह का विरोध प्रदर्शन किया गया था ।लंबी दूरी की ट्रेनों से लेकर कम दूरी की पैसेंजर ट्रेनों तक सभी का यही हाल है। खासकर हावड़ा से लेकर बिलासपुर के बीच स्थिति बेहद विकट बनी हुई है। मुंबई, पुणे रूट की ट्रेनें 10 से 12 घंटे विलंब से चलना अब आम बात हो गई है ।इन ट्रेनों के विलंब होने का असर यह भी होता है कि इन्हें रीशेड्यूल किया जाता है और इस वजह से यात्रियों की परेशानी कई गुना बढ़ जाती है। टाटानगर एक ऐसा बड़ा रेलवे स्टेशन है जहां से मुंबई, पुणे दिल्ली,पटनाआदि की ट्रेनों को पकड़ने के लिए चाईबासा ,चक्रधरपुर, घाटशिला ,चाकुलिया ,चांडिल, सरायकेला आदि क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं .इन ट्रेनों को पकड़ने के लिए उन्हें अपने घरों से दो-तीन घंटा पहले निकलना पड़ता है। रास्ते में आने पर उन्हें ट्रेनों के रीशेड्यूल होने की जानकारी मिलती है। तब तक स्टेशन पहुंच गए होते हैं। आप समझे कि जो ट्रेन सुबह 9:00 बजे खुलने को है उसके रीशेड्यूल होने की जानकारी स्टेशन पर आने पर मिले और पता चले कि वह ट्रेन रात को 9:00 बजे हावड़ा से खुलने वाली है यात्री उस परिवार पर क्या बीती होगी ,समझा जा सकता है ।पिछले दिनों घाटशिला की एक महिला अपने बेटे का दाखिला कराने पुणे गई थी। घाटशिला से वह टाटानगर दुरंतो एक्सप्रेस पकड़ने आई रास्ते में आने पर पता चला कि ट्रेन रीशेड्यूल किया गया है। हावड़ा से अब ट्रेन सुबह 6:00 के बजाए रात के 9:00 बजे चलेगी। टाटानगर स्टेशन पहुंचने के बाद उन्हें करीब 14 ,15 घंटे तक स्टेशन पर इंतजार करना पड़ा। बाहर से मंगा कर खाना खाया ।जिस ट्रेन को पुणे सुबह 9:00 बजे पहुंचना था वह अगले दिन सुबह के 6:00 बजे २१ घंटा विलंब से पहुंची ।उन्हें उसी दिन वापस लौटना था अगर ट्रेन निर्धारित समय पर पहुंची होती तो उनके पास करीब 36 घंटे का समय होता ।मगर ट्रेन विलंब होने के कारण उनके पास केवल आठ, 9 घंटे का समय ही रह गया था ।वह अकेली महिला अपने बेटे को लेकर कितनी परेशान रही, उनकी परेशानी को कोई दूसरा नहीं समझ सकता। किसी तरह गिरते पड़ते उस महिला ने वापसी का ट्रेन पकड़ा। एक उदाहरण इसलिए दिया गया है क्योंकि इस तरह की परेशानियां अनगिनत लोगों के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में हर दिन होती है।
पता चला कि पिछले 1 साल में दुरंतो की यही स्थिति बनी हुई है हावड़ा स्टेशन पहुंचने का समय शाम के ७.३० का है मगर वह ट्रेन आधी रात के बाद ही वहां पहुंचती है। उसके बाद जिन लोगों को हावड़ा से दूरदराज के क्षेत्रों में जाना है ,उन्हें रात भर स्टेशन पर ही इंतजार करना होता है। इन्हीं सब कारणों की वजह से पिछले दिनों गोविंदपुर स्टेशन पर स्थानीय लोगों ने हंगामा किया था ।पैसेंजर ट्रेन की अहमियत स्थानीय लोगों के लिए कितनी होती है बताने की जरूरत नहीं है ।उन्हीं ट्रेनों के भरोसे अपना रोजी रोजगार करने के लिए अगल-बगल के स्टेशनों पर जिन की दूरी एक-दो घंटे के अंतराल की होती है, जाते हैं मगर जब ट्रेन २_4 घंटे लेट हो जाती है ।तो उनका रोजगार छूट जाता है ।उन्हें काम नहीं मिल पाता ।भारतीय रेल की ओर से जो पंक्चुअलिटी सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है उसमें भी यदि ट्रेनें समय पर नहीं चल पा रही है तो फिर लानत है ऐसी व्यवस्था पर।

Share this News...